पहले पीठ, फिर हिम्मत दिखाकर कोरोना फतह करना चाहती है मेरठ पुलिस Meerut News
कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए... लॉकडाउन के इस समय में कामगारों के सफर की दर्दभरी दास्तान कुछ ऐसी ही है।
मेरठ, [सुशील कुमार] । अफसरों की हिम्मत ही फोर्स का जुनून बन जाता है। अगर अफसर ही कोरोना संक्रमण से पीठ दिखा जाएं तो फोर्स का मनोबल कौन बढ़ाएगा। जी हां, हम बात कर रहे हैं हाल ही में हुए एक पुलिस उपाधीक्षक के स्थानांतरण की। सीओ ने अपने छोटे बच्चे की परेशानी को सामने रखकर स्थानांतरण की मांग कर डाली। तर्क वाजिब था। उनका बेटा हर रोज पापा से लिपट जाता है, उससे नहीं मिले तो रातभर रोता है। मिले तो पापा को टेंशन हो जाती है, पापा शहर का भ्रमण कर जो घर लौटते हैं। पिता की इस पीड़ा को देखकर कप्तान ने स्थानांतरण कर दिया। चंद मिनटों में इसका रिएक्शन यह सामने आया कि पुलिस में 70 फीसद परिवार ऐसे हैं, जिनके छोटे बच्चे हैं। अब, बच्चों को लेकर हर कोई स्थानांतरण की मांग करेगा। अंतत: फोर्स की पीड़ा देख सीओ ने अपना स्थानांतरण रद कराया।
खाकी को हुनर सिखा गई लक्ष्मी
लक्ष्मी के आने पर भले ही लोगों में खुशी का भाव और सम्पन्नता आ जाती है लेकिन यहां लक्ष्मी के आने पर हमारी पुलिस में दहशत का भाव आ गया था। हम बात कर रहे हैं आइजी लक्ष्मी सिंह की। कोरेाना संक्रमण का विस्फोट होने के बाद लक्ष्मी सिंह को मेरठ का प्रभारी अधिकारी बनाया गया। नामित होने के बाद ही पुलिस के होश फाख्ता हो गए। हॉटस्पॉट से लेकर बाजार तक भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस की टीमों को मुस्तैद किया गया। थाना प्रभारियों को चेतावनी दी कि शारीरिक दूरी खत्म हुई तो उनकी कुर्सी भी नहीं बचेगी। यही डर पुलिस को मुस्तैद कर गया। इसी के चलते संपूर्ण लॉकडाउन से लेकर कई नए निर्णय लिए गए, जो कोरोना संक्रमण काल में जनपद के लिए अच्छे साबित हो रहे हैं। यही सब अगर ज्यादा दिन बना रहता तो शायद हालात कुछ और बदल सकते थे।
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए...
कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए, कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए..। दुष्यंत कुमार की ये पक्तियां आज भी प्रासंगिक हैं। लॉकडाउन के इस समय में कामगारों के सफर की दर्दभरी दास्तान कुछ ऐसी ही है। छत्तीसगढ़ में दुर्ग के रहने वाले तीन कामगार घर से कुछ पैसे कमाने आए थे। हालांकि जी तोड़ मेहनत करने के बाद उनके हाथ आज भी खाली ही हैं, लॉकडाउन में सबकुछ खत्म हो गया। अब तो घर जाने की जद्दोजहद है। थाने में नाम लिखाया, पैदल चलने की हिम्मत जुटाई, तब एक साथी की तबीयत बिगड़ गई। अब ऊबड़ खाबड़ जमीन को बिछौना बनाकर ही सो जाते हैं। काम करते कभी नहीं थके, पर घर जाने की मशक्कत ने थका दिया। हिम्मत टूट गई कि पता नहीं घर पहुंच भी पाएंगे या नहीं। यही दर्द आज हर एक कामगार का है।
गलत संगत का हश्र बुरा
रजा यूसुफ उर्फ बादशाह से दोस्ती कर पुलिस कोरोना संक्रमण में फतह करना चाहती थी। जलीकोठी हॉटस्पॉट पर बादशाह को लगाकर भीड़ को काबू किया। उसी बादशाह ने पुलिस की दोस्ती का फायदा उठाकर अपने घर में भीड़ एकत्र कर ली। संयोग ही रहा कि सूचना प्रशासनिक अफसरों तक पहुंची तो बादशाह की पोल खुल गई। हालांकि पुलिस ने कार्रवाई करने में जरा भी गुरेज नहीं किया, लॉकडाउन उल्लंघन से लेकर गुंड़ाएक्ट और जिला बदर तक की कार्रवाई कर डाली। हालांकि बादशाह के साथ थानेदार की फोटो वायरल होने के कारण देहलीगेट पुलिस सवालों के घेरे में आ गई। अफसरों ने जांच में पाया कि बादशाह से दोस्ती कर जलीकोठी पर बेवजह घूमने वाले लोगों को पुलिस रोकना चाहती थी। अफसरों ने एसओ को क्लीनचिट दे दी, पर एक सीख जरूर मिली कि गलत संगत का हश्र हमेशा बुरा होता है।