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Coronavirus: एक अकेला इस शहर में योद्धा, जो रोजाना लड़ता है असंख्‍य विषाणुओं से Meerut News

मेरठ में एक एसा एकेला डॉक्‍टर जो कोरोना के संक्रमण के बीच रहकर टेस्‍ट की रिपोर्ट देता है। साथ ही शहर के अन्‍य जगहों पर भी कर्म योद्धाओं द्वारा किया जा रहा कार्य सराहनीय है।

By Taruna TayalEdited By: Published: Wed, 08 Apr 2020 05:41 PM (IST)Updated: Wed, 08 Apr 2020 05:41 PM (IST)
Coronavirus: एक अकेला इस शहर में योद्धा, जो रोजाना लड़ता है असंख्‍य विषाणुओं से Meerut News
Coronavirus: एक अकेला इस शहर में योद्धा, जो रोजाना लड़ता है असंख्‍य विषाणुओं से Meerut News

मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी] एक अकेला इस शहर में..। फिल्म घरौंदा में अमोल पालेकर पर फिल्मायी गई गुलजार की इन पंक्तियों को हम अपने शहर के माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. अमित गर्ग के लिए गुनगुना सकते हैं। जहां कोरोना के एक-एक वायरस से बचने को हम बार-बार हाथ धो रहे हैं, सैनिटाइजर लगा रहे हैं, घर की दहलीज में बंधे हैं, वहीं यह योद्धा रोजाना अकेले असंख्य विषाणुओं से रूबरू होता है। भार 12 जिलों का है, क्षमता केवल 75 जांचों की, इसलिए डबल शिफ्ट कर रहे हैं। अमित रात को लगाया सैंपल सुबह पढ़ते हैं, सुबह वाला रात को। उनके बनाए रिजल्ट का इंतजार ऐसे रहता है जैसे कभी बोर्ड परीक्षा का हुआ करता था। हमारी निगाह तो रोजाना अमित पर होती है, लेकिन वह अपनी निगाह कहां टिकाएं.. जरा सोचिएगा। मुश्किल पलों में शायद वह यही गुनगुनाते होंगे ..इस अजनबी से शहर में, जाना-पहचाना ढूंढता है..एक अकेला।

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जब बरसे विश्‍वास के फूल 

..मन का मनका फेर। कबीर दास के इस सुझाव का असर मेरठ में दिखा 106 दिन में। जिस जगह पर सीएए के विरोध में खाकी के खिलाफ अविश्वास की लकीर खींची गई थी वहीं विश्वास के फूल बरसे। पुरानी कहानी भुला दी गई और नई शुरुआत की नींव रखी गई। लोग कम थे, लेकिन संदेश बड़ा था। दरअसल, यह बदलाव कोरोना लेकर आया। आज सड़कों-गलियों में खाकी खुद की परवाह किए बगैर लोगों की मदद में जुटी है। राशन से पका खाना तक पहुंचा रही है। इसी खाकी के मेरठी मुखिया का काफिला शनिवार को जब लिसाड़ी गेट के चौराहे से गुजरा तो अचानक गुलाब की पंखुडिय़ां बरसने लगीं। नफरत की बू खत्म हो चुकी थी, सहयोग व कृतज्ञता की खुशबू फिजा में तैरने लगी। कप्तान भी आह्लादित थे। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ने भी दोनों हथेलियों को जोड़ आभार जताया, कहा-खाकी रक्षा करती आयी है, करती रहेगी।

लॉकडाउन ने खोला दिमागी दरवाजा

इस लॉकडाउन ने हमारे दिमाग की बत्ती जला दी है। प्रकृति को समझने और उसके मूल स्वरूप की तस्वीर देखने का मौका मिला है। जिंदगी की रफ्तार को थमे 12 दिन हुए हैं, लेकिन जो तस्वीरें उभरकर हम तक आ रही हैं, वह शायद इस पीढ़ी के लिए अनोखी हैं, बिल्कुल ताजी। एनसीआर के लोग अगर हिंडन-यमुना में साफ पानी देखें, मेरठ के आबूलेन तक औघडऩाथ मंदिर में बोल रहे मोर की आवाज सुनी जाए, भोर से पहले ही चिडिय़ों का कलरव कानों तक पहुंचे.. यह खास तो है ही। एक संदेश भी है कि हम अपनी तथाकथित ‘बिजी लाइफ’ में इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि प्रकृति पर ध्यान तक नहीं देते। इसके एकतरफा संवाद को अनसुना करते हैं हर रोज, हर दिन। आज साफ हवा, साफ पानी हमारे लिए संदेश है, हम फिर इन्हें इतना न बिगाड़ें कि खुद पर शमिर्ंदा होना पड़े। 

न तुम जानो न हम

जमातियों में कोरोना संक्रमण से शहर भय और चिंता के आवरण से घिरा हुआ था। अफसर भी हैरान-परेशान थे। जमातियों से पूछताछ चल रही थी। गुस्से में तमतमाए लंबू महाराज सवाल पर सवाल दागे जा रहे थे। जमाती चुप खड़े देख रहे थे, मानों लब पढ़ रहे हों। देर तक जनाब बोलते रहे, जो मन में आया सो..। जवाब न मिला तो चुप्पी का कारण पूछा। अब बारी जमातियों की थी, उन्होंने मुंह खोला तो अफसरों के बीच हंसी का फव्वारा फूट पड़ा। पता चला जमाती इंडोनेशियाई हैं। काफी देर तक अफसर हास्य रस में डूबते-उतराते रहे। लंबे अरसे बाद कोरोना योद्धाओं के चेहरे पर हंसी लौटी थी। ऐसा लगा मानों बड़ी मुश्किल से मौका मिला है और इस पल को वे ज्यादा से ज्यादा जी लेना चाहते हैं। बात यह कहकर पूरी की ..चलो अच्छा है, क्या कहा-क्या सुना गया..न तुम जाने न हम।


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