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औघड़नाथ का दरबार..14 लाख लीटर जल से धरा का उद्धार

धर्म और विज्ञान का मिलन पर्यावरण को संरक्षित करने में कितना सहायक हो सकता है इसकी बानगी औघड़नाथ मंदिर में दिखी। सात दिन के कांवड़ महापर्व के दौरान 14 लाख लीटर जल धरती के गर्भ में पहुंचाया गया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 01 Aug 2019 07:00 AM (IST)Updated: Thu, 01 Aug 2019 07:00 AM (IST)
औघड़नाथ का दरबार..14 लाख लीटर जल से धरा का उद्धार

मेरठ, जेएनएन: धर्म और विज्ञान का मिलन पर्यावरण को संरक्षित करने में कितना सहायक हो सकता है, इसकी बानगी औघड़नाथ मंदिर में दिखी। सात दिन के कांवड़ महापर्व के दौरान 14 लाख लीटर जल धरती के गर्भ में पहुंचाया गया। रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के जरिए बुढ़ाना गेट स्थित सनातन धर्म धर्मेश्वर महादेव मंदिर में हजारों लीटर जल बचाया गया। यदि हर मंदिर में ऐसी ही पहल हो तो फिजूल बहने वाले लाखों लीटर पानी से धरती की कोख हरी की जा सकती है। समुद्र मंथन से निकले विष का पान करके भगवान आशुतोष ने जगत की रक्षा की थी। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार, हलाहल के ताप को शांत करने के लिए गंगाजल से अभिषेक करने की परंपरा है। परंपरा का निर्वहन करते हुए इस बार भी शिवरात्रि पर 5.5 लाख भक्तों ने हरिद्वार से गंगाजल लाकर औघड़नाथ मंदिर में भगवान का जलाभिषेक किया। भक्तों का यह प्रयास धरती के जलस्तर को बढ़ाने में कारगर साबित हुआ है। सोमवार और मंगलवार को दो लाख लीटर जल औघड़दानी पर चढ़ाकर भक्तों ने एक तरह धरती की प्यास ही बुझाई है।

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छह हजार वर्ग मीटर में मंदिर परिसर

औघड़नाथ मंदिर का क्षेत्रफल छह हजार वर्ग मीटर का है। मंदिर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के दो पिट बनाए गए हैं। परिसर का फर्श पत्थर का है और शिखरों और मंडप में भी पत्थर लगा है। वर्षा और स्वयंभू शिवलिंग पर किए जाने वाले अभिषेक का जल इन पिटों के जरिए फिल्टर से गुजरते हुए भूगर्भ में पहुंचता है। मंदिर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम डिजायन और निर्मित करने वाले इंजीनियर बीडी शर्मा ने बताया कि अगर बारिश होती है तो मंदिर के पूरे परिसर का जल इन पिटों के माध्यम से धरती में 100 फुट गहराई तक पहुंचता है।

कांवड़ के दौरान बारिश बनी वरदान

शिवभक्तों पर इस बार देवराज इंद्र भी मेहरबान रहे। इससे पहले उमस भरी गर्मी थी। 25 जुलाई को 24 घंटे में 100.06 एमएम पानी बरसा। 23 जुलाई से 30 जुलाई तक लगभग 200 एमएम बारिश ने कांवड़ियों को राहत दी। बीडी शर्मा ने बताया कि औघड़नाथ मंदिर के परिसर में पांच दिन की बारिश से ही 12 लाख लीटर पानी संरक्षित हुआ है। अगर इसमें शिवरात्रि के दौरान जलाभिषेक का दो लाख लीटर जल और जोड़ लें तो कुल 14 लाख लीटर पानी धरती के गर्भ में पहुंच चुका है।

सनातन धर्म धर्मेश्वर मंदिर में 20 हजार लीटर जल बचाया

बुढ़ाना गेट स्थित धर्मेश्वर महादेव मंदिर में भी जलाभिषेक के जल को दो पिटों और फिल्टर के माध्यम से भूगर्भ में डाला जाता है। महामृत्युंजय भगवान के कुंड में भरा जाने वाला 1000 लीटर पानी भी भूगर्भ में जाता है। सोमवार और शिवरात्रि पर यहां लगभग 50 हजार लोगों ने जलाभिषेक किया। इस लिहाज से देखें तो 18 हजार लीटर पानी बचाया गया है। अगर कुंड के जल को भी जोड़ लें तो 20 हजार लीटर पानी बुढ़ाना गेट जैसे सघन आबादी क्षेत्र में बने मंदिर से बचा लिया गया है। मंदिर समिति से जुड़े पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कहा कि मंदिरों के माध्यम से जल बचाने की पहल जल संरक्षण की दिशा में क्रांति ला सकती है। भक्तों को चाहिए कि अभिषेक के दौरान दूध, दही, घी और पंचामृत प्रतीक स्वरूप थोड़ा-थोड़ा भगवान को अर्पित कर शेष गरीबों को दे दें।

फूल-पत्तियों से खाद बनाने की योजना

औघड़नाथ मंदिर में फूल, बेलपत्र, धतूरा आदि भी चढ़ाते हैं। मंदिर समिति के महामंत्री सतीश सिंघल ने बताया कि इन फूल-पत्तियों से खाद तैयार करने की दिशा में कंसल्टेंट से बात चल रही है। मंदिर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को और विस्तारित किया जाएगा।

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