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मुनाफे की आस लगाए उत्पादकों के लिए Lockdown में घाटे की फसल बनी आम, कच्‍चा बेचने को हुए मजबूर

आंधी के कारण आम की फसल को पहले ही 40 प्रतिशत नुकसान हो चुका है। उत्‍पादक कच्चा आम तोड़कर मंडी में बेचने को मजबूर।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 07 Jun 2020 08:34 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jun 2020 08:34 PM (IST)
मुनाफे की आस लगाए उत्पादकों के लिए Lockdown में घाटे की फसल बनी आम, कच्‍चा बेचने को हुए मजबूर
मुनाफे की आस लगाए उत्पादकों के लिए Lockdown में घाटे की फसल बनी आम, कच्‍चा बेचने को हुए मजबूर

बागपत, जेएनएन। दो साल की अपेक्षा आम की फसल बेहतर होने से उत्पादकों के चेहरे खिले थे लेकिन लॉकडाउन व आंधी ने अरमानों पर पानी फेर दिया। मुनाफे की आस लगाए बैठे उत्पादकों के लिए इस बार आम घाटे की फसल साबित होगी। नुकसान से बचने को उत्पादक कच्चे आम की मंडी में बेचने को मजबूर हैं।

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फलों का राजा आम और वह भी रटौल प्रजाति को हो तो स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। परंतु इस बार रटौल व अन्य प्रजाति के आम उत्पादन को लॉकडाउन व आंधी का ग्रहण लग चुका है। लॉकडाउन के कारण उर्वरक व कीटनाशक नहीं मिलने से रोगों ने फसल को घेर लिया। बाकी बची फसल में 40 प्रतिशत का नुकसान तीन चार बार आई आंधी ने पहुंचाया। उत्पादकों के जहन में था कि लॉकडाउन खुलने के बाद फसल की बिक्री अच्छी होगी तो नुकसान की भरपाई हो जाएगी लेकिन समय लगातार बढ़ रहा है। उत्पादक डा. मैराजूद्दीन, जुनैद फरीदी, चौ. हबीब व बबबू अंसारी का कहना था कि दो साल के मुकाबले इस बार शुरूआत से ही फसल काफी बेहतर थी। लॉकडाउन संग आंधी का काफी प्रभाव फसल पर पड़ा है।

आसपास की मंडी में जाता आम

आम उत्पादकों की मानें तो सालों पूर्व आम आसपास की मंडियों के साथ विदेशों में भी एक्सपोर्ट होता था। आहिस्ता आहिस्ता बागों का रकबा घटा तो उत्पादन भी कम होने लगा। इससे विदेश का एक्सपोर्ट बंद हुआ लेकिन दिल्ली, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, मेरठ की मंडी में आम की खपत बेहतर है। विख्यात रटौल प्रजाति के आम को खरीदने के लिए दूर दराज से लोग बागों में ही आते हैं। इस प्रजाति को एक्सपोर्ट तो दूर मंडियों तक भी नहीं भेजा जाता है। बागों में ही इसकी बिक्री हो जाती है।

कच्चे आम बेचने को मजबूर

उत्पादकों की मानें तो लॉकडाउन के कारण यह आस भी खत्म हो गई है कि ग्राहक अब बाग में आकर आम खरीदेंगे। कोरोना प्रकोप बढ़ने से खुद ही कच्चे आम को तोड़कर मंडियों में सप्लाई कर रहे हैं। कहना है कि जल्द आम पकने लगेगा अगर ऐसे में पूर्व की भांति बिक्री नहीं हुई तो लागत की भरपाई भी नहीं हो पाएगी। नुकसान से बचने के लिए अधिकांश उत्पादक कच्चा आम मंडियों में सप्लाई कर रहे हैं। पिछले साल रटौल प्रजाति का आम 120 से 150 रुपए प्रति किलो तक बिका लेकिन इस बार दाम काफी कम रहेंगे। अभी रेट तय नहीं हो सका है। 


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