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सपने अपने : चित्र बनाते, सड़क नहीं Meerut News

मेरठ विकास प्राधिकरण के दावे केवल कागजों पर ही काम हो रहा है। साथ ही सड़कों पर काम न होकर केवल तस्‍वीरे बनाई जा रही हैं। प्राधिकरण का प्‍लान केवल फेल होता दिख रहा है।

By Prem BhattEdited By: Published: Fri, 28 Feb 2020 04:35 PM (IST)Updated: Fri, 28 Feb 2020 04:35 PM (IST)
सपने अपने : चित्र बनाते, सड़क नहीं Meerut News

[प्रदीप द्विवेदी] मेरठ। मेरठ विकास प्राधिकरण हर 10-20 साल बाद रंग, कूची, कैनवास, चित्रकार लेकर बैठ जाता है। लाखों रुपये खर्च कर एक नक्शा बनाया जाता है। उसमें मोटी-मोटी रेखाएं खींचकर गाढ़ा रंग भर दिया जाता है, फिर उसे नाम दे दिया जाता है मास्टर प्लान की सड़कें। किसी को रिंग रोड, किसी को आउटर रिंग रोड और न जाने कौन-कौन से इलाकों को जोडऩे वाली 45 मीटर चौड़ी सड़कें। फिर यह कैनवास छापाखाने से बाहर आकर दीवारों पर टंग जाता है। शहर लंबी-चौड़ी सड़कें देखकर यह सोचता है कि एमडीए ने प्लान बना दिया है, अब सड़कें भी बनने वाली हैं। एमडीए उस मुगालते को दूर भी नहीं करता। वह सिर्फ लोगों की मुस्कराहटों पर मुस्कराता है कि जिससे उम्मीद लगाए बैठे हो वह तो सिर्फ सड़कों के चित्र बनाता है, सड़क नहीं। अब फिर मास्टर प्लान- 2031 नाम से चित्र बनाने की तैयारी शुरू हो गई है।

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हाकिम, हल्‍ला, प्रस्‍ताव, संनाटा

शहर में हाकिमों की फौज है। देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा से लेकर प्रांतीय सेवा और अन्य सेवाओं वाले भी अफसर हैं। अनुभवी और जानकार भी हैं। ज्यादातर अफसर ऐसे हैं जो यह कहते हैं कि फलां शहर में जो हुआ था वह उनका ही आइडिया था। मेरठ में आकर हाकिम शहर को बदल देने की बातें करते रहे हैं। दावे का हल्ला मचाते रहे हैं फिर प्रस्ताव भी बनता रहा है। इस शहर ने हर साल नहीं हर माह प्रस्ताव बनते देखा है। उसी के साथ-साथ सपना भी देखा है लेकिन परिणाम वही जीरो। मेट्रो, तीन तल वाली एलिवेटेड रोड, अत्याधुनिक पाकिर्ंग, प्लास्टिक वाली सड़कें, म्यूजिकल फाउंटेन जैसे तमाम प्रस्ताव के हश्र देखे। अब भी प्रस्ताव बन रहे हैं, शहर को 360 डिग्री बदल देने की बात हो रही है लेकिन लोग यकीन नहीं कर पा रहे कि हल्ला निल बटा सन्नाटा न हो जाए।

एयरपोर्ट, एंक्‍लेव का वास्‍तुदोष

एयरपोर्ट और एयरपोर्ट एन्क्लेव का तो वास्तुदोष ही खराब है। शताब्दीनगर में दशकों पहले हवाई पट्टी बनी थी फिर उसे एयरपोर्ट बनाने की मांग बढ़ी। अभियान चला और भाषणों का दौर चला तो लोगों को यकीन हो गया। विकास प्राधिकरण ने भावनाओं को समझा और लगे हाथ उसी के बराबर में एयरपोर्ट एन्क्लेव के नाम से बहुमंजिला इमारत बनाने की शुरुआत कर दी। अब सरकार ने एयरपोर्ट के सपने पर पानी फेर दिया तो एमडीए ने आवंटियों को कब्जा देने की प्रRिया लटका दी। लोग यह भी जानते हैं कि दूरी कम होने के कारण एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने एमडीए को एनओसी नहीं दी है फिर भी आवंटी धन वापस नहीं मांग रहे हैं, उम्मीद कायम है। क्योंकि सपना खिड़कियों से उड़ते जहाज देखने का है। उधर, भावनाओं से खेलने का दौर फिर शुरू हुआ। जनप्रतिनिधि, नुमाइंदे फिर उड़ान का सपना दिखाने में लगे हैं।

ठेकेदारों ने दिखाया ठेंगा

शहर में जिस प्राधिकरण को माना जाता है कि विकास कराएगा, वह खुद के विकास से आगे कभी नहीं बढ़ पाया। एमडीए (मेरठ विकास प्राधिकरण) के बारे में एक कहावत यह है कि चक्कर काटकर यहां एड़ियां घिस जाती हैं। खैर यह दर्द तो उनका है जिनका वास्ता एमडीए से पड़ जाता है लेकिन अब एक खास किस्म की कौम की भी एड़ियां घिसने लगी हैं, वह हैं ठेकेदार। ठेकेदारों को तो मलाईदार माना जाता है पर एमडीए के चंगुल में ऐसे फंसे हैं कि ठेकेदारी भूल गए हैं। भुगतान को तरस गए हैं। अब इस पूरी जमात ने ठान लिया है कि यहां के ठेके नहीं लेंगे। प्रधानमंत्री आवास योजना समेत तमाम काम के आधा दर्जन बार टेंडर मांगे गए लेकिन ठेकेदारों ने ठेंगा दिखा दिया है। एमडीए कई बार चेतावनी दे चुका है पंजीकरण रद करने की लेकिन ठेंगा लाइक वाली बटन नहीं बना।


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