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मदद को हाथ बढ़ाइए, आपकी एक कोशिश से जान बच सकती है

हापुड़ रोड पर बीस साल के ऋतिक हत्याकांड की वायरल वीडियो ने इंसानियत को तार-तार कर दिया। गोली मारने के बाद हमलावर मौके से निकल गए। उसके बाद घायल ऋतिक बीच सड़क पर हाथ जोड़कर जान की भीख मांगता रहा।

By JagranEdited By: Published: Thu, 08 Aug 2019 08:00 AM (IST)Updated: Thu, 08 Aug 2019 08:00 AM (IST)
मदद को हाथ बढ़ाइए, आपकी एक कोशिश से जान बच सकती है
मदद को हाथ बढ़ाइए, आपकी एक कोशिश से जान बच सकती है

मेरठ, जेएनएन : हापुड़ रोड पर बीस साल के ऋतिक हत्याकांड की वायरल वीडियो ने इंसानियत को तार-तार कर दिया। गोली मारने के बाद हमलावर मौके से निकल गए। उसके बाद घायल ऋतिक बीच सड़क पर हाथ जोड़कर जान की भीख मांगता रहा। शरीर से खून बह रहा था। उसके बावजूद भी कोई मदद को नहीं आया।

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मौका-ए-वारदात को देखा जाए तो भीड़ में मौजूद लोगों के चेहरे पर खौफ था। उनका मन मदद को कर रहा था, उसके बावजूद भी पैर पीछे हट रहे थे। इसकी वजह क्या थी? या तो हमलावरों का डर था, या फिर कानूनी कार्रवाई के झमेले में कोई पड़ना नहीं चाह रहा था। यदि ऋतिक को समय से उपचार मिल जाता तो शायद उसकी जान बच सकती थी। यह सिर्फ ऋतिक की हत्या का मामला नहीं है। बल्कि एक सप्ताह पहले माल रोड पर होमगार्ड बृजेश की पत्‍‌नी रेखा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस समय आटो में सवार चश्मदीद से पुलिस और मीडियाकर्मियों ने पूछताछ कर सीमाएं पार कर दी थी। उस समय चश्मदीद बने लोग अपने फोटो तक मीडिया में नहीं आने देना चाहते थे। एक महिला के घर से तो बार-बार कॉल आ रही थी। उसके बावजूद भी एक के बाद एक अधिकारी उनसे पूछताछ में जुटे थे। यानि कई राउंड पूछताछ हो चुकी थी। कई अफसरों की डायरी में उनके मोबाइल नंबर तक लिखे जा चुके हैं। इसी झमेले में पड़ने से चश्मदीद मदद को हाथ पीछे खींच लेते हैं। सेव लाइफ फाउंडेशन के सर्वे में सामने आया कि 75 फीसद लोग मदद के लिए आगे नहीं आते हैं। यदि लोग समय से घायल को अस्पताल पहुंचाए तो आधे लोगों की जान बचाई जा सकती है। विधि आयोग की 201वीं रिपोर्ट में कहा गया था कि डॉक्टरों के मुताबिक 50 फीसदी मामले में दुर्घटना पीड़ितों की जान बचाई जा सकती है अगर उन्हें एक घटे के भीतर अस्पताल में दाखिल करा दिया जाए।

ये आती है परेशानी :

-हादसे की सूचना कंट्रोल को देने पर भी कॉलर से पूछताछ कर पुलिस परेशान करती है।

-घायल को अस्पताल में भर्ती कराने वाले व्यक्ति को अस्पताल और पुलिस की पूछताछ से गुजरना पड़ता है।

-हादसे को अंजाम देने वाला वाहन स्वामी भाग जाए तो घायल को अस्पताल ले जाने वाला व्यक्ति घिर जाता है।

-हत्या के संगीन मामले में तो हमलावर की दहशत से डरकर भी मदद को कोई नहीं आता है।

-घायल को अस्पताल पहुंचाने वालों को अभी तक सम्मानित तक नहीं किया गया।

ये केंद्र की गाइडलाइन और सुप्रीम कोर्ट का आदेश :

-दुर्घटना का प्रत्यक्षदर्शी या कोई व्यक्ति हादसे में घायल को अस्पताल में एडमिट कराने के बाद अपना नाम पता लिखाकर जा सकता है। उससे कोई सवाल नहीं पूछे जाएंगे। राज्य सरकार ऐसे व्यक्तियों को सम्मानित भी करेगी। उक्त व्यक्ति को आपराधिक देयता का उत्तरदायी नहीं माना जाएगा। प्रत्यक्षदर्शी यदि खुद बयान देना चाहे तो सिर्फ एक बार पूछताछ की जा सकती है। मदद करने वाले को थाने बुलाने के बजाय वीडियो कॉल पर भी बातचीत की जा सकती है। सार्वजनिक या निजी अस्पताल घायल व्यक्ति को एडमिट करने के लिए या उसके पंजीकरण कराने में मददगार से कोई पैसा नहीं माग सकता।

मदद करने वाले का पुलिस करेगी सम्मान : कप्तान

एसएसपी अजय साहनी ने बताया कि दुर्घटना या हत्या जैसे संगीन मामले में भी घायलों की मदद करें, पुलिस पूछताछ के लिए किसी को भी परेशान नहीं करेगी। चश्मदीद से भी सादी वर्दी में पुलिस घर या उनके कार्य स्थल पर पहुंचकर पूछताछ करेगी। बेवजह किसी को भी परेशान नहीं किया जाएगा। खरखौदा में हुई घटना के बाद सभी थाना प्रभारियों को पत्र जारी किया जा रहा है। घायल की मदद करने वालों को परेशान किया तो विभागीय कार्रवाई तय है। साथ ही घायलों को अस्पताल पहुंचाने वाले व्यक्ति को सम्मानित किया जाएगा।

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