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Shaurya Gatha: अंग्रेजों की बर्बरता का गवाह है मेरठ के सरधना का भामोरी गांव, जब ब्रिटिश सिपाहियों ने बरसाईं थी गोलियां

18 अगस्त 1942। भामौरी गांव में मोटो की चौपाल पर गांधी आश्रम के कार्यकर्ता पंडित रामस्वरूप शर्मा ग्रामीणों को गांधी का संदेश दे रहे थे। ब्रिटिश सिपाहियों बरसाईं थी गोलियां।

By Prem BhattEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 01:00 PM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 01:00 PM (IST)
Shaurya Gatha: अंग्रेजों की बर्बरता का गवाह है मेरठ के सरधना का भामोरी गांव, जब ब्रिटिश सिपाहियों ने बरसाईं थी गोलियां
Shaurya Gatha: अंग्रेजों की बर्बरता का गवाह है मेरठ के सरधना का भामोरी गांव, जब ब्रिटिश सिपाहियों ने बरसाईं थी गोलियां

मेरठ, [योगेश आत्रेय]। Shaurya Gatha गोरों के जुल्म-ओ-सितम का गवाह है मेरठ के सरधना का भामोरी गांव। मिनी जलियांवाला गांव के नाम से मशहूर सरधना तहसील का यह गांव जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर है। उस काले दिन का नाम सुनकर यहां के ग्रामीणों का आज भी खून खौल जाता है। 18 अगस्त 1942। भामौरी गांव में मोटो की चौपाल पर गांधी आश्रम के कार्यकर्ता पंडित रामस्वरूप शर्मा ग्रामीणों को गांधी का संदेश दे रहे थे। सर्किल इंस्पेक्टर मो. याकूब बंदूक लहराते पहुंचा और चौपाल पर शांत बैठे ग्रामीणों से अभद्रता की। फिर भी ग्रामीण शांत रहे। इसके बावजूद ब्रिटिश सिपाहियों ने याकूब के कहने पर ग्रामीणों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं। इससे प्रहलाद सिंह, लटूर सिंह, फतेह सिंह व बोबल सिंह मौके पर ही शहीद हो गये। घायल ठा. देवी सिंह, रणधीर, जमादार सिंह, बलजीत सिंह,बाबूराम शर्मा, शिवचरण सिंह,चेतनलाल जैन समेत अनेक क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके मुकदमा चलाया। 18 क्रांतिकारियों को 12-12 वर्ष कैद की सजा दी गयी।

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पंडित रामस्वरूप के सीने में तीन गोलियां मारीं

अंग्रेज सिपाहियों ने पंडित रामस्वरूप के सीने में तीन गोलियां मारीं। इसके बाद पंडित रामस्वरूप शर्मा को मरणासन्न अवस्था में बंदी बनाकर यातनाएं दी गईं। उनके जख्मों को संगीनों से कुरेदा। वांछित जानकारी नहीं मिलने पर अंग्रेजों ने संगीन से उनकी गर्दन पर वार किए और उन्हें अमर बलिदानी बना दिया। यही नहीं अंग्रेजों ने पंडित रामस्वरूप के शव को ही गायब कर दिया। हालांकि बाल जासूस राजनीत रुहेला ने क्रांतिकारियों को इसकी जानकारी दी। क्रांतिकारियों ने शव की मांग को लेकर थाना घेर लिया। गांधी आश्रम के सचिव लज्जाराम और ग्रामीणों के तीखे विरोध पर उनके शव को गड्ढे से निकाला गया। इसके बाद थाने में ही शव का अंतिम संस्कार किया गया। इन शहीदों की याद में गांव में स्मारक बना हुआ है।

गांव को उड़ाने का फरमान

इस कांड के बाद अंग्रेज गवर्नर ने भामौरी गांव को ही बागी घोषित कर दिया। गांव को उड़ाने के लिये ट्रक पर लादकर तोप तक रवाना कर दी गईं। देशभक्त ट्रक चालक लियाकत अली ने ट्रक को झिटकरी के तालाब में धंसा दिया। बाद में गांव को तोप से उड़ाने का फैसला वापस ले लिया। इसके बावजूद गांव से 19 हजार रुपये जुर्माना वसूला गया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने ग्राम पहुंचकर पवित्र माटी को नमन किया। वर्तमान में मोटो की चौपाल को गांधी आश्रम बनाया जा चुका है। पिछले काफी अरसे से इस शहीद गांव के विकास के लिये कोई योजना नहीं बनाई गई है।


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