मेरठ में मच्छर नहीं एक इंसान ने पूरे समाज को कोरोना की आग में झोंका, एक झटके में 16 संक्रमित Meerut News
मेरठ में कोरोना का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। जैसे कहा जाता है कि एक मछली तालाब को गंदा कर देती है। वैसे ही मेरठ में एक युवक ने शहर में दहशत फैला दिया है।
मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। एक मच्छर..। फिल्म यशवंत में नाना पाटेकर का यह डायलॉग तो याद ही होगा। मेरठ में मच्छर नहीं पूरे समाज को संकट में एक इंसान ने डाला है। लापरवाही की इंतहा की और कोरोना के इस दौर में भी ‘सेफ’ चल रहे मेरठ को संक्रमण की भयानक आग में झोंक दिया। चले तो थे जनाब इंद्र की नगरी अमरावती से लेकिन मेरठ पहुंचे कोरोना को प्रवेश दिलाते हुए। पता नहीं इस आदमी में कितना हाई पावर कोरोना था कि एक ही झटके में 16 संक्रमित सामने आ गए। कितने ऐसे होंगे जिनके संक्रमण की हमें खबर तक नहीं। यह बात दीगर है कि मर्ज पर बस किसका है, लेकिन संक्रमण के सभी लक्षणों को लेकर शहर को लांघने से बचना तो अपने बस में था। ..लेकिन, जनाब आखिर क्यों चिंता करने लगे? उन्होंने तो मेरठ को सूबे की शीर्ष सूची में दूसरा नंबर दिला दिया।
जान बची तो लाखों पाए
महाराज जी नोएडा में क्या उखड़े, मेरठ के अफसर कांप गए। कोरोना के संकटकाल में भी एक ऐसी बिल्डिंग में रंगाई-पुताई शुरू कराई जहां अफसर अक्सर बैठकी करते हैं। ऐसा लगा मानों लंबी-लंबी झाडिय़ों को फांदकर जाने वाले अफसरों को पहली बार कांटा लगो.. सो छंटाई भी कराई। 27 मार्च की सुबह तक जिन अफसरों के चेहरे पर संतोष का भाव था, उसकी हवाईयां तो अकेले अमरावती से आए च्वीर’ ने ही उड़ा दी थीं। मवाना-सरधना में 17 मार्च से बिन बताए मस्जिदों में बैठे विदेशी मेहमान मौलवियों की पोल खुली और निजामुद्दीन मरकज से इनका नाता जुड़ा तो हार्ट बीट हाई होना लाजिमी था। इन चुनौतीपूर्ण माहौल के बीच महाराज जी के आगे अफसरों को अपनी खुफियागीरी के फेल होने की सफाई देनी थी, लेकिन ऐन वक्त दौरा क्या टला, आला अफसरों की जान में जान आयी। बोले. चलो जान बची तो लाखों पाए।
कोरोना से कम हैं क्या?
पुलिस लाइन में महाराज जी की लैंडिंग की तैयारियों की जब माइन्यूट चेकिंग चल रही थी तो एक साहब को ख्याल आया। उन्होंने अपने अधीनस्थ को बुलाया, गेट के बाहर एक कागज में यह लिखकर चिपकवाया.. कि मीडिया का प्रवेश वर्जित है। उनकी सRियता पर कुछ ने पीठ भी ठोंकी। मजाकिया लहजे में बोले, ये भी कोरोना से कम हैं क्या? इस पर किसी ने कहा तो कुछ नहीं लेकिन शायद भाव यही थे, यहां डांट-फटकार पड़ भी जाए तो ङोल लेंगे, अब नोएडा जैसी फजीहत होने से बच जाएगी। कुछ मीडिया के साथियों ने विरोध जताया तो बड़े करीने से समझाया गया ..कोरोना टाइम है। शारीरिक दूरी जरूरी है, इसीलिए यह प्रबंध किया गया है। अब साहब को यह कौन समझाए कि कल तक इन्हीं मीडियावालों के सामने ये सभी कंधे से कंधा रगड़कर जनता के बीच सेवाभाव की तस्वीरें कैद करवा रहे थे।
टैलेंट हंट का टाइम है
21 दिनों का क्वारंटाइन और लॉकडाउन टैलेंट हंट का एक बेहतर टाइम है। लोग जो करते हैं, उससे इतर और क्या कर सकते हैं, इसका भान इसी संकटकाल में हो रहा है। पुलिस महकमे से लेकर आमघरों तक ऐसे-ऐसे टैलेंट निकल रहे हैं, जिससे अपने भी अंजान थे। इन दिनों थानों की अजब तस्वीर है। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कढ़ाही में कलछी घुमाते नजर आ रहे हैं। बदमाशों की धरपकड़ की विशेषज्ञ सर्विलांस टीम पुलाव के पैकेट बनाने में विशेषज्ञता निभा रही है। ट्रैफिक सिपाही ने शोर-गुल शांत होते ही कविता गढ़ दी। ऐसे ही कुछ परिवार भी हैं, जहां टैलेंट शाम को बॉलकनी में सुनाई पड़ता है। जिस पिता-पुत्र के सुर अब तक कभी नहीं मिले, अब वे साथ-साथ सुर साधते हैं। जिनके पास सांस लेने की फुर्सत न थी, वे रिश्तेदारों के बीच ग्रुप कॉलिंग-चैटिंग में एडमिन की भूमिका निभा रहे हैं। धन्य है कोरोनाकाल!