Move to Jagran APP

इतना प्रदूषण आज, तो जनवरी में क्या हाल होगा, वायु में हो जाएगी ऑक्‍सीजन की कमी

वायु प्रदूषण को गंभीरता से न लेने का नतीजा ये रहा कि अब पूरे सूबे की हवा में जहर पसर गया है। यही हाल रहा तो दिसंबर-जनवरी तक हवा में आक्सीजन की कमी पड़ने लगेगी। एक्यूआइ 335 होने के बावजूद भी कई शहरों से पीछे मेरठ।

By Taruna TayalEdited By: Published: Thu, 29 Oct 2020 02:53 PM (IST)Updated: Thu, 29 Oct 2020 02:53 PM (IST)
मेरठ में एक्यूआई का स्तर मानक 100 के सापेक्ष अधिकतम 335 तक पहुंचा।

मेरठ, जेएनएन। वायु प्रदूषण को गंभीरता से न लेने का नतीजा ये रहा कि अब पूरे सूबे की हवा में जहर पसर गया है। यही हाल रहा तो दिसंबर-जनवरी तक हवा में आक्सीजन की कमी पडऩे लगेगी। पीएम2.5 का स्तर अक्टूबर के अंत में मानक से पांच-छह गुना हो गया है। विशेषज्ञों का दावा है कि ऐसी हवा में सांस लेने से फेफड़ों की क्षमता एक चौथाई कम हो जाएगी। ऐसे में कोरोना संक्रमण लगा तो निमोनिया जल्द पकड़ेगा। स्माग में कई अन्य खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया पनपेंगे।

loksabha election banner

मेरठ में एक्यूआई का स्तर

मेरठ में एक्यूआई का स्तर मानक 100 के सापेक्ष अधिकतम 335 तक पहुंचा, जबकि पीएम2.5 का स्तर मानक 60 की जगह 426 माइक्रोग्राम दर्ज हुआ। एनसीआर में प्रदूषण के काले बादल घिरने लगे हैं। गाजियाबाद, बुलंदशहर, नोएडा एवं बागपत की हवा तो मेरठ से भी खराब मिली, जबकि मुजफ्फरनगर की हवा बिगड़कर 325 तक पहुंच गई। कई शहरों में पीएम2.5 का स्तर 500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पार कर गया। प्रदेशभर के किसी शहर में सांस लेने लायक हवा नहीं मिली। मेरठ में दोपहर तीन बजे से शाम सात बजे तक हवा में सुधार रहा, लेकिन सोने से पहले फिर से प्रदूषण बढ़ गया।

शहर एक्यूआइ

गाजियाबाद-लोनी 404

ग्रेटर नोएडा 368

नोएडा 359

बागपत 358

बुलंदशहर 348

लखनऊ 343

मेरठ 335

मुरादाबाद 333

मुजफ्फरनगर 325

कानपुर 280

हापुड़ 256

इनका कहना है...

शुद्ध हवा की जरूरत भोजन और पानी से भी ज्यादा है। भोजन और पानी तो आसान से शुद्ध कर सकते हैं, लेकिन हवा की स्थिति अनियंत्रित हो रही है। आसपास ढाई सौ किमी दूर तक के प्रदूषण तैरकर एनसीआर में पहुंच जाते हैं। ईपीसीए के प्रभावी कदम उठाने के बावजूद इस साल प्रदूषण में कमी नजर नहीं आ रही। अभी वायुदाब बढ़ेगा,और हवा ठहरेगी तो प्रदूषण और ज्यादा होगा।

- डा. एसके त्यागी, पर्यावरण वैज्ञानिक, गाजियबाद

उद्योगों व वाहनों से निकले प्रदूषित कण हवा में रिएक्शन कर सल्फ्यूरिक व नाइट्रिक अम्ल बनाते हैं जो सांस की नलिकाओं को गला सकता है। बच्चों की नाक में बाल कम होते हैं, जबकि उन्हेंं ज्यादा आक्सीजन की जरूरत पड़ती है, ऐसे में फेफड़ों की ताकत कम होने और पल्मोनरी हैमरेज का खतरा बढ़ रहा है। बच्चों को प्रदूषण में खेलने से रोकें।

- डा. राजीव तेवतिया, बाल रोग विशेषज्ञ


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.