Fake NCERT Books Case: संजीव गुप्ता और सचिन को भेजा नोटिस, करोड़ों के कागज पर देना होगा सीजीएसटी Meerut News
माना जा रहा है कि किताबों की छपाई में प्रयोग हुए कागज पर कर नहीं दिया गया है। ऐसे में जुलाई 2017 से लेकर 2020 तक खरीदे गए कागज का ब्योरा मांगा गया है।
सुशील कुमार, मेरठ। करोड़ों रुपये कीमत के अवैध किताब प्रकरण में हर एजेंसी ने नकेल कसनी शुरू कर दी है। एनसीईआरटी किताबों की छपाई में प्रयोग हुए कागज पर केंद्रीय वस्तु एवं उत्पाद कर (CGST) की भी पड़ताल की जा रही है। माना जा रहा है कि किताबों की छपाई में प्रयोग हुए कागज पर कर नहीं दिया गया है। ऐसे में जुलाई 2017 से लेकर 2020 तक खरीदे गए कागज का ब्योरा मांगा गया है। यदि उस पर सीजीएसटी नहीं दिया गया है तो फर्म से वसूला जाएगा। प्रथम दृष्ट्या हर वर्ष 30 से 40 करोड़ के कागज की खपत का अनुमान है। जितनी भी राशि का कागज चार वर्ष में खरीदा गया होगा, उस पर 12 फीसद जीएसटी देना होगा।
ऐसे हुआ था खुलासा
21 अगस्त को पुलिस ने छापा मारकर परतापुर और गजरौला से लगभग 60 करोड़ रुपये कीमत की किताबें और मशीनें जब्त की थीं। अधिकांश किताबें एनसीईआरटी की अवैध रूप से प्रकाशित की जा रही थीं। एसएसपी अजय साहनी ने अमरोहा के कप्तान को मामले की जांच के लिए पत्र भी लिखा है। सीजीएसटी, एनसीईआरटी, आयकर विभाग, एमडीए समेत कई विभागों ने जांच शुरू कर दी। सीजीएसटी की जांच में आया है कि टीएनएचके फर्म की मालिक अनीता गुप्ता हैं, जिनके गोदाम से करोड़ों की किताबें मिलीं। साथ ही मोहकमपुर में मेरठ सिक्योरिटी प्रिंटर्स के नाम से संजीव गुप्ता की प्रिंटिंग प्रेस है।
करोड़ों का धंधा, साल की कमाई नौ लाख
गोदामों में करोड़ों का स्टॉक रखने वाली फर्म के संचालकों की आय एक साल में मात्र नौ लाख रुपये दिखाई जा रही थी। दो जगहों से 60 करोड़ की किताबें व अन्य सामान मिलने के बाद आयकर विभाग भी सक्रिय हो गया है। उन्होंने भी एक साल की आय का ब्योरा मांगा है। इधर, सचिन गुप्ता का कहना है कि उनकी आय चार साल पहले नौ लाख थी, जो अब बढ़कर 15 लाख हो गई है। उनका प्रिंटिंग का नहीं, ट्रेडिंग का काम है। कई प्रकाशनों से खरीद-बिक्री करते हैं।
गोदाम पर नहीं मिला टीएनएचके के नाम पर बिल
गोदाम में हुई छापेमारी जितने भी बिल मिले हैं उन सब एपीएम लिखा है। इस फर्म के बारे जानकारी जुटाई जा रही है। टीएनएचके के नाम पर केवल चालान काटे गए हैं। अधिकारियों को सुराग मिलने में दिक्कत आ रही है कि वास्तव में किताबें प्रकाशित करने के लिए कागज की खरीद कहां से हुई है।