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LokSabha Election Result 2019 : सियासी लैब में गठबंधन के टेस्ट में अखिलेश का प्रयोग फेल

मुलायम सिंह यादव की पश्चिम में बनाई राजनीतिक जमीन पर अखिलेश यादव का प्रयोग फेल रहावहीं 2014 में शून्य पर खड़ी बसपा को चार सीटों पर तोहफा मिल गया।

By Ashu SinghEdited By: Published: Wed, 29 May 2019 09:53 AM (IST)Updated: Wed, 29 May 2019 09:53 AM (IST)
LokSabha Election Result 2019 : सियासी लैब में गठबंधन के टेस्ट में अखिलेश का प्रयोग फेल
LokSabha Election Result 2019 : सियासी लैब में गठबंधन के टेस्ट में अखिलेश का प्रयोग फेल
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। चुनावी नतीजों के करंट से सपा को जोर का झटका लगा है। मुलायम सिंह यादव की पश्चिम में बनाई राजनीतिक जमीन पर अखिलेश का प्रयोग फेल रहा,वहीं 2014 में शून्य पर खड़ी बसपा को चार सीटों पर तोहफा मिल गया। सपा पश्चिम की 22 सीटों में से बदायूं,फिरोजाबाद व कन्नौज भी नहीं बचा सकी। कैराना समेत आधा दर्जन अन्य सीटों पर साइकिल पंक्चर होने से संगठन भी सन्न पड़ गया। वहीं, सपा का परंपरागत मुस्लिम वोटबैंक भी बसपा के पाले में खिसक सकता है।
सबसे बड़ा असर पश्चिमी उप्र में
सपा-बसपा गठबंधन का सबसे बड़ा असर पश्चिमी उप्र में नजर आया। भाजपा के हाथ से नगीना, सहारनपुर, अमरोहा और बिजनौर फिसलकर बसपा के खाते में पहुंच गई। सपा की दृष्टि से पश्चिमी उप्र की 22 सीटों में साइकिल महज रामपुर, मुरादाबाद, संभल व मैनपुरी में दौड़ी। पार्टी के रणनीतिकार मानते हैं कि इन सीटों पर सपा मजबूत होने के साथ ही चेहरे भी कद्दावर थे। माना जा रहा है कि अन्य कई सीटों पर बसपा का वोटबैंक पूरी तरह सपा के साथ नहीं गया। 2017 विस चुनावों के सापेक्ष 2019 में दस फीसद कम वोट मिले, जबकि बसपा का सिर्फ तीन फीसद नुकसान रहा।
मुस्लिम वोटबैंक ने दी थी साइकिल के ताकत
राम मंदिर आंदोलन के बाद नब्बे के दशक में सूबे की सियासत में बड़ी करवट नजर आई। पश्विमी उप्र में दलित-मुस्लिम गठजोड़ ने भाजपा को कई बार रोका। 1999 से 2009 तक पश्चिमी उप्र की 14 लोकसभा सीटों में सपा और बसपा बड़ी ताकत के रूप में उभरी। 2014 में मोदी सुनामी ने सभी दलों का सफाया कर दिया। 2019 में बसपा तो संभल गई, लेकिन सपा अपने गढ़ के अतिरिक्त एक भी नई सीट अपने खाते में नहीं जोड़ सकी। 1999 से 2009 के बीच पश्चिमी उप्र में सपा ने भाजपा, रालोद और बसपा के कई दिग्गजों को शिकस्त देते हुए नौ बार संसदीय चुनाव जीता। जबकि इस बीच बसपा सात बार लोकसभा चुनाव जीत पाई।
नौ सीटों पर दौड़ी थी साइकिल
1999 से 2009 के बीच पश्चिम में सपा मजबूत रही। सहारनपुर सीट पर 2004 में सपा के टिकट पर रसीद मसूद जीते। 2009 में सपा दूसरे स्थान पर रही। मुजफ्फरनगर सीट पर 2004 में सपा के मुनव्वर हसन सांसद चुने गए। 2009 में पहली बार वजूद में आई नगीना सीट पर सपा के यशवीर सिंह साइकिल की सवारी कर संसद पहुंचे। मुरादाबाद सीट पर 2004 के चुनावों में सपा के डा. शफीकुर रहमान बर्क ने भाजपा प्रत्याशी को हराया। रामपुर में अभिनेत्री जयप्रदा 2004 और 2009 को जीतकर संसद पहुंचीं, जो भाजपा के टिकट पर 2019 में मोदी सुनामी में भी नहीं जीत सकीं। संभल सीट पर मुलायम सिंह के परिवार का दबदबा रहा, जो 2014 में मोदी लहर में टूट गया था।
इसे भी जान लें
इस सीट पर 2004 में रामगोपाल यादव और 1999 में मुलायम सिंह यादव चुनाव जीत चुके हैं। कल्याण सिंह के गढ़ बुलंदशहर में 2009 के चुनावों में सपा के कमलेश वाल्मीकि ने भाजपा के अशोक प्रधान को शिकस्त देकर मुलायम सिंह को बड़ा गिफ्ट दिया। इस बीच 2002, 2007 और 2012 विधानसभा चुनावों में भी सपा की जड़े पश्चिमी उप्र में मजबूत नजर आई। इस बीच कई सीटों पर सपा और बसपा के बीच सीधा मुकाबला रहा। अगर 2019 को जोड़ लें तो अब तक 12 बार सपा जीत चुकी है।
सात बार बसपा पहुंची संसद
1999 से 2009 के बीच बसपा के टिकट पर कुल सात चेहरे संसद तक पहुंचे। 2014 में खाता भी नहीं खुला, किंतु इसके पहले हाथी खूब गरजा। बसपा के टिकट पर तबस्सुम हसन ने 2009 में कैराना सीट पर जीत दर्ज की। सहारनपुर सीट पर 2009 में जगदीश राणा व 1999 में मंजूर अली जीते। मुजफ्फरनगर सीट पर बसपा के टिकट पर 2009 में कादिर राणा व संभल में 2009 में डा. शफीकुर रहमान बर्क ने सपा को हरा दिया।
वेस्ट में बसपा अब तक 11 बार विजयी
मेरठ-हापुड़ संसदीय सीट पर 2004 में बसपा प्रत्याशी शाहिद अखलाक ने चुनाव जीतकर सियासी पंडितों को चौंका दिया। 1999 में अमरोहा सीट पर बसपा के राशिद अल्वी ने भाजपा के मंसूबों पर पानी फेरते हुए चुनाव जीता। इस बीच दर्जनों सीटों पर बसपा के प्रत्याशी दूसरे स्थान पर भी रहे। 2012 विस चुनावों में बसपा ने दो दर्जन सीटों पर कब्जा किया। 2019 की बात करें तो पश्चिम में 1999 से अब तक बसपा 11 बार लोकसभा चुनाव जीती है।
..इस बार संभल गई बसपा
गठबंधन के बाद सपा ने पश्चिमी उप्र में मेरठ, सहारनपुर व मुरादाबाद मंडल की ज्यादातर सीटें बसपा के दामन में डाल दी। बसपा ने बिजनौर, नगीना, अमरोहा और सहारनपुर में न सिर्फ जीत दर्ज की, बल्कि मेरठ में जीत के मुहाने पर पहुंचकर फिसली। वहीं, गत वर्ष उपचुनाव में कैराना पर मिली जीत से गदगद सपा को भाजपा ने शिकस्त दे दी। अन्य सीटों पर सपा की जीत में जातीय समीकरणों और प्रत्याशियों के व्यक्तिगत प्रभाव का असर ज्यादा रहा। मुरादाबाद में सपा के डा.एस टी हसन ने भाजपा के सर्वेश सिंह को हराया। संभल पर यादव परिवार का दबदबा था, जो 2014 में भाजपा ने जीत ली। हालांकि इस बार सपा के शफीकुर रहमान बर्क ने जीत दर्ज की। रामपुर सीट पर करीब 50 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता होने के साथ ही आजम खान का निजी प्रभाव भी जीत की वजह बना।

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