Fake NCERT Books In Meerut: टाइटल मेरठ में तैयार होता था, छपाई गजरौला में
मेरठ में फर्जी किताब प्रकरण एनसीईआरटी की साइट से सॉफ्ट कापी चोरी करके छापी जाती थीं किताबें।
मेरठ, [सुशील कुमार]। करोड़ों रुपये के अवैध किताबों के कारोबार की जड़ें बहुत गहरी हैं। इस धंधे में एनसीईआरटी से जुड़े लोगों के भी शामिल होने का शक गहरा रहा है। पड़ताल में सामने आया है कि एनसीईआरटी की वेबसाइट से सॉफ्ट कापी चोरी कर किताबों की छपाई होती थी। वेबसाइट पर एनसीईआरटी का कोड डालने के बाद ही किताब डाउनलोड की जा सकती है। सवाल है कि संजीव गुप्ता और सचिन गुप्ता को वेबसाइट का कोड कौन मुहैया कराता था। पुलिस पूरे मामले की तह तक जाने का प्रयास कर रही है।
पुलिस की विवेचना दो पहलुओं पर चल रही है। देखा जा रहा कि किताब छपाई के लिए कागज किस पेपर मिल से और साफ्ट कापी कहां से ली जा रही थी। अभी तक जांच में सामने आया है कि एनसीईआरटी की वेबसाइट से सबसे पहले किताब डाउनलोड की जाती है। एनसीईआरटी के लिए कुछ अधिकृत प्रिंटर्स भी वहां से सॉफ्ट कापी उठा सकते हैं। इसके लिए एनसीईआरटी के गोपनीय कोड की आवश्यकता होती है। यह कोड बार-बार जेनरेट होता है। यानी एक बार के कोड से एक बार ही काम होगा, बार-बार नहीं।
प्रिंटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की प्रिङ्क्षटग प्रेस के नाम से छापी गई किताबें
संजीव गुप्ता और सचिन गुप्ता के गोदाम से पलक प्रिंटर्स, कृष्णा ऑफसेट, नव दुर्गा ऑफसेट और एसके प्रिंटर्स से छपी हुई किताबें भी मिली हैं। पलक प्रिंटर्स के स्वामी आशु रस्तोगी अध्यक्ष प्रिंटर्स प्रेस मेरठ और नव दुर्गा ऑफसेट के स्वामी भावुक मित्तल ने बताया कि उनकी तरफ से कभी भी संजीव और सचिन गुप्ता को किताबों की सप्लाई नहीं दी गई। उन्होंने ही हमारी फर्म का नाम डालकर अवैध किताबों की छपाई की है ताकि बाजार में अवैध किताबों को असली बनाया जा सके। एनसीईआरटी की तरफ से जांच की जा रही है कि किताबों पर जिन प्रिंटर्स के नाम अंकित हैं, उनके यहां किताबें छपी हैं या फर्जीवाड़े में उनका नाम प्रयोग हुआ है। आशु रस्तोगी का कहना है कि हमारा नाम प्रयोग कर अवैध किताबों की छपाई की गई है। पुलिस व अन्य विभागों को चाहिए कि पूरे मामले की तह तक जाएं और कार्रवाई करें।