..और हर दिल में अमर हो गई वह वीरगाथा
सारागढ़ी दिवस पर आज सेना देगी सिख वीर सपूतों को श्रद्धांजली। 121 साल पहले हुए इस युद्ध को इतिहास के पन्नों में भले ही स्वर्णिम स्थान न मिला हो लेकिन वह युद्ध हर ¨हदुस्तानी के दिल में जोश भरता है।
मेरठ। सारागढ़ी का युद्ध दुनिया के इतिहास में चंद युद्धों में से एक है जिसे साहस व पराक्रम की मिसाल माना जाता है। 121 साल पहले हुए इस युद्ध को इतिहास के पन्नों में भले ही स्वर्णिम स्थान न मिला हो लेकिन वह युद्ध हर ¨हदुस्तानी के दिल में जोश भरता है। देश की आजादी के 50 वर्ष पहले वीर सिखों के लहू से लिखी गई साहस व वीरता की अमिट गाथा ने अंग्रेजों के दिलों में भी भारतीय वीरों के प्रति सम्मान पैदा कर दिया था। उन्हीं वीरों को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए हर साल 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस मनाया जाता है। मेरठ छावनी में भी सारागढ़ी मेमोरियल पर सेना के अफसर व जवान उन वीरों की वीरता को सलामी देंगे।
12 सितंबर, 1897
सारागढ़ी उत्तर-पश्चिम सीमांत पर स्थित था जो अब पाकिस्तान में खैबर पख्तून-ख्वा के नाम से जाना जाता है। 27 अगस्त से 11 सितंबर 1897 के दौरान पस्तूनों ने सारागढ़ी पोस्ट पर कब्जा करने के लिए कई हमले किए लेकिन 36वीं सिख रेजिमेंट (अब 4 सिख) ने उन्हें नाकाम कर दिया। 12 सितंबर 1897 को 21 सिख सैनिकों ने हवलदार ईशर सिंह के नेतृत्व में भागने या आत्म समर्पण करने की बजाय लड़ने का निर्णय लिया। सबसे पहले भगवान सिंह शहीद हुए और सबसे अंत में सिग्नलिंग पोस्ट संभाल रहे गुरमुख सिंह थे। अपनी बारी आने तक वे हर पल की जानकारी लॉकहार्ट को देते रहे। बाद में पोस्ट पर कब्जा लेने पहुंची अंग्रेजी फौज को 21 सिख जवानों के साथ छह सौ पस्तूनों के शव मिले थे।
दिलों में बसें हैं उनके नाम
50 के दशक में मेरठ छावनी में तैनाती के दौरान सिख रेजिमेंट ने यहां सारागढ़ी वार मेमोरियल और गुरुद्वारा बनवाया था। साल 1997 में इस मेमोरियल को सब एरिया व सिख रेजिमेंट की दूसरी बटालियन द्वारा संवारा गया। वर्तमान में इसकी देखरेख छावनी स्थित पाइन डिवीजन की ओर से किया जा रहा है। यहां सभी शहीदों के नाम पर अलग पत्थर लगाए गए हैं जो उनकी कुर्बानी को बयां करते हैं। यूनेस्को ने भी इस घटना को विश्व इतिहास में सामूहिक वीरता के महानतम उदाहरणों की सूची में शामिल किया है।
य वा याद करेंगे कुर्बानी
योद्धा एकेडमी में बुधवार को युवाओं को सारागढ़ी युद्ध के बारे में बताया जाएगा। एकेडमी संचालक ले. कर्नल अमरदीप त्यागी के अनुसार फौजी बनकर देश की सेवा करने की तैयारी कर रही युवा पीढ़ी को विश्व के महानतम युद्ध और उसमें हुए भारतीय बलिदान से युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए यह आयोजन किया जा रहा है।