Move to Jagran APP

बढ़ते तापमान में गेहूं की पैदावार बढ़ाने पर जोर

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संस्थान (एफएओ) के अनुसार वर्ष 2050 तक पूरी जनसंख्या का पेट भरने के लिए गेहूं के उत्पादन में 60 फीसद बढ़ोतरी की जरूरत होगी।

By JagranEdited By: Published: Fri, 06 Dec 2019 05:00 AM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2019 06:09 AM (IST)
बढ़ते तापमान में गेहूं की पैदावार बढ़ाने पर जोर

मेरठ, जेएनएन। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संस्थान (एफएओ) के अनुसार वर्ष 2050 तक पूरी जनसंख्या का पेट भरने के लिए गेहूं के उत्पादन में 60 फीसद बढ़ोतरी की जरूरत होगी। भारत सहित दुनिया में गेहूं के ऐसे जीन खोजे जा रहे हैं, जिसकी मदद से बढ़ते तापमान और कम पानी में गेहूं की भरपूर पैदावार ली जा सकेगी। चौ. चरण सिंह विवि के जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग में आयोजित कांफ्रेंस में यह बात विशेषज्ञों ने कही।

loksabha election banner

गुरुवार को कांफ्रेंस के दूसरे दिन मैक्सिको के इंटरनेशनल मेज एंड व्हीट इंप्रूवमेंट सेंटर के प्रमुख रवि सिंह ने बताया कि यह सेंटर पारंपरिक क्रॉस ब्रीडिंग के माध्यम से लंबे समय से गेहूं की ऐसी नस्लों पर काम कर रहा है जो बीमारियों से बच सकें। भविष्य में गेहूं की ऐसी नस्लें विकसित करनी होगी जिस पर मौसम का प्रभाव नहीं पड़े। संस्थान उस दिशा में काम कर रहा है। कनाडा से आए रान एमडी पाव ने बताया कि एक गेहूं की नई नस्ल को विकसित करने और खेतों तक पहुंचाने में 10 से 15 साल तक समय लग सकता है। शोधकर्ताओं ने अब तक एक लाख से ज्यादा जीन और गेहूं के डीएनए का पता लगाया है। कृषि वैज्ञानिक जल्द ही जान सकेंगे कि कौन सा जीन सूखे का प्रतिरोधक है और उपज को बढ़ा सकता है। जीन एडिटिंग तकनीक से गेहूं की किसी भी नस्ल को विकसित किया जा सकता है। ग्लोबल व्हीट प्रोग्राम के निदेशक डॉ. हेंस ब्रोन और डॉ. हेलीन वालिस ने कहा कि शोधकर्ताओं को बहुत बड़े वादे करने से बचना चाहिए। जीन एडिटिंग से नुकसान भी हो सकता है। पोषण में बदलाव करने से कई बार कीट अधिक आकर्षित होते हैं। गेहूं का सेवन करने वाले को भी इसका नुकसान हो सकता है। नई दिल्ली से आए कुलदीप सिंह जीनोमिक अनुसंधान पर प्रकाश डाला। विभाग के डा. एसएस गौरव ने बताया कि विश्वविद्यालय में चार शीर्ष संस्थाओं से करार हुआ है, उससे शोध को बल मिलेगा। कांफ्रेस में प्रो. पीके गुप्ता सहित अन्य शिक्षक और छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे।

पीला रतुआ रोग का खतरा

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि जनवरी और फरवरी में गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग आने की संभावना रहती है। हाथ से छूने पर धारियों से फफूंद के बीजाणु पीले रंग की तरह हाथ में लगते हैं। फसल के इस रोग के चपेट में आने से कोई पैदावार नहीं होती है। उत्तर भारत के पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में पीली रतुआ के प्रकोप से कुछ साल में लाखों हेक्टेयर गेहूं के फसल का नुकसान हुआ।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.