मांगी तो थीं पांच हजार एंटी रेबीज वैक्सीन, मिलीं सिर्फ सौ
मेरठ में एंटी रेबीज वैक्सीन की कमी हो गई है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने लखनऊ से पांच हजार वैक्सीन मांगी थीं, मिली सिर्फ सौ।
मेरठ (जेएनएन)। दुनिया की सबसे जानलेवा बीमारी में से एक रेबीज और इससे निपटने के लचर इंतजामों के बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी पांच हजार वैक्सीन मांगने लखनऊ गए थे। तीन सबसे बड़े स्टोरों को खंगाला गया, लेकिन सिर्फ सौ सैंपल लेकर उन्हें लौटना पड़ा। वैक्सीन के संकट को लेकर हाहाकार मचा है। हालांकि 19 अक्टूबर को एंटी रेबीज का रेट कांट्रेक्ट खत्म हो गया।
नहीं पहुंचीं पर्याप्त वैक्सीन
स्वास्थ्य विभाग ने सालभर पहले दूसरी कंपनी से वैक्सीन खरीदना शुरू किया था, लेकिन मांग के सापेक्ष एक तिहाई वैक्सीन भी नहीं पहुंचीं। प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह से भी शिकायत की गई। दर्जनों बार सीएमओ का घेराव हुआ, लेकिन परेशानी बनी रही। 12 सीएचसी पर रोजाना एंटी रेबीज वैक्सीन लगाने का निर्देश है। जिला अस्पताल में रोजाना करीब 125 लोगों को वैक्सीन लगाई जाती है। जिला अस्पताल के इमरजेंसी कक्ष में 24 घंटे वैक्सीन की उपलब्धता तय की गई। वैक्सीन संकट को देखते हुए ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों ने लोगों को जिला अस्पताल रेफर किया, लेकिन जिला अस्पताल ने बाहरी मरीजों को वैक्सीन लगाने से मना कर दिया।
सौ फीसद जानलेवा है रेबीज
कुत्तों, बंदर, सियार, लोमड़ी, बिल्ली, चमगादड़ एवं नेवला के काटने से भी रेबीज हो सकता है। इसका एकमात्र इलाज वैक्सीन है। संक्रमण होने पर रेबीज वायरस दिमाग में पहुंचकर हाइड्रोफोबिया बीमारी बनाता है। कुछ दिन में मरीज की मौत हो जाती है।
इनका कहना है
एंटी रेबीज वैक्सीन के उत्पादन से लेकर सप्लाई तक में दिक्कत है। सालभर से वैक्सीन में भारी कमी आने से रेबीज का खतरा बढ़ा है। शासन से कई बार पत्रचार किया है। 19 को आरसी-रेट कांट्रैक्ट खत्म होने के बाद स्थिति और बिगड़ सकती है।
डा. एमएम भदौरिया, डिप्टी सीएमओ ड्रग
ये हैं हालात
अप्रैल से अब तक
- 20200 वायल वैक्सीन की डिमांड लखनऊ भेजी गई।
- 6535 वायल वैक्सीन ही स्वास्थ्य विभाग को मिलीं।
- जिले में हर माह करीब 1200 वायल की खपत।
- जिला अस्पताल में गत चार माह में 7612 मरीज इंजेक्शन लगवाने पहुंचे।
पश्चिमी उप्र में ये हैं खतरे
- सेंचुरी बिखरी होने की वजह से बड़ी तादाद में बंदर गांवों तक पहुंचते हैं, जिनके काटने से रेबीज हो सकता है।
- मीट बहुल क्षेत्र होने के कारण कुत्तों का हिंसक होना भी बड़ा कारण है।
- शहरी क्षेत्र में कुत्तों की संख्या तीन गुना हो गई है। नगर निगम अंकुश नहीं लगा सका, इससे भी रेबीज का खतरा बढ़ा है।