यदि करते हैं डिटरजेंट का इस्तेमाल तो हो जाएं सावधान, मुन्ना की लंबाई पर ब्रेक लगाने के साथ बढ़ा रहा ये परेशानी Meerut News
भारत के डिटरजेंट में अमेरिका से 100 गुना जहर मिल रहा। इससे बच्चों के ग्रोथ हार्मोस बिगड़ रहे हैं। साथ ही बांझपन का भी खतरा बढ़ गया है।
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। अगर बच्चे की लंबाई अचानक बढ़कर रुक गई तो संभव है कि डिटरजेंट का रसायन नानिलफेनाल शरीर में हार्मोन्स की प्रक्रिया डिस्टर्ब कर रहा है। 25 ऐसी वस्तुएं हैं, जिनमें पहुंचकर ये रसायन शरीर की बायोलोजिकल घड़ी को बिगाड़ देता है। बांझपन का भी बड़ा कारण है। आइआइटी गुवाहाटी और टाक्सिक लिंक एनजीओ के शोध में डिटरजेंट में 11.92 प्रतिशत तक नानिलफेनाल मिला। इसे हार्मोन्स को बिगाड़ने वाला रसायन (एंड्रोक्राइन डिसरप्टर) कहते हैं। मेरठ में ¨हडन नदी में 26.55 पीपीएम-पार्ट प्रति मिलियन मिली, जो देश में दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। मेडिकल कालेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष डा. विजय जायसवाल का कहना है कि बच्चों में जो हार्मोन्स 11 साल की उम्र में रिलीज होने थे, उन्हें ऐसे केमिकल 8-9 साल में बनाने लगते हैं। शरीर की सिग्लनिंग प्रणाली के नियंत्रण का स्थान (हाइपोथेलमस) और सूचना तंत्र डिस्टर्ब हो जाता है।
शरीर में दाखिल हो रहा केमिकल
ये पिट्यूटरी ग्रंथि को भी नियंत्रित करती है, जहां से बच्चों में विकास के हार्मोन्स बनते हैं। इन्हीं गड़बड़ियों से बच्चों की उम्र अचानक तेजी से बढ़कर रुक जाती है। लड़कियों का समय पूर्व विकास होने लगता है। डीडीटी, कीटनाशक से भी लड़कों में टेस्टेस्टेरान और लड़कियों में एस्ट्रोजन हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ने से लंबाई पर असर पड़ता है। रूम फ्रेशनर, कास्मेटिक उत्पाद, पेंट, लिपिस्टिक, टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री, और गोंद से भी नानिलफेनाल शरीर में दाखिल हो रहा है। आइआइटी की रिपोर्ट के मुताबिक नदियों में यह केमिकल मछलियों के शरीर में जमा हो जाता है। मनुष्यों में आंत, दिमाग व अन्य अंगों में वसा में पहुंचता है। केमिकल का 75 फीसद एक्सपोजर मछली खाने से है।
ये हैं खास बिंदु
- नानिलफेनाल रसायन यूएसए, डेनमार्क, चीन व यूरोपियन संघ में पूर्ण प्रतिबंधित है।
- यूरोप में टेक्सटाइल्स में 0.001 एमजी प्रति लीटर का मानक है।
- भारत के जलस्रोतों में 5.0 मिग्रा. प्रति लीटर तक मान्य है।
- डिटरजेंट व नदियों में रसायन भारतीय मानक से आठ गुना व यूएस से सौ गुना मिले।
इन्होंने कहा...
एंड्रोक्राइन डिसरप्टर हमारे कमरे से लेकर किचन एवं घरों में हर तरह हैं। ये हाइपोथेलमस पर असर डालकर शरीर की आन-आफ प्रक्रिया खराब करते हैं। बच्चों की लंबाई रुकने, वक्त से पहले मूछें आने या शरीर विकसित होने से लेकर आंतों की भी बीमारियां हो सकती हैं।
-डा. विजय जायसवाल, विभागाध्यक्ष, बाल रोग विभाग, मेडिकल कालेज