नारी सशक्तीकरण: परिवार को संभालने की खातिर बिटिया चला रही ई-रिक्शा
गरीबी की खाई हौसले की छलांग को रोक नहीं सकती। अपने सपनों की उड़ान से सहारनपुर में बीए की छात्रा फरिया ने यह साबित किया है।
सहारनपुर, [मनोज मिश्रा]। गरीबी की खाई हौसले की छलांग को रोक नहीं सकती। अपने सपनों की उड़ान से सहारनपुर में बीए की छात्रा फरिया ने यह साबित किया है। बचपन में पिता की मौत के बाद मां ने परचून का खोखा खोलकर आगे बढऩा शुरू किया तो अब फरिया बेटी होकर भी बेटे की तरह ही परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए खड़ी हो गई। पढ़ाई कर कुछ बनना उसका सपना है। इसके लिये उसने ई-रिक्शा चलाने की राह चुनी ताकि मुकाम को पाकर परिवार का भी पालन पोषण किया जा सके। सड़क पर रिक्शा लेकर जब वह निकलती है, तो लोग उसके हौसले को देख सलाम करते हैं।
हिम्मत के साथ आगे बढऩा मां से ही सीखा
शहर में काशीराम कॉलोनी की रहने वाली फरिया के पिता फारुख की टीबी से मौत हो गई थी। उस समय वह मात्र तीन साल की थी। उसकी मां रुकसाना ने खुद को संभालने के साथ-साथ फरिया व छोटी बेटी फातमा की जिम्मेदारी उठा ली। फरिया कहती है कि हिम्मत के साथ आगे बढऩा उसने अपनी मां से ही सीखा है। घर के बाहर मां परचून का खोखा चलाती है। वह अब शहर के जेवी जैन डिग्री कॉलेज में बीए द्वितीय वर्ष में है। मन में दारोगा बनने की चाहत है, इसलिए उसी हिसाब से तैयारी भी कर रही है। पुलिस परीक्षा के लिए अलग से ट््यूशन लगाने के रुपये नहीं हैं, इसलिए ई-रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। जब भी जरूरत होती है तो वह रिक्शा लेकर निकल जाती है और उन्हीं रुपयों से कोर्स खरीदकर तैयारी करती है। छात्रा की इस गजब की हिम्मत को देख मोहल्लेवासी व अन्य लोग चकित हैं। बोली कि इसी साल वह 18 साल की हो गई है। अब पुलिस भर्ती का फार्म आएगा तो उसे भरेगी।
किश्तों पर खरीदी थी ई-रिक्शा
रुकसाना का कहना है कि, बेटी फरिया का बचपन से ही कुछ कर गुजरने का सपना है। पुलिस में इसलिए जाना चाहती है कि क्योंकि समाज में यही एक ऐसा विभाग है, जो तुरंत न्याय दे सकता है। कोर्स की किताबें महंगी हैं, जो दिलवा पाने में दिक्कत होती थी। इसलिए ब्याज किश्तों पर 42 हजार रुपये की ई-रिक्शा खरीदी।
मां-बहन को भी रिक्शा पर ले जाती है बाजार
फरिया कहती है कि महंगाई बहुत हो गई है। पढ़ाई के चलते वह नियमित रूप से तो रिक्शा नहीं चलाती है लेकिन जब भी रुपयों की जरूरत होती है तो रिक्शा लेकर निकल पड़ती है। मां को भी जब बाजार से घर व दुकान का सामान लेने के लिए जाना होता है तो वह रिक्शा पर ही ले जाती है। इससे आने-जाने की समस्या भी समाप्त हो जाती है और रिक्शा वालों को दिए जाने वाले रुपये भी बच जाते हैं।