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फेफड़ों पर आठ तरफ से अटैक करता है वायु प्रदूषण

सावधान.. कोरोना और फ्लू वायरस फेफड़ों पर जानलेवा हमला कर रहे हैं। जहरीली हवा ने भी सांस लेने की क्षमता घटा दी है। मानक से सात गुना पीएम2.5 की मात्रा शरीर में पहुंचने से फेफड़े की कार्यक्षमता 30 फीसद तक गिर सकती है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 09:00 AM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 09:00 AM (IST)
फेफड़ों पर आठ तरफ से अटैक करता है वायु प्रदूषण

मेरठ, जेएनएन। सावधान.. कोरोना और फ्लू वायरस फेफड़ों पर जानलेवा हमला कर रहे हैं। जहरीली हवा ने भी सांस लेने की क्षमता घटा दी है। मानक से सात गुना पीएम 2.5 की मात्रा शरीर में पहुंचने से फेफड़े की कार्यक्षमता 30 फीसद तक गिर सकती है। वायुमंडल में नाइट्रोजन, सल्फर और मोनोआक्साइड की मात्रा बढ़ने से फेफड़ों पर आठ बीमारियों का एक साथ खतरा है। इन मरीजों पर कोरोना संक्रमण का खतरा भी ज्यादा है। मेडिकल कालेज के सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ डा. संतोष मित्तल का कहना है कि ग्लोबल बर्डन आफ डिसीज की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्री मेच्योर मौतों में 30 फीसद की वजह प्रदूषित हवा है। जिले में हवा बिगड़ी हुई है। पीएम 2.5 की मात्रा 500 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक तक पहुंच गई। एसओटू, सीओटू, मोनोआक्साइड व ओजोन के स्तर में भी हलचल है।

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वायु प्रदूषण से आठ बड़े खतरे

अस्थमा

प्रदूषण से सास की नलियों में लगातार सूजन से अस्थमा बनता है। सास फूलना, एलर्जी और कई प्रकार के संक्रमण होने लगते हैं।

सीओपीडी

-क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज मौतों की बड़ी वजह है। लंबे समय तक धूमपान, जेनेटिक गड़बड़ियों और वायु प्रदूषण से यह बीमारी होती है।

ब्रांकाइटिस

यह सीओपीडी का ही एक प्रकार है। इसे पुराने कफ की बीमारी भी कहते हैं। एक्यूट ब्राकाइटिस एक वायरस की वजह से होता है। फेफड़े की म्यूकस मेंब्रेन में सूजन बनती है। लंग्स में सास की नलियों को जाम कर देता है।

इम्फेसिमा

यह भी सीओपीडी का एक प्रकार है। यह लंबे समय तक धूमपान से होता है। सास लेने में कठिनाई होती है। धूमपान फेफड़ों की नलियों व सतह पर जख्म या निशान बना देते हैं। यह रिपेयर नहीं हो पाता है।

फेफड़ों का कैंसर

लंग्स के डीएनए में म्यूटेशन से टयूमर बन जाता है। इसकी वजह से विषाक्त गैसें, धूमपान तथा बढ़ती उम्र हैं। एनसीआर में प्रदूषण से लंग्स कैंसर 30 फीसद बढ़ा।

सिस्टिक फाइब्रोसिस

जीन में गड़बडियों से सख्त और मोटा म्यूकस बनने के साथ ही लंग्स में संक्रमण रहता है। यह पैंक्रियाज के एंजाइम बनाने की प्रक्रिया भी बिगाड़ देता है। लक्षणों में नमकीन त्वचा, पुराना कफ व बच्चों में धीमा विकास है।

निमोनिया

लंग्स यानी फेफड़ों में बैक्टीरिया, वायरस व फंगस से निमोनिया होता है। कई मरीजों में तीन हफ्तों के अंदर ठीक हो जाता है। कफ, बुखार, ठंड लगना और सास फूलना इसके लक्षण हैं।

एलर्जी

शरीर में किसी बाहरी चीज के प्रवेश पर प्रतिरोधक क्षमता प्रतिक्रिया करती है। हिस्टामिन्स रिलीज होने से एलर्जी होती है। वायु प्रदूषण, पराग कण, धूल, पालतू जीव व कई प्रकार के खानपान से भी होती है। यह गले,नाक व फेफड़े को प्रभावित करती है।

इनका कहना है:::

औद्योगिक चिमनियों, जनरेटरों, धूलकण, कचरा दहन और अनियंत्रित संख्या में चल रहे डीजल वाहनों से हवा विषाक्त हो गई है। इसमें सास लेने वालों के फेफड़ों में फाइब्रोसिस व हैमरेज तक मिल रहा है। ये सभी अस्थमा व सीओपीडी के ट्रिगर हैं। इससे मरीजों की तबीयत और बिगड़ जाती है।

डा. संतोष मित्तल, सास एवं छाती रोग विशेषज्ञ, मेडिकल कालेज

पीएम 2.5 एवं पीएम 10 का स्तर बढ़ते ही सास के मरीज गंभीर होने लगे हैं। सíदया बढ़ने के साथ ही प्रदूषित कण और नीचे आएंगे। इससे शरीर में आक्सीजन की कमी व सास का दौरा भी बढ़ेगा। कोरोना के दौरान जहा फेफड़ों पर पहले से संकट है। वायु प्रदूषण उसे कई गुना बढ़ाएगा।

डा. अमित अग्रवाल,

सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ


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