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विकास की राह देख रहा शहीदों का गांव भामौरी

एक बार फिर गांव की सरकार बनने का वक्त आ गया है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Apr 2021 01:45 AM (IST)Updated: Wed, 21 Apr 2021 01:45 AM (IST)
विकास की राह देख रहा शहीदों का गांव भामौरी
विकास की राह देख रहा शहीदों का गांव भामौरी

मेरठ,जेएनएन। एक बार फिर गांव की 'सरकार' बनने का वक्त आ गया है। पंचायत चुनाव में उतरे तमाम प्रत्याशी गांव में विकास की गंगा बहाने के दावे करते नहीं थक रहे। पांच साल पहले भी तमाम दावे किए गए थे, लेकिन गांव की हकीकत को यहां रहने वालों से अच्छा भला और कौन जान सकता है। आइए आज आपको लेकर चलते हैं तहसील रोड से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर बसे शहीदों के गांव भामौरी। यहां से हर साल फौज में औसतन 10 युवक भर्ती होते हैं। कई लोग शहीद भी हो चुके हैं। बावजूद, गांव विकास की राह देख रहा है। उधर, पंचायत चुनाव में प्रत्याशी घर-घर जाकर मतदाताओं को लुभा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वे गांव में विकास कराने वाले और साफ सुथरी छवि के प्रत्याशी को ही वोट देंगे।

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भामौरी की जनसंख्या करीब सात हजार और मतदाता 4,320 हैं। कुछ घरों में पानी आपूर्ति के पाइप तो पहुंच गए लेकिन पानी नहीं पहुंच रहा है। नालियां गंदगी से अटी हैं, जिससे मच्छर पनपते हैं। पानी निकासी न होने से कुछ जगह जलभराव की समस्या है। ग्रामीणों का कहना है कि माह में केवल दो बार सफाईकर्मी आते हैं और खानापूíत कर चले जाते हैं। शादी आयोजन या बरात आदि ठहराने के लिए सामुदायिक व्यवस्था नहीं है। बरात एक स्कूल में ही ठहराई जाती है। दस्तावेजों में बन रहीं नालियां व सड़कें

गांव में कुछ सड़कें व नालियों की स्थिति अत्यंत खराब है। तहसील में अधिकारियों से शिकायत की लेकिन सुनवाई नहीं हुई। ग्रामीणों का आरोप है कि हर बार दस्तावेजों में नालियां व सड़कें बना दी जाती हैं। युवाओं ने खुद बना लिया खेल मैदान

कंपोजिट विद्यालय के पास मैदान में युवा फौज भर्ती की तैयारी करते हैं। सुनीत सोम, गौरव पाल, निशांत, कृष्णा व भीम ने बताया कि करीब साढ़े तीन साल पहले 400 मीटर का यह मैदान खुद तैयार किया था। गांव में करीब सौ युवा फौज में भर्ती के लिए सुबह पांच बजे से दौड़ आदि का अभ्यास करते हैं। दीपक पाल का कहना है, अगर मैदान में लाइट लग जाए तो रात में भी अभ्यास कर करेंगे। ग्रामीणों की पीड़ा भी सुनिए

घर में लगे नल में पानी नहीं आता है। जबकि टंकी की लाइन डले करीब छह माह हो चुके हैं।

-रामेश्वर गांव विकास के इंतजार में है। सड़कें जर्जर हैं। पानी की निकासी न होने से नालियां कूड़े से अटी हैं।

-विनय पीपल वाली गली में नालियों की सफाई करने को कर्मी कभी-कभी आते हैं। स्वयं नालियां साफ करते हैं। उसी को वोट देंगे जो क्षेत्र के विकास में भागीदार बन सके।

-सूबे सिंह गांव में विकास की आवश्यकता है। टंकियों के पाइप टूटे हैं। जो समस्याओं का निदान कर सके ऐसे ही उम्मीदवार को मत देंगे।

-सुनीता

हर समस्या का समाधान: फसाना या हकीकत?

गांव में प्रधान पद के आठ व बीडीसी के सात प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। प्रत्याशी घर-घर जाकर मतदाताओं को रिझाने में लगे हैं। ग्रामीणों के मुताबिक, सुबह करीब 6.30 बजे से प्रत्याशियों का खेत व घर पर आना शुरू हो जाता है। वे गांव के विकास में भागीदारी की बात करते है। ग्रामीण चाहे जो समस्या बताएं, वे जीतने पर इसके समाधान का आश्वासन देते है। ऐसे में ग्रामीण भी नहीं समझ पा रहे कि उनके आश्वासन या दावे हकीकत हैं या फसाना। ग्रामीणों का मानना है कि चुनाव के चलते ही प्रत्याशी दुआ-सलाम कर रहे हैं। इसके बाद तो पहचानने से भी इन्कार कर देंगे। पूर्व में भी यदि विकास हुआ होता तो समस्याएं ही क्यों होतीं।

यह है भामौरी का इतिहास

ठाकुर बहुल भामौरी गांव में 18 अगस्त 1942 को मोटो की चौपाल पर महात्मा गांधी के 'असहयोग आंदोलन' के समर्थन में आयोजित सभा में बलिया के मूल निवासी पं. रामस्वरूप शर्मा ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की अलख जगाई थी। जिस समय क्रांतिकारियों की सभा चल रही थी, उसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत के सिपाहियों की दो टोलियों ने उन्हें घेरकर गोलियां चलानी शुरू कर दीं थी। इसमें प्रहलाद सिंह, लटूर सिंह, फतेह सिंह व बोबल सिंह मौके पर ही शहीद हो गए। न जाने कितने क्रांतिकारी गोलियां, संगीन व लाठियों के हमले से घायल हो गए थे। यहां इन शहीदों का स्मारक भी हैं।


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