जयंती पर विशेष : अधिकारों के लिए लड़ना सिखा गए बाबा टिकैत
आज बाबा टिकैत का जन्मदिवस है। लंबे समय तक किसान आंदोलनों के अगुवा रहे बाबा टिकैत को आज भी किसान हर आंदोलन में याद करता है। किसान को उनकी कमी बहुत खलती है।
मेरठ (जेएनएन)। भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक एवं किसान मसीहा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत अजीम शख्सियत थे। उनके जाने के बाद अब जब भी कोई आंदोलन होता है तो किसानों को उनकी याद आती है। टिकैत ने किसानों को हक के लिए लड़ना सिखाया। किसानों में पैनी की ठोड़ पर अधिकार लेने का जज्बा पैदा किया, वह कभी झुके नहीं। शनिवार को टिकैत का जन्म दिवस है। किसानों ने उनके जन्मदिवस को किसान जागृति दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है।
तब पहली बार किया कोर्ट में सरेंडर
बसपा शासनकाल में एक बार बिजनौर में भाषण के दौरान बाबा टिकैत के मुंह से मुख्यमंत्री मायावती के लिए कोई अपशब्द निकल गया। इसकी गूंज लखनऊ तक पहुंच गई। मुख्यमंत्री मायावती ने महेंद्र सिंह टिकैत की गिरफ्तारी के आदेश दिए। फोर्स ने सिसौली को चारों ओर से घेर लिया। इस पर किसानों का गुस्सा भी भड़क गया। किसानों ने टिकैत को अपने घेरे में ले लिया। सड़कों पर बुग्गी, ट्रैक्टर-ट्रॉलियां आदि वाहन खड़े कर नाकेबंदी कर दी गई। शासन के आदेश पर प्रशासन गिरफ्तारी पर अडिग था। प्रशासन और किसानों में टकराव के नौबत आ गई थी। कई पार्टियों के नेताओं ने मध्यस्थता कर प्रशासन के माध्यम से बात ऊपर तक पहुंचायी। आखिरकार टिकैत बिजनौर कोर्ट में सरेंडर के लिए तैयार हो गए। उस समय बाबा टिकैत ने तत्कालीन एडीजी से कहा था कि उन्होंने कभी कोर्ट में समर्पण नहीं किया, लेकिन वह इलाके में अशांति नहीं चाहते। इतना कहते हुए वह बिजनौर कोर्ट के लिए रवाना हो गए। इत्तिफाक रहा कि टिकैत को उसी दिन कोर्ट से जमानत मिल गई।
बोट क्लब आंदोलन
नई दिल्ली बोट क्लब का आंदोलन भी उनके संघर्ष की लंबी कहानी है। 25 अक्टूबर, 1988 में वहां बड़ी किसान पंचायत हुई। इस पंचायत में 14 राज्यों के किसानों ने भाग लिया। करीब तीन लाख लोग धरने पर मौजूद थे। उन्होंने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि देश का किसान आंदोलनरत है। सरकार उनकी बात नहीं सुन रही है, इसलिए उन्हें यहां आना पड़ा। बाबा टिकैत के नेतृत्व में 12 सदस्यीय कमेटी ने राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ से मुलाकात की, परंतु कोई निर्णय नहीं हो सका।
दो किसान हो गए थे शहीद
टिकैत की हठ के चलते सत्तारूढ़ कांग्रेस को अपनी रैली बोट क्लब के बजाय लाल किला मैदान पर करनी पड़ी थी। इस रैली में भाग लेने जा रहे कुटबी के राजेंद्र सिंह और टिटौली के भूप सिंह लोनी बार्डर पर पुलिस की गोली से शहीद हो गए थे। प्रधानमंत्री राजीव गांधी के भाकियू की सभी मांगों पर फैसला लेना का मौका देने की बात पर वोट क्लब का धरना सात दिन चलने के बाद 31 अक्टूबर को समाप्त हुआ। इसी तरह मेरठ में कमिश्नरी पर 27 जनवरी, 1988 से 19 फरवरी, 1988 तक आंदोलन चला था। ऐसे धरने प्रदर्शन बाबा टिकैत की याद आज भी ताजा रखते हैं।