Digital India: इस योजना का पहले बना था मजाक, अब लॉकडाउन के दौरान छा गया है देश में Meerut News
भारत में जब डिजिटल इंडिया योजना आई थी तो कई लोगों ने इसका मजाक बनाया था। पर अब आलम यह है कि इस लॉकडाउन के दौरान ही डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा मिला है।
मेरठ, [प्रदीप द्विवेदी] । भारत को डिजिटल बनाने का जो सपना देखा गया था, उसका लाभ वर्तमान परिस्थिति में मेरठ जैसे शहर भी उठा रहे हैं। शुरुआत में इस योजना को मजाक माना गया था। इसकी सफलता पर संदेह किया गया था, लेकिन कोरोना महामारी ने एक झटके में सभी को डिजिटल प्लेटफार्म पर आने को मजबूर कर दिया। जिन स्कूलों के बच्चे कक्षाओं में भी पढ़ाई ढंग से नहीं करते थे, वे अब ऑनलाइन पढ़ाई मन लगाकर कर रहे हैं। वर्क फ्रॉम होम इसी डिजिटल पद्धति ने धरातल पर साकार होने दिया। इस शहर के भी तमाम युवा घर पर रहकर ही गुरुग्राम, बेंगलुरू जैसे शहरों के लिए काम कर पा रहे हैं। यहां तक कि मोहल्ले की किराना दुकानों को भी वाट्सएप से लेकर पोर्टल तक से होम डिलीवरी के लिए जोड़ लिया गया। उद्योग बंद हैं पर एप के माध्यम से डिजिटल प्लानिंग रोजाना कर रहे हैं।
परिवार और पीढ़ियां साथ
कहा जाता था कि 21वीं सदी, मॉडर्न और खुद में खोए रहने वाला जमाना है। सब कुछ इतना बदल गया है कि अब परिवार को एक साथ बैठाना सिर्फ सपने की बात रह गई है। बच्चे का दादा-दादी से तो क्या माता-पिता तक से संवाद भी सिर्फ जरूरतों तक ही सिमट गया था। हालांकि इस लॉकडाउन ने जब सभी को घरों में कैद रहने पर मजबूर किया तो एक ही छत के नीचे मौजूद तीनों पीढ़ियां अब साथ बैठने को मजबूर हुईं। किसी के पास खुद को इधर-उधर व्यस्त रखने का न उद्यम बचा न बहाना। पास बैठना ही पड़ा। जो संवाद कभी स्वप्न थे वे अब शुरू हुए। विचारों का आदान-प्रदान शुरू हुआ। मेरठ शहर के ही तमाम लोगों ने इस विचार को साझा भी किया। अपनापन बढ़ा साथ ही अपनों को समझने की समझ बढ़ी। अब शायद परिवार के बीच संवादहीनता न रहे।
अनुशासित जीवन, घर पर भोजन
भागदौड़ भरी जिंदगी ने जीवन का अनुशासन बिगाड़ दिया था। घर का साफ-शुद्ध भोजन नसीब नहीं हो पा रहा था या नजरअंदाज किया जा रहा था। जब कोई खुद की दिनचर्या या रोजाना घर पर ही खाने की बात कहकर खुद की तारीफ करता था तो लोग या तो उसे पिछड़ापन मानते थे या फिर कहते थे कि ये सब वे भी चाहते हैं पर उनके लिए ऐसा करना सपना देखने की तरह है। हालांकि कोरोना के संक्रमण और लॉकडाउन से जो घर का स्वाद मिला है और सीख मिली है, उससे बहुतों की जिंदगी में परिवर्तन आने वाला है। लोगों ने दिनचर्या का अनुशासन अपनाया है और घर का ही खाना खाने का प्रण लिया है। ऐसा नहीं है कि बाजार खुलने पर सब पहले की तरह हो पाएगा। बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो अब ऐसा बदलाव जीवन में अपनाते हुए दिखेंगे।
आएगा वर्क फ्रॉम होम
बड़ी आइटी कंपनियों के वर्क फ्रॉम होम की बातें सुनकर बाकी सेक्टर के लोग समझते थे कि यह सपना है। सभी के लिए मुमकिन नहीं हो सकता। इसे पाश्चात्य दुनिया से आयातित ऐसी पद्धति माना जाता था कि इसे सभी लागू नहीं कर सकते। हालांकि लॉकडाउन ने अब उन-उन सेक्टरों में कर दिखाया है जिन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कर्मियों से वर्क फ्रॉम होम कराएंगे। मेरठ के ही स्कूल-कॉलेज नहीं बल्कि तमाम कंपनियों, फैक्टियों का काफी-कुछ काम ऐसे ही हो रहा है। जो काम घर बैठे हो सकता है उसे बंद नहीं किया गया है। उत्पादन कर्ता कंपनी व खरीदार कंपनी के बीच संवाद व डाक्यूमेंट का आदान-प्रदान उनके कर्मचारी घर से कर रहे हैं। मेरठ को दिल्ली से जोडऩे वाली रैपिड रेल का जरूरी काम भी कार्यदायी कंपनी इसी पद्धति से अभी चला रही है। यह मेरठ में भी नए अवसर पैदा करेगा।