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Positive India: इनके जज्‍बे को सलाम, कोरोना से महायुद्ध में योद्धा बनकर उभर रहे चिकित्‍सक

Positive India मेरठ मेडिकल कॉलेज में कोरोना पॉजिटिव मरीजों में जगाई जीवन की आस संक्रमण के डर पर दर्ज की जीत गर्मी से चक्‍कर तक आए लेकिन नहीं लड़खड़ाए कदम।

By Prem BhattEdited By: Published: Sat, 04 Apr 2020 11:42 AM (IST)Updated: Sat, 04 Apr 2020 11:51 AM (IST)
Positive India: इनके जज्‍बे को सलाम, कोरोना से महायुद्ध में योद्धा बनकर उभर रहे चिकित्‍सक
Positive India: इनके जज्‍बे को सलाम, कोरोना से महायुद्ध में योद्धा बनकर उभर रहे चिकित्‍सक

मेरठ, [संतोष शुक्ल]। Positive India मां..मैं कोरोना वार्ड में किट उतारकर हॉस्टल आ गया हूं, पर क्वारंटाइन से लौटकर तुमसे 15 दिन बाद मिलूंगा। बेटा..किट में कोई गड़बड़ तो नहीं हुई। नहीं मां..यह किट नहीं, वर्दी है। इसने हमें कोरोना के खिलाफ महायुद्ध में सैनिक बनने का सौभाग्य दिया है। यह वार्ता मेडिकल कालेज में बने कोरोना वार्ड में सप्ताहभर बाद डयूटी कर निकले जेआर डा. अनिरुद्ध गुप्ता और उनकी मां के बीच हुआ। अपने शहर में ही रहते हुए तीन रेजीडेंट डाक्टर 21 दिनों से अपने मां-बाप से नहीं मिल पाए। स्टाफ ने जान की बाजी लगाते हुए कोरोना के मरीजों का उपचार किया। शनिवार को ये लोग 14 दिनों के क्वारंटाइन में चले गए।

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माहभर से घर नहीं जा पाए योद्धा

मेडिकल कालेज में 22 सदस्यीय टीम ने सप्ताहभर पहले कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज का जिम्मा संभाला। मेडिसिन विभाग के डा. अनिरुद्ध गुप्ता माहभर से मेरठ स्थित अपने घर नहीं गए। कोरोना मरीजों के बीच दिन में छह घंटे की डयूटी के दौरान भी पास में मोबाइल नहीं होता। रात आठ बजे डयूटी से निकलने के बाद ही मां-बाप से बातचीत होती थी। एक बार पिता डा. अनुराग गुप्ता मिलने मेडिकल कालेज भी गए तो पुत्र अनुराग ने कोरोना वार्ड की छत से ही प्रणाम किया। कोविड-19 वार्ड में मरीजों का इलाज कर रहे युवा डाक्टर पंकज के पिता ओमवीर सिंह रिटायर्ड इंसपेक्टर हैं, जो अपने बड़े बेट के साथ मेरठ में सेना परिसर में रहते हैं, किंतु पंकज घर वालों से मिल नहीं पाए। कोविड-19 में डयूटी कर रहे डा. मनु बुलंदशहर के निवासी हैं। वह माहभर से घर नहीं जा सके। डा. धीरेंद्र प्रताप सिंह के मां-बाप प्रयागराज में बैठककर रात आठ बजे का इंतजार करते रहे। पैरामेडिकल स्टाफ भी संक्रमण से डरे बिना कोरोना को शिकस्त देने में जुटा रहा।

किट पहनी तो चक्कर भी आया

कोरोना-19 मरीजों के बीच जाने के लिए डाक्टरों एवं पैरामेडिकल स्टाफ ने पर्सन प्रोटेक्शन किट पहनी। इस किट को पहनने में करीब आधे घंटे का समय लगता है। 15 मिनट बाद ही शरीर में पसीने बनने लगता है। किट में अंदर मुंह की भाप दिखाई पड़ने लगती है। किसी मरीज में कैनुला या इंजेक्शन लगाने की जगह तक दिखाई नहीं पड़ती। डा. मनु ने बताया कि इस दौरान अंदर पसीना इतना ज्यादा बढ़ा कि कई बार डिहाइड्रेशन का खतरा बन गया। चक्कर तक आ गए थे।

इनका कहना है

चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टाफ के साहस की तारीफ करनी होगी। यह कोरोना वार्ड बनने के साथ ही डयूटी पर आ गए। 27 मार्च को पहला पॉजिटिव मरीज आया तो चुनौतियां और बढ़ीं, किंतु कई डाक्टर 15 दिन पहले से सेवारत थे। उनकी सेवा और इच्छाशक्ति में कमी नहीं आई। मुङो इनका नोडल अधिकारी होने पर गर्व है।

- डॉ. तुंगवीर सिंह आर्य, नोडल अधिकारी, कोरोना वार्ड, एलएलआरएम

मोबाइल भी साथ नहीं

सभी मेडिकलकर्मियों को भी आपस में दूरी बनाए रखनी पड़ती है। हाथ में मोबाइल भी नहीं है। कारण इस पर वायरस आसानी से चिपक जाते हैं। डा. अनिरुद्ध ने बताया कि मोबाइल पर चिपका वायरस 72 घंटे तक जीवित रह सकता है। वार्ड में गर्मी सहते हुए मरीजों से मिलना, बात करना, उनकी जांच व इलाज करते हुए मनोबल बनाना। मरीजों से लगातार बातचीत की गई।

जरा सी चूक तो संक्रमण तय

प्रोटेक्शन किट के लिए लखनऊ से आई टीम ने डाक्टरों एवं पैरामेडिकल स्टाफ को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया। इसमें नाक समेत सभी अंग पूरी तरह ढके होते हैं। कहीं से कोई हवा किट के अंदर नहीं जा सकती। इसे उतारने के दौरान सर्वाधिक रिस्क होता है। किट में कहीं हाथ छू गया तो संक्रमण का खतरा कई गुना हो जाता है।

काउंसलिंग करेंगे न्यूरोसाइकेटिस्ट

मेडिकल कालेज में कोविड-19 वार्ड में तनावभरे माहौल के बीच न्यूरोसाइकेटिस्ट डा. तरुण पाल ने मरीजों और डाक्टरों की काउंसिलिंग की। वार्ड में पहुंचे मेडिकल स्टाफ में कोई एंजायटी न उभरे, इसके लिए काउंसलिंग जरूरी थी। डयूटी के दौरान रोजाना सुबह डाक्टरों ने मेडीटेशन किया। मरीजों में एंजायटी थी। इसके लिए डा. पाल ने मोर्चा संभाला। 


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