अरणी मंथन की अग्नि से अयुत चंडी महायज्ञ का शुभारंभ
जागरण संवाददाता, मेरठ भैंसाली मैदान में रविवार को विशाल यज्ञशाला में अयुत चंडी महायज्ञ का शु
जागरण संवाददाता, मेरठ
भैंसाली मैदान में रविवार को विशाल यज्ञशाला में अयुत चंडी महायज्ञ का शुभारंभ हुआ। 108 हवनकुंड में वेदपाठी ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के बीच 11 लाख 11 हजार 111 आहुतियां दी। यज्ञशाला देखने को हजारों श्रद्धालु उमड़ पड़े। यज्ञशाला की परिक्रमा भी की। महायज्ञ 26 मार्च तक चलेगा।
रविवार को गणपति का पूजन हुआ। दोपहर को मंत्रोच्चार के बीच यज्ञकुंडों में अग्नि प्रज्वलित की गई। मंत्रों के साथ वेदपाठी ब्राह्मणों ने यज्ञवेदी में आहुतियां डालीं। सुबह 7 से 12 और दोपहर तीन बजे से छह बजे तक प्रतिदिन 11 लाख 11 हजार 111 आहुतियां दी जाएंगी। इससे पूर्व यज्ञशाला के द्वार का उद्घाटन रामानुज दयाल शर्मा, कृष्ण कंसल, द्वारिका नाथ चौबे ने किया। मेरठ में पहली बार इस महायज्ञ का आयोजन हुआ है।
वैदिक नियमों का पालन करने वाले दे रहे आहुति
यज्ञ में वही ब्राह्मण आहुति अर्पित कर रहे हैं जो वैदिक नियमों के अनुसार संध्या पूजन करते हैं और जनेऊ, शिखा धारण किए हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, वृंदावन आदि के ऐसे 400 ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया है।
लकड़ी के घर्षण से प्रज्वलित की अग्नि
महायज्ञ के संयोजक डा. गुणप्रकाश चैतन्य महराज ने बताया कि अग्नि मंथन के लिए विशेष लकड़ी का प्रयोग होता है। शमी के पेड़ पर उगे पीपल के वृक्ष की जो शाखा उत्तर दिशा की जाती है, ऐसी लकड़ी को परस्पर घर्षित कर अग्नि जलाई जाती है।
मैदान में आश्रम जैसा दृश्य
भैंसाली के विशाल मैदान में रविवार को आश्रम जैसा नजारा था। मैदान में गेरुआ वस्त्रधारी दस साल के बालक से लेकर अस्सी साल के दंडीधारी स्वामी थे। वृंदावन से आए 12 वर्षीय ध्रुव शर्मा ने बताया कि वह संस्कृत पाठशाला में पढ़ते हैं। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित भ्रदा में धर्म संघ द्वारा स्थापित संस्कृत पाठशाला के प्राचार्य डा. विदिश ने बताया कि उनके साथ सौ बालक आए हैं।
पंच देवों की प्रतीक है यज्ञशाला की वास्तुकला
बीकानेर से आए 70 कारीगरों ने आठ दिन में 100 फुट लंबा, इतना ही चौड़ा और 75 फुट ऊंचा यज्ञशाला मंडप बांस, सुतली, सरकंडे और फूस आदि से बनाया है। संयोजक पंडित चरणदत्त कात्यायन ने बताया कि पांच मंजिला मंडप पंच देवों सूर्य, गणेश, देवी, शिव और विष्णु का जबकि शिखर महादुर्गा का प्रतीक है। चार द्वार हैं। यज्ञशाला का वास्तु इस तरह का है कि धुआं उठने के बावजूद यज्ञ करने वालों को घुटन महसूस नहीं होगी।