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LokSabha Election 2019 : चुनावी भंवर में भाजपा की जाट-गुर्जर सियासत

वेस्ट यूपी में इस बार भगवा सियासत ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां से पार्टी में जाट और गुर्जर चेहरों का वजन नए सिरे से तय होगा। कुल मिलाकर राजनीति को एक नई दिशा मिलेगी।

By Ashu SinghEdited By: Published: Mon, 25 Mar 2019 10:53 AM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 10:53 AM (IST)
LokSabha Election 2019 : चुनावी भंवर में भाजपा की जाट-गुर्जर सियासत
LokSabha Election 2019 : चुनावी भंवर में भाजपा की जाट-गुर्जर सियासत
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। पश्चिमी उप्र में भगवा सियासत ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां से पार्टी में जाट और गुर्जर चेहरों का वजन नए सिरे से तय होगा। खासकर, केंद्रीय मंत्री डॉ.सत्यपाल सिंह और डॉ.संजीव बालियान की प्रतिष्ठा दांव पर है। पश्चिमी उप्र में दोनों चौ.अजित सिंह के मुकाबले जाट नेता बनने का दावा जता चुके हैं। अगर भाजपाई जीते तो पश्चिम में जाट सियासत का नया सूरज उगेगा। किंतु हार मिली तो जाट पूरी तरह रालोद की छतरी में लौट सकता है। भाजपा में गुर्जर राजनीति की दिशा भी यहीं से तय होगी।
जाट नेता अब कौन? बताएगा चुनाव
पश्चिमी उप्र की दर्जनभर सीटों पर जाट और गुर्जर मतदाताओं की बड़ी तादाद है। 2014 के लोकसभा चुनावों में दोनों वर्ग खुलकर भाजपा के साथ गया, जिससे रालोद मुखिया चौ.अजित सिंह जैसे दिग्गज भी हार गए। लेकिन,2019 के चुनावों तक सियासी दरिया में काफी पानी बह चुका है। 2018 में कैराना व नूरपुर उपचुनावों में जाट वर्ग अजित सिंह के साथ गया। 2019 में सपा-बसपा के साथ रालोद ने भाजपा की कड़ी घेरेबंदी की है। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद ध्रुवीकरण से हाशिए पर पहुंचे चौ. अजित सिंह इस बार यहीं से चुनाव लड़कर इस मिथक को तोड़ना चाह रहे हैं। इधर, आरक्षण एवं बकाया गन्ना भुगतान समेत तमाम मसलों को लेकर जाटों में नारागजी बढ़ी है।
घेरेबंदी से उबरने लगे ‘छोटे चौधरी’
भाजपा ने अजित सिंह की घेरेबंदी में जाट चेहरों को जमकर प्रमोट किया। 2017 विस चुनावों में दर्जनों जाटों को टिकट देने,सतपाल मलिक को जम्मू-काश्मीर का राज्यपाल बनाने के साथ ही बागपत सांसद सत्यपाल सिंह को केंद्रीय मंत्री बनाया गया। इससे पहले संजीव बालियान भी मोदी की टीम में मंत्री रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने बिजनौर,मुजफ्फरनगर एवं बागपत में जाट चेहरा उतारा है। भाजपा का एक खेमा कहता है कि इस बार रालोद से गठबंधन की पैरवी की गई थी,लेकिन इसे सत्यपाल सिंह और संजीव बालियान ने खारिज कर दिया। अब उन पर जाट वोटों को भाजपा के पाले में करने का दबाव है।
तीन जाट नेता..मझधार में नैया
भाजपा ने 14 लोकसभा सीटों में से सर्वाधिक तीन पर जाट प्रत्याशी उतारा है, लेकिन सपा-बसपा और रालोद के हाथ मिलाने से बागपत में भाजपा प्रत्याशी डॉ.सत्यपाल सिंह के सामने कड़ी चुनौती आ सकती है। 2014 लोकसभा चुनावों के आंकड़ों पर जाएं तो गठबंधन 54 फीसद वोटों पर लड़ रहा है, जबकि भाजपा 42 फीसद पर है। बिजनौर में कुंवर भारतेंद्र 45 फीसद वोट पाकर जीते,जबकि सपा-बसपा और रालोद मिलकर 50 फीसद वोट पाते नजर आ रहे हैं। मुजफ्फरनगर में आंकड़ा जरूर भाजपा के पक्ष में है, लेकिन इस बार सबसे दिग्गज जाट नेता चौ. अजित सिंह खुद यहां से ताल ठोक रहे हैं। इस स्थिति में जाट मतों में बंटवारा तय है,जबकि मुस्लिम-दलित वोट अजित के लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं।
गुर्जर सियासत की भी कड़ी परीक्षा
2014 में भाजपा के टिकट पर कैराना से कद्दावर नेता बाबू हुकुम सिंह बड़े अंतर से जीते, लेकिन उनके निधन के बाद पार्टी खालीपन नहीं भर सकी। उनकी बेटी मृगांका विस व लोस दोनों उपचुनाव हारकर विरासत गंवा बैठीं। इस बार गंगोह विधायक प्रदीप चौधरी को भाजपा ने उतारा है, जिन्हें पार्टी में भितरघात से भी बचना होगा। गत दिनों गुर्जर नेता व पूर्व सांसद अवतार सिंह भड़ाना ने भाजपा का दामन छोड़कर पंजा थाम लिया। वो भी इस वर्ग को भाजपा से दूर करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। अमरोहा में भाजपा ने गुर्जर चेहरा कंवर सिंह तंवर को दोबारा उतारा है। 2014 के पैमाने पर कसें तो तंवर ने 48 फीसद, जबकि सपा-बसपा व रालोद ने 48 फीसद मत प्राप्त किया था। उधर,बिजनौर सीट पर गठबंधन ने कद्दावर गुर्जर चेहरा मलूक नागर को उतारा है,जिनका सियासी अनुभव भगवा खेमे को परेशान कर सकता है। भाजपा में गुर्जर चेहरों में असंतोष छिपा नहीं है। प्रदेश सरकार में एक भी मंत्री न बनाए जाने को लेकर अवतार सिंह भड़ाना कई बार भाजपा के खिलाफ बयान दे चुके हैं। 

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