अध्यात्म व आयुर्वेद का बेजोड़ संगम है चतुर्वेद यज्ञ
वेस्टर्न कचहरी रोड स्थित त्यागी हॉस्टल में चल रहे चतुर्वेद पारायण महायज्ञ से अध्यात्म का संदेश तो मिल ही रहा है साथ ही जड़ी बूटियों से तैयार विशेष आहुति सामग्री से पर्यावरण को भी शुद्ध किया जा रहा है।
मेरठ, जेएनएन : वेस्टर्न कचहरी रोड स्थित त्यागी हॉस्टल में चल रहे चतुर्वेद पारायण महायज्ञ से अध्यात्म का संदेश तो मिल ही रहा है साथ ही जड़ी बूटियों से तैयार विशेष आहुति सामग्री से पर्यावरण को भी शुद्ध किया जा रहा है। प्रतिदिन असाध्य रोगों का उपचार भी किया जा रहा है। आयोजन में मुख्य रूप से डा. अनिल कुमार, यशो धर्मा, संजीवेश्वर व व्यवस्थापक महेंद्र सिंह त्यागी का विशेष योगदान रहा।
180 जड़ी बूटियों से दी जा रही आहुति
गुरुकुल महाविद्यालय लाक्षागृह बरनावा के योगाचार्य अरविंद शास्त्री ने बताया कि महायज्ञ में जिस सामग्री से आहुति दी जा रही है, वह विशेष तौर पर 180 जड़ी बूटियों से तैयार की गई है। इसमें मुख्य रूप से सुगंध कोकला, सुगंध बाला, जटामासी, गुग्गुल, लोबान, चिरायता, गिलोय, नीम के पत्ते, तुलसी, अगर-तगर, बच्छ, ब्रहमी व शंखपुष्पी आदि मिश्रित हैं। इसमें सुगंधित, रोगनाशक व पौष्टिक को 1:4.2 के अनुपात में मिश्रित किया जाता है।
प्रतिदिन 16 कुंतल लकड़ी, घी व सामग्री का उपयोग
आयोजक डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि पारायण यज्ञ के लिए 11 वेदी पर 22 यजमान मौजूद हैं। आहुति के लिए प्रतिदिन सात घंटों में चारों वेदों के 20 हजार मंत्रों के उच्चारण के साथ आहुति दी जा रही है। आहुति में प्रतिदिन दो कुंतल सामग्री, 12 कुंतल लकड़ी व दो कुंतल गाय का शुद्ध घी का उपयोग किया जा रहा है।
वायरल के कारण चुना यह मौसम
डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि जिस विशेष सामग्री, लकड़ी व गाय के घी से यज्ञ में आहुति दी जा रही है। उससे वातावरण तो शुद्ध होता ही है साथ ही असाध्य रोगों का उपचार भी किया जा रहा है। यज्ञ से निकलने वाले धुंए से रोगों का विनाश होता है। यज्ञ में अग्नि विघटन के कारण विषैले कार्बन समाप्त हो जाते हैं। आजकल बदलते मौसम में वायरल का यह रामबाण इलाज है। इसी लिए चतुर्वेद महायज्ञ के आयोजन को अक्टूबर माह में ही चुना गया।