कोरोना काल में सड़कों पर काटते रह गए चालान और वे जंगल में कर गए मंगल Meerut News
कोरोना संक्रमण रोकने को सरकार घर-घर जाकर जांच की जुगत में है लेकिन मुलाजिम हैं कि जंगल तक में संक्रमण की आशंकाओं को पनपाने से बाज नहीं आ रहे।
रवि प्रकाश तिवारी, मेरठ। कोरोना संक्रमण रोकने को सरकार घर-घर जाकर जांच की जुगत में है, लेकिन मुलाजिम हैं कि जंगल तक में संक्रमण की आशंकाओं को पनपाने से बाज नहीं आ रहे। हस्तिनापुर सेंक्चुअरी के वन्य जीव संक्रमित न हों, इसकी खातिर आम आदमी पर रोक है, लेकिन सोमवार रात को यहां जलसा हुआ। बड़ी संख्या में घराती-बराती जुटे। आलीशान शादी हुई। नियमों का मखौल उड़ाने वाला कोई और नहीं इसी वन्य क्षेत्र के रक्षक थे। बात जब खुल गई तो लीपापोती भी शुरू होने लगी। वन्य प्रशिक्षण केंद्र में कोरोनाकाल में शादी के आयोजन को मंजूरी कैसे मिली? वहां से मिली तो मजिस्ट्रेट और पुलिस कैसे मान गई? क्या किसी को ख्याल नहीं आया? जनता जानना चाहेगी कि हेलमेट-मास्क बिना सड़क पर निकलते ही चालान-मुकदमा कराने वाले अफसर क्या अपने मुलाजिमों की करतूत पर एक्शन लेते हैं, या हस्तिनापुर में ‘धृतराष्ट्र न्याय’ की छाया बनी रहेगी?।
भेद खुलता गया सिस्टम का
गुपचुप ढंग से जंगल में शादी की पार्टी का भेद खुलते ही मामले को समेटने में सिस्टम भी जुट गया। ऐतिहासिक हस्तिनापुर के वर्दीधारी ने अभूतपूर्व तर्क दिया है। पार्टी कैसे हुई, जवाब आया, अलग-अलग समय में 25-25 लोगों की अनुमति मजिस्ट्रेट स्तर से दी गई। मौजूदा व्यवस्था में थाने की रिपोर्ट बगैर अनुमति जारी ही नहीं हो सकती। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर एक ही आयोजन में अलग-अलग अनुमति कैसे जारी कर दी गई। क्या आम लोगों के लिए भी यह नियम लागू होगा। अब दावा सभी कर रहे हैं कि इतने बड़े तामझाम में क्या 30 से कम लोग ही थे और इतने की ही अनुमति दी गई थी, लेकिन व्यवस्था खुद ही सारे जवाब दे रही है। ऐसे लोगों को ध्यान रखना चाहिए कि हस्तिनापुर की धरती पर षडयंत्र तो हो सकते हैं, पर भेद भी खुल ही जाता है।
क्या अब शापमुक्त होगा हस्तिनापुर
बात हस्तिनापुर की चली है तो सरकार के दौरे को भी जरा याद कर लें। जनवरी में पड़ोस तक आकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लौट गए थे। हस्तिनापुर का कार्यक्रम रद हो गया था। पांच जुलाई को फिर कार्यक्रम बनता दिख रहा है। इस बार भी दौरा हस्तिनापुर का होना है। वही महाभारतकालीन हस्तिनापुर, जिसका शासन-प्रशासन की अनदेखी की वजह से विकास न हो पाने के लिए यहां के लोग द्रौपदी के श्रप को जिम्मेदार मानते हैं। पिछली बार पड़ोस के रामराज से ही मुख्यमंत्री के लौटने के बाद भी दोहराया गया था, हस्तिनापुर अभी द्रौपदी के श्रप से मुक्त नहीं हुआ। माना जा रहा है कि च्सरकार’ का अगर दौरा होता है तो इस बार शासन-प्रशासन की प्राथमिकता वाली सूची में इसका नाम भी शामिल हो जाएगा और सालों से उमड़-घुमड़ रही यहां के लोगों की उम्मीद के कुछ हिस्से ही सही, पूरे हो जाएंगे।
किट पर किटकिट क्यों हुई
मेरठ मेडिकल कालेज में गंभीर कोरोना संक्रमितों का इलाज चल रहा है। यहां पर डॉक्टर अति सावधानी बरत रहे हैं, लेकिन सोमवार को कुछ ऐसी तस्वीरें आईं जो चिकित्सा व्यवस्था में घुन लगने की कहानी भी बता रही हैं। काम के दौरान किट का फटना, साइज में किट का छोटा पडऩा और चिकित्सकों का गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाने की बात अपने आप में चिंताजनक है। अभी तक शिकायतें मरीजों की ओर से आ रही थीं। वे खाने की गुणवत्ता, व्यवस्था में खामी की बात उठाते रहे हैं, लेकिन अब जब डॉक्टरों ने सवाल उठाया है, वह भी साक्ष्य के साथ, निश्चित तौर पर सरकारी सिस्टम में कमीशन के खेल की बू भी इसमें आने लगी है। अब डाक्टर-मेडिकल स्टॉफ को खुद ङोलना पड़ रहा है तो हल्ला मचा है। देखना है, डॉक्टरों की इस समस्या का इलाज होता है या मामला रफादफा होता है।