मोक्षदायनी के घाट पर आस्था और संस्कृति के समागम का दुलर्भ संयोग Meerut News
कार्तिक पूर्णिमा पर पतित पावनी गंगा के मखदूमपुर मोक्षदायनी के घाटपर आस्था भक्ति और संस्कृति का दुलर्भ संयोग था।
मेरठ, [पंकज त्यागी]। कार्तिक पूर्णिमा पर पतित पावनी गंगा के मखदूमपुर मोक्षदायनी के घाटपर आस्था, भक्ति और संस्कृति का दुलर्भ संयोग था। श्रद्धालु पुण्य स्नान करने के साथ बिछड़ चुके अपनों की याद में दीपदान कर हरि के यहां मुक्ति के द्वार खोल रहे थे। दूर दराज से गंगा की रेती में कई दिनों से साथ रह रहे श्रद्धालुओं का एक दूसरे पिछड़ने का भी दिन था। मखदूमपुर घाट पर कई दिनों से श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ रह है। गंगा सफेद आंचल फैलाए अपनों को गोद में संभाले रही। तंबुओं की नगरी बसी और किसी को नहीं पता पड़ोसी कहां से आए और जब गए तो पर जब गए एक दूसरे के नाम के साथ पता भी ले गए। कुछ मनोकामना पूरी होने आए तो कुछ मनौति मांगने आए।
ढोल की थाप और महिलाओं के पुराने गीत
गंगा पूजन हो या मुंडन हो यहां वॉलीवुड के गाने नहीं बल्कि महिलाओं के पुराने गीत जो वर्षों से गाती आ रही हैं। वहीं ढोल जो कभी पूर्वज बजाते थे उन्हें महिलाएं थाप दे रही थी। ऐसा संयोग जिन्हें भागम-भागम में भूलते जा रहे फिर वहीं सदियों पुरानी याद को ताजा कर रही थी।
रेती में कबड्डी के साथ गंगा में वालीबॉल खेलते युवा भी दिखाई दिए
गंगा की रेती में यह भी संयोग था जब हम अंग्रेजों का खेल क्रिकेट पर ज्यादा ध्यान केंद्रित रखते हैं लेकिन यहां युवा जो अभी कुछ ही जीवन के बसन्त देखे हैं वह कबड्डी खेलते हुए दिखाई दिए दिए। पानी में वॉलीबाल खेल कर लुफ्त उठा रहे थे।