Famous Temples In Bulandshahr: महाभारत काल की गाथाओं को समेटे है बुलंदशहर के अहार का अंबकेश्वेर महादेव मंदिर
Famous Temples In Bulandshahr अहार के गंगा किनारे स्थित अंबकेश्वर महादेव मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ीं हैं। पांडवों ने मंदिर में की थी पूजा-अर्चना कौरवों से युद्ध में वियजी होने का लिया था आर्शीवाद। मंदिर में आने भक्त की भगवान शिव मनोकामना पूर्ण करते हैं।
बुलंदशहर, जागरण संवाददाता। Ambakeshwar Mahadev Temple बुलंदशहर जिले के कस्बा अहार के गंगा किनारे स्थित अंबकेश्वर महादेव मंदिर महाभारत काल की गाथाओं को समेटे हुए है। यहां पांडवों ने पूजा-अर्चना कर जलाभिशेक किया था। जिससे प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव ने उन्हें कौरवों से युद्ध में विजयी होने का आर्शीवाद दिया था। तभी से आज तक लोग दूर दराज से अंबकेश्वर महादेव मंदिर में मत्था टेकने और मनोति मांगने के लिए आते आते है और पूजा अर्चना कर जलाभिषेक करते है। मंदिर में आने वाला कोई भी भक्त जो सच्चे मन से मांगता है। उसकी मनोकामना भगवान शिव पूरी करते हैं।
इसकी विशेष मान्यता
जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अहार धार्मिक स्थलों की स्थली के नाम से भी पहचाना जाता है। इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा होने के कारण इसकी विशेष मान्यता है। बताते हैं कि मंदिर में विराजमान षिवलिंग पृथ्वी की कोख से स्वतं प्रकट हुआ था। पांच हजार छह सौ बाइस वर्श पूर्व पांडवों ने भगवान षिव की पूजा अर्चना की थी और खिरनी के पेड़ लगाए थे। मंदिर परिसर में लगे खिरनी के पेड़ आज भी महाभारत काल और पांडवों की पूजा अर्चना के साक्षी बने हैं। यह भी बताया जाता है कि पांडवों की पूजा अर्चना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महाभारत के युद्व में विजयी होने का आषीर्वाद दिया था।
ख्याति दूर-दराज तक फैली
फाल्गुन और श्रावण मास की महाशिवरात्रि पर शिव भक्तों का यहां रेला पहुंचता है। हरिद्वार और ऋषिकेश से पद यात्रा कर गंगाजल लेकर आते हैं। मंदिर की ख्याति दूर-दराज तक फैली होने के कारण गंगा पार से शिव भक्त पहुंचते हैं। मंदिर में देवाधिदेव महादेव का जलाभिषेक कर मुरादें पाते है। मंदिर पर महाषिवरात्रि के अवसर मंदिर पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। जिसकी तैयारयिां महीनों पूर्व से षुरू हो जाती है। जिसमें हरिद्वार और ऋशिकेष से जल लेकर आने वाले लाखों भक्त जलाभिशेक करते है। मंदिर को रंग बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है और षिव भकतों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं।
मंदिर पहुंचने के लिए इस मार्ग से आए
अहार के अंबकेश्वर महादेव मंदिर पर पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय से कस्बा जहांगीराबाद आना होगा। फिर अहार वाइपास पर पहुंचकर अहार के बस स्टेंड पर उतरना होगा। जहां से बाबा खड़ग सिंह समाधि से होते हुए महादेव मंदिर पर पहुंचेंगे।
सुबह -शाम होती भगवान शिव की आरती
अंबकेशवर महादेव मंदिर के पुजारी विक्रम गिरी ने बताया कि जो भी भक्त भगवान शिव के मंदिर में सच्चे मन से पूजा अर्चना करता है। उसकी मनोकामना सदैव पूरी होती है। मंदिर में नियमित सुबह चार बजे और शाम का 7:20 बजे आरती की जाती है।
पांडवों द्वारा लगाए खिरनी के पेड़ आज भी मौजूद
बताया जाता है कि अंबकेश्वर महादेव मंदिर में पांडवों ने पूजा अर्चना के बाद मंदिर परिसर में खिरनी के पेड़ लगाए थे। इस पेड़ पर बैषाख में फल लगता है। जिसको खिरनी के नाम से जाना जाता है। यह फल सूखने के बाद किशमिश जैसा हो जाता है। पांडवों द्वारा लगाए गए खिरनी के पेड़ आज भी महाभारत काल की पहचान बने हुए है।
अंबकेश्वर मंदिर परिसर में गोरक्षनाथ बाबा ने लगाई था धूना
बताया जाता है कि अंबकेश्वर महादेव मंदिर का परिसर पूर्व में कई एकड़ भूमि में फैला हुआ था। कलयुग में भगवान शिव अवतार गोरक्षनाथ ने अंबकेष्वर महादेव मंदिर में धूना लगाया था और पूजा अर्चना की थी। गोरक्षनाथ के धूना स्थल को आज भी सिद्ववेश्वर स्थल के नाम से जाना जाता है। जहां पर माह की प्रत्येक पूर्णिमा को भारी मेले का आयोजन होता है। भगवान शिव के भक्त पवित्र पावनी गंगा में डूबकी लगाकर सिद्वेश्वर और अंबकेश्वर महादेव मंदिर में पूजा अर्चना करते है।
महाकाल उज्जैन के समान है अंबकेश्वर महादेव की फल प्राप्ति
भक्तों ने बताया कि जिस तरह उज्जैन के महाकाल मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्चना कर रूद्राभिषेक करने से फल की प्राप्ति होती है। उसी प्रकार अहार के अंबकेश्वर महादेव मंदिर में रूद्राभिषेक करने से फल प्राप्ति होती है। जो दूर दूर से विख्यात है।
आवागमन की असुविधा भक्तों के लिए बांधक बनी है
अहार कस्बा भले ही धार्मिक स्थलों के नाम से जाना जाता हो, लेकिन यहां गंगा किनारे स्थित अंबकेष्वर महादेव मंदिर और सिद्व बाबा स्थल आज भी विकास के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। मंदिर तक आने और जाने के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। जिसके कारण महाभारत काल से जुड़ा हुआ होने के बाद भी अहार क्षेत्र विकास के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। जिसके कारण षिव भक्तों को कठिनाइयों का समाना करने के लिए विवश होना पड़ता है। आवागमन के अभाव के चलते महाभारत काल की धरोहर और प्राचीन धार्मिक स्थल अपनी पहचान खोते चले जा रहे हैं।