Daughters Day 2022: मेरठ की इन बेटियों ने रखा मान, क्यों न हो इनपर अभिमान, बढ़ाया देश का गौरव
daughters day 2022 मेरठ शहर की बेटियों ने माता-पिता नाम रोशन कर देश का बढ़ाया गौरव। डाटर्स डे पर इन पर नाज है। और साथ ही प्रणाम इन बेटियों और प्रणाम उन माता पिता को जिन्होंने उनकी परवाज को पहचाना भी और हौंसले के पंख भी दिए।
मेरठ, जागरण संवाददाता। Daughters Day 2022 बेटियां आज न तो छुईमुई हैं और न आगे बढ़ने के लिए किसी की मोहताज। उनके पास साहस भी है और लगन धैर्य भी। वे भारत के साथ साथ विदेशी जमीन पर भी अपनी प्रतिभा को साबित कर रही हैं। भला, इन बेटियों को किसे गर्व नहीं होगा। वह अपने माता पिता का अभिमान बन चुकी हैं। प्रणाम इन बेटियों और प्रणाम उन माता पिता को, जिन्होंने उनकी परवाज को पहचाना भी और हौंसले के पंख भी दिए।
अगले जनम भी मुझे बेटी दीजो
पौराणिक शहर मेरठ की बेटियां सफलता की नई इबारत लिख रही हैं। हर तरह के कार्यक्षेत्र में बेटियों ने अपनी पहचान बनाई है। खेलों में तो बेटियों ने मेरठ का नाम विश्व के फलक पर लिख दिया है। यह ऐसी बेटियां हैं जिनके माता पिता यही प्रार्थना करते हैं ऐसी बेटी मुझे अगले जनम में भी दीजो। शहर वासियों ने भी इन बेटियों पर अभिमान है।
रूपल ने दो मेडल जीत कर किया गौरवान्वित
रोहटा रोड स्थित जैनपुर गांव की रूपल ने कोलंबिया के काली शहर में आयोजित जूनियर वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में दो पदक जीते। रूपल ने जूनियर वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में चार गुणा 400 मिक्स्ड रिले में रजत पदक और 400 मीटर दौड़ में कांस्य पदक हासिल किया है। पिता ओमवीर सिंह और माता ममता अपनी बेटी के प्रदर्शन पर फूले नहीं समाए। बेटी जब पदक जीत कर पहली बार गांव पहुंची तो चरणों में कार से उतर कर दौड़़ कर मां के चरणों में सिर टिका कर प्रणाम किया। मां ने भी बेटी को छाती से लगा लिया।
तीन दिन तक नहीं खाया था खाना
माता ममता ने बताया कि रूपल का गांव के स्कूल तक खेलना तो अच्छा लगता था, लेकिन स्टेडियम जाने लगी तब परेशानी हो रही थी। इसीलिए पिता ओमवीर ने खेलने से मना किया तो रूपल ने तीन दिन तक खाना नहीं खाया। पिता ने बताया कि खेत में काम करना और रूपल को स्टेडियम तक ले जाने में परेशानी के कारण ही वह बेटी को खेलने से मना करते थे। लेकिन बेटी ने तो पदक लाकर सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। अब उसका खेल और पढ़ाई ही मेरा मिशन है।
कठिन संघर्ष की कहानी है अन्नू रानी की उपलब्धि
कामनवेल्थ खेलों में मेरठ की ओलिंपियन अन्नू रानी ने देश की झोली में पदक डाला। विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के प्रदर्शन में सुधार करते हुए 60 मीटर की दूरी पर भाला फेंका। यह पदक जीत कर उन्होंने ओलंपिक में गोल्ड मेडल हासिल करने वाले नीरज चोपड़ा की कमी नहीं खलने दी। इस प्रतियोगता में नीरज ने हिस्सा नहीं लिया था।
गन्ना फेंककर किया अभ्यास
गांव बहादरपुर के निवासी पिता अमरपाल ने बताया कि कठिन संघर्षों से अन्नू ने यह मुकाम हासिल किया है। उनकी संघर्ष की कहनी फिल्म की पटकथा की तरह है। सुबह चार बजे उठकर वह दौड़ लगाती थी। आर्थिक स्थिति उतनी मजबूत न होने के कारण वह जैवलिन न होनेपर गन्ना लेकर उसे फेंकने का अभ्यास करती थी। बाद में गुरुकुल प्रभात आश्रम जो उनके गांव से 20 किलोमीटर दूर है, वहां अभ्यास करने जाने लगी थी।
पहली बार किसी महिला ने पदक जीता
अन्नू ने वर्ष 2014 से 2022 तक लगातार नौ साल रिकार्ड भला फेंका। हर साल वह अपने ही रिकार्ड को तोड़ती गईं। अन्नू का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन इसी साल जमशेदपुर में 63.82 मीटर है। कामनवेल्थ गेम्स के इतिहास में पहली बार किसी महिला ने भाला फेंक स्पर्धा में देश के लिए कोई पदक जीता है। जीवट की धनी कांस्य पदक विजेता अन्नू रानी की इस सफलता के पीछे दस साल की तपस्या है। अन्नू पूर्ण रूप से शाकाहारी है और मेरठ ही नहीं देश की बेटियों के लिए आदर्श स्थापित कर रही है।
बेटी ने मां के सपने को साकार किया
प्रियंका गोस्वमी बर्मिंघम कामनवेल्थ गेम्स में पैदल चाल इवेंट में रजत पदक हासिल किया है। दुबली पतली कद काठी की प्रियंका की माता अनीता गोस्वामी ने बताया कि इंवेट के पहले सपने में घोड़े दौड़ते हुए देखे थे। उसी दिन प्रियंका ने फोन किया और सहसा ही मां से पूछ बैठीं कि मन में क्या चल रहा है। मां ने दौड़ते घोड़ों को सपने में देखने की बात कही।
लय को रखा बरकरार
बेटी प्रियंका ने भी मानों मां का सपना साकार करने की ठान ली और पूरे आत्मविश्वास के साथ पैदल चाल प्रतियोगिता में उतरीं और अंत तक अपनी लय को बरकरार रख प्रतियोगिता जीत ली थी। प्रियंका मूल रूप से मुजफ्फरनगर जिले के बुढ़ाना तहसील के गांव गढ़मलपुर सागड़ी गांव की निवासी हैं। फिलहाल पिता मदनपाल गोस्वामी परिवार समेत मेरठ में रह रहे हैं।