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Coronavirus Black Fungus: मेरठ में ब्लैक फंगस की दवाओं की आई भारी कमी, बाजार से भी गायब; वसूले जा रहे तीगुने दाम

मेडिकल कालेज समेत कई अस्पतालों में इसके दर्जनों मरीज मिल चुके हैं लेकिन इनको दवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। बाजार से भी दवाएं गायब हो गईं हैं। वहीं कई जगहों पर चार गुना से भी ज्‍यादा दाम वसूले जा रहे हैं।

By Himanshu DwivediEdited By: Published: Sun, 16 May 2021 09:19 AM (IST)Updated: Sun, 16 May 2021 09:19 AM (IST)
मेरठ में ब्‍लैक फंगस की दवाओं की भारी कमी आई है।

मेरठ, जेएनएन। कोरोना महामारी अपने साथ ब्लैक फंगस का खतरनाक साइड इफेक्ट भी ले आई। मेडिकल कालेज समेत कई अस्पतालों में इसके दर्जनों मरीज मिल चुके हैं, लेकिन इनको दवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। वैकल्पिक दवाओं से इलाज करना पड़ रहा है, वहीं कई मरीजों का आपरेशन कर प्रभावित अंगों को निकालना भी पड़ा है। मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा. ज्ञानेंद्र सिंह बताते हैं कि ब्लैक फंगस के पांच मरीज मिल चुके हैं, जिनमें दो को रेफर किया गया। उनके इलाज के लिए अम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन की भारी कमी है। इन मरीजों को 14 दिनों तक इलाज देना पड़ता है। निजी अस्पतालों ने दिल्ली से दवाएं मंगवाई हैं।

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ब्‍लैक फंगस के साथ कोरोना की दवाएं भी गायब

खैरनगर बाजार में ब्लैक फंगस ही नहीं, कोरोना में प्रयोग होने वाली कई साधारण दवाएं भी गायब हैं। मेडिकल कालेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. लोकेश ने बताया कि अम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन सामान्य रूप से दो हजार रुपये में मिलता है, लेकिन बाजार में इस समय इसकी कीमत सात हजार रुपये तक पहुंचने की सूचना मिल रही है। दवा व्यवसायी रजनीश कौशल ने बताया कि ब्लैक फंगस के इलाज में आइसोकोनाजोल टेबलेट का भी प्रयोग होता है, जिसकी कमी पड़ गई है। पोसोकोनाजोल सीरप की कीमत 19 हजार तक बताई जा रही है। 100 मिलीग्राम की दस गोली की कीमत चार हजार रुपये है।

आधा दर्जन मरीजों का आपरेशन

कोराना महामारी के दौरान ब्लैक फंगस के रोज नए मरीज मिल रहे हैं। मेरठ में इससे प्रभावित आधा दर्जन मरीजों का अब तक आपरेशन किया जा चुका है, जबकि ओपीडी में ब्लैक फंगस के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। उधर, मेडिकल कालेज में भी दो मरीजों के आपरेशन की तैयारी है। आनंद अस्पताल के ईएनटी सर्जन डा. पुनीत भार्गव ने बताया कि डा. संजय अग्रवाल, डा. एनपी सिंह, डा. अजय गुप्ता, डा. सुभाष यादव और डा. कीर्ति जैन के सहयोग से कलीना-सरूरपुर निवासी 48 साल के मरीज, हस्तिनापुर के रानीनंगला निवासी 52 साल के मरीज और रोहटा रोड कंकरखेड़ा निवासी 38 साल के नरेंद्र कुमार का इंडोस्कोपिक विधि से आपरेशन किया गया। इलाज में एंटीफंगल थेरपी का चार से छह सप्ताह तक का कोर्स चल सकता है। उधर, न्यूटिमा अस्पताल के डा. संदीप गर्ग ने बताया कि डा. रोहित बालियान एवं डा. रोहित कांबोज ने एक मरीज की आंख का आपरेशन किया। कई मरीजों का इलाज किया जा चुका है, दो मरीज रेफर भी किए गए हैं। निजी अस्पतालों के कई डाक्टरों ने बताया कि मरीजों के इलाज के लिए आक्सीजन और आपरेशन थिएटर नहीं मिल रहे हैं।

ऐसे करें बचाव

कमजोर प्रतिरोधक क्षमता के मरीज ज्यादा सफाई रखें। शुगर को नियंत्रित करें। मरीज को आक्सीजन दे रहे हैं तो उसकी पाइपलाइन साफ व सूखी रखें। कोरोना के मरीजों में यह बीमारी ज्यादा मिल रही है। नाक की म्यूकोसा गीली रहती है जहां पहुंचकर फंगस आंख और दिमाग में घुसता है और मौत की भी वजह बन सकता है।

डा. संदीप मित्थल, वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ

फंगस हवा के जरिए नाक, आंख और दिमाग में पहुंचकर रक्त नलिकाओं को बंद कर देता है। इससे सूजन होने लगती है, अंधापन भी होता है। ब्रेन में पहुंचने पर ज्यादातर की मौत होती है। बचाव के लिए सफाई व शुगर पर नियंत्रण सर्वाधिक जरूरी है। रोजाना दो बार ब्रश करना चाहिए। भर्ती मरीज का मुंह व आक्सीजन पाइपलाइन रोजाना साफ करें। यह नान कोविड में भी हो सकता है। डा. पुनीत भार्गव, ईएनटी विशेषज्ञ 


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