बदलाव की बयार: बुलंदशहर के गांवों में बिना यूरिया-कीटनाशक के लहलहाई फसल
जिला परियोजना समन्वयक डा. कमल सिंह ने बताया कि एनजीओ एपोफ आर्गेनाइजेशन किसानों को जैविक खेती के लिए लगातार प्रेरित करता है जबकि सिमफील्ड संस्था फसल की निगरानी करती है। जनपद के इन गांवों में जैविक किसानों के अब तक 50 समूह बनाए जा चुके हैं।
राजू मलिक, बुलंदशहर। नमामि गंगे योजना का असर दिखने लगा है। दो वर्ष की मुहिम के बाद अब बुलंदशहर में 39 गांवों के किसान जैविक खेती कर रहे हैं। इन गांवों में यूरिया, डीएपी अथवा अन्य कृषि रसायन का प्रयोग अब नहीं किया जाता। यहां अब जीवामृत (गोमूत्र, गोबर, पानी, मिट्टी आदि से तैयार) का प्रयोग कर जैविक तरीके से फसलें उगाई जा रही हैं। गंगा किनारे बसे इन गांवों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की कवायद जारी है।
पतित पावनी गंगा जिले के स्याना, ऊंचागांव, अनूपशहर और नरौरा ब्लाक के विभिन्न क्षेत्रों से होकर बहती है। गंगा किनारे बसे इन गांवों में पहले रासायनिक खाद व कीटनाशक का ही इस्तेमाल होता था और खेतों से होता हुआ बारिश का पानी गंगा में पहुंचकर पानी को प्रदूषित कर रहा था। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए नमामि गंगे पारंपरिक कृषि विकास योजना के अंतर्गत इन गांवों को चळ्ना गया था। इन गांवों में जैविक खेती कराने के लिए दो संस्थाओं को नामित किया गया और उन्हें ही निगरानी रखने की जिम्मेदारी भी दी गई। आज ढकनंगला, नावीदयी बांगर, रामभाट बांगर, रतूका नंगला, नित्यानंद पुर, निवाड़ी बांगर, मोहम्मदपुर बांगर, चासी, फतेहपुर, हसनपुर बांगर, अहार, रबाना कटीरी जैसे 39 गांवों में जैविक खेती की धूम है।
अभियान से जुड़े 1,525 किसान : इन 39 गांवों के 1,525 किसान अब जैविक खेती की मुहिम से जुड़ चुके हैं। करीब 1,030 हेक्टेयर में जैविक फसल लहलहा रही है। यहां किसान समूह बना दिए गए हैं। इन समूहों द्वारा यहां से तैयार गुड़, शक्कर, गेहूं, मक्का, ज्वार, उड़द, मूंग, मसूर, चावल, सरसों, आलू, प्याज, गाजर, हरी मिर्च आदि की पैकिंग कराई जाती है। किसान समूह यह सुनिश्चित करता है कि बाजार के सापेक्ष किसानों को अधिक मूल्य प्राप्त हो।
निवाड़ी बांगर गांव के शिशुपाल, मोहम्मदपुर के किसान कल्याण सिंह और कर्णवास निवासी किसान लव कुमार बताते हैं कि जैविक विधि से लागत तो कम हो ही गई है, आमदनी भी बढ़ गई है। जिला परियोजना समन्वयक डा. कमल सिंह बताते हैं कि बीते दिनों लखनऊ में आयोजित यूपी महोत्सव में यहां का पैक किया हळ्आ जैविक गुड़ 150 रुपये प्रति किलो तक बिका था। आमतौर पर इसकी कीमत 75 रुपये के आसपास ही होती है। जैविक खेती के माध्यम से मृदा शक्ति में वृद्धि और पर्यावरण को शुद्ध रखने का अभियान जारी है।