Coronavirus: सौ मीटर दूर तक भी संक्रमित कर सकता है वायरस, केंद्र को भेजा शोध पत्र Meerut News
Coronavirus वैज्ञानिकों ने माना है कि इसका वायरस छींक एवं खांसी के एरोसोल (अतिसूक्ष्म कण) के साथ चिपककर हवा में लंबे समय तक जिंदा रह सकता है।
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। Coronavirus बीमारी से ज्यादा कोरोना का वायरस डरा रहा है। वैज्ञानिकों ने माना है कि इसका वायरस छींक एवं खांसी के एरोसोल (अतिसूक्ष्म कण) के साथ चिपककर हवा में लंबे समय तक जिंदा रह सकता है। सस्पेंडेड पार्टीकुलेट मैटर (हवा में तैरते बेहद सूक्ष्मकण) पर शोध कर चुके जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व पर्यावरण विज्ञानी डॉ. एसके यादव ने दावा किया है कि कोरोना वायरस एरोसोल के साथ हवा में उड़ते हुए 100 मीटर तक जा सकता है। उन्होंने केंद्र सरकार को एक शोध-पत्र भी भेजा है।
सस्पेंडेड पार्टीकुलेट मैटर है एरोसोल
सर छोटूराम इंजीनियरिंग कॉलेज के पूर्व पर्यावरण विज्ञानी डॉ. एसके यादव ने अपने शोधपत्र एन्वॉयरमेंटल डिटरमिनेंट्स कोविड-19 के जरिए बताया है कि कोरोना वायरस के हवा में चार घंटे में खत्म होकर जमीन पर गिरने की बात सही नहीं है। एरोसोल भी एक एसपीएम-यानी सस्पेंडेड पार्टीकुलेट मैटर है। ये एक माइक्रॉन के दसवें हिस्से तक छोटा होता है। कोरोना संक्रमित व्यक्ति की खांसी एवं छींक से ड्रापलेट एवं एरोसोल निकलते हैं। ड्रापलेट बड़ा होता है, जबकि एरोसोल सूक्ष्म। वायरस अत्यंत सूक्ष्म यानी सिर्फ 25 से 300 नैनोमीटर आकार का होता है, जो एरोसोल पर चिपककर हवा के साथ सैकड़ों मीटर दूर पहुंच सकता है। कोई मरीज अगर सड़क, चौराहे या मंडी में खांसकर चला गया तो घंटों तक संक्रमण का खतरा बना रहेगा।
सिर्फ आरएनए टूटने से खत्म होता है कोविड-19 वायरस
डॉ. एसके यादव का कहना है कि कोविड-19 आरएनए वायरस है, जो हवा में निष्क्रिय रहता है। जिंदा कोशिका पाने पर संक्रमित होता है। इसे नष्ट करने के लिए सूर्य का तापमान ज्यादा होना चाहिए या सिर्फ अल्कोहलयुक्त और पीएच मान बदलने वाले केमिकल से मरता है। हवा में उड़ने वाले वायरस पर न तेज धूप पड़ रही है, और न ही केमिकल। नमी बनी हुई है।
180 किमी की रफ्तार से छींकते हैं मरीज
यूएसए के मेडिकल जर्नल के मुताबिक कोरोना के मरीज की छींकने की गति 180 एवं खांसने की गति 40 किमी प्रतिघंटा होती है। ऐसे में मुंह से निकलने वाले 0.1 माइक्रोमीटर के एरोसोल दो से आठ मीटर दूर तक जाते हैं। 10 माइक्रॉन से बड़े कण नाक और गले में फंस जाते हैं, जहां वायरस रुककर कॉलोनी बनाता है। जबकि, 10 माइक्रॉन से छोटे कण सीधे फेफड़े में जा सकते हैं। ऐसे में संक्रमण का रिस्क बना रहता है। थूकने से भी एरोसोल पर वायरस चिपककर हवा में उड़ते हैं।