Fight Against Coronavirus: कोरोना जैसे वायरस से लड़ने के लिए बायोलॉजिकल वॉरफेयर में भी प्रशिक्षित है सेना Meerut News
मेरठ में अब कोरोना जैसे वायरस को लेकर युद्ध की स्थिति भविष्य में पैदा हो सकती है इसलिए सेना को भी इस जैसे वायरस से बचाव के लिए तैयार किया गया है।
मेरठ, [अमित तिवारी]। युद्ध के बदलते तौर-तरीकों में अब लड़ाई बायोलॉजिक वॉरफेयर (वायरस हमला) होगी। इसमें कोविड-19 यानी कोरोना जैसे वायरस को दूसरे देशों में छोड़कर अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जाती है। आम लोगों के साथ ही सैनिकों निशाना बनाया जाता है, ताकि संबंधित देश कमजोर हो और उनका मनोबल टूट जाए। देश के विभिन्न क्षेत्रों में सेना में तीन दशक से अधिक सेवा दे चुके कर्नल नरेंद्र सिंह के अनुसार भारतीय सेना के जवानों को सामान्य ट्रेनिंग के साथ ही बायोलॉजिकल वॉरफेयर के लिए भी प्रशिक्षित किया गया है।
इस तरह होती है ट्रेनिंग
बायोलॉजिकल वॉरफेयर में विशेषज्ञता रखने वाले कर्नल नरेंद्र सिंह के अनुसार इस तरह के युद्ध के लिए तीन चरण की ट्रेनिंग दी जाती है। पहले चरण में अवाइडेंस यानी जितना हो सके ऐसे वायरस से बच कर रहें। दूसरे चरण में प्रोटेक्शन यानी बचाव के तहत शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना और बचाव की यूनिफार्म पहननी होती है। तीसरे चरण में डिकंटेमिनेशन यानी शुद्धिकरण होता है। इस चरण में वायरस के पीड़ित को डिकंटेमिनेट किया जाता है।
एक दशक पहले से शुरू थी तैयारी
बायोलॉजिक वॉरफेयर कन्वेंशन के अंतर्गत देशों को वायरस का एंटी डोट बनाने की अनुमति होती है। एंटी डोट बनाने के क्रम में वायरस भी बनाकर प्रयोग किए जाते हैं। एक दशक पहले वर्ष 2011 में सार्स यानी सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम ग्रुप के वायरस फैलने की सूचना मिलने के बाद ही सेना ने अपनी तैयारी बढ़ा दी थीं। कोविड-19 भी बायोलॉजिकल वॉरफेयर एजेंट है और इसे लड़ाई के लिए ही तैयार किया गया है। बायोलॉजिकल वॉरफेयर में इस्तेमाल हथियार का लक्ष्य दुश्मन की सेना की ताकत कमजोर कर देश की क्षमता को कम करना होता है।
असरदार है यह वायरस
कर्नल नरेंद्र सिंह के अनुसार कोविड-19 भी सार्स ग्रुप का वायरस है। यह फेफड़ों की ङिाल्ली के आस-पास स्थित तरल पदार्थो को जमा देता है। इससे कफ बनता है। यह वायरस 16-28 डिग्री तापमान में सबसे ज्यादा एक्टिव रहता है। इसीलिए चीन, कोरिया, इटली, स्पेन, अमेरिका आदि देशों में अधिक प्रभावी है। यह खुले वातावरण में तीन से 12 घंटे तक जीवित रहता है। इसलिए युद्ध में इसे एक नॉन-परसिस्टेंट एजेंट के रूप में प्रयोग किया जाएगा।
बदल जाएगा तौर-तरीका
कर्नल (डा.) नरेंद्र सिंह का मानना है कि कोरोना प्रभाव से उबरने के बाद दुनिया के तमाम देशों के काम का तरीका बदल दिया जाएगा। सबसे ज्यादा असर ट्रैवल और टूरिज्म पर पड़ेगा। सभी देश अब वीजा देने की प्रक्रिया में बदलाव करेंगे। भारत भी यूएनएससी व आइसीएस में दोषी देश के खिलाफ कार्रवाई और मुआवजे की मांग उठाएगा।