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    आज ही के दिन मारे गए थे 42 लोग, 36 साल बाद हुई सजा, सुप्रीम कोर्ट पहुंची हाशिमपुरा कांड की खाैफनाक कहानी

    Hashimpura Massacre Meerut News पीएसी के जवानों के परिवारों ने हाई कोर्ट के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट में डाली थी अपील। पीड़ित पक्ष की तरफ से मुआवजे की मांग को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई गई है।

    By Jagran NewsEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Mon, 22 May 2023 03:17 PM (IST)
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    Hashimpura Massacre: सात महीने संगीनों के साए में रहा था मेरठ, सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हाशिमपुरा कांड

    मेरठ, जागरण संवाददाता। साल 1987 के हाशिमपुरा कांड की सुनवाई इस समय सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। हाईकोर्ट ने 16 पीएसी के जवानों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी, जिस पर पीएसी के जवानों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई साथ ही सुप्रीम कोर्ट में मृतक के परिवारों की तरफ से भी एक अर्जी डाली गई, जिसमें मृतक के परिवारों ने आर्थिक सहायता की मांग की है।

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    मुकदमे की पैरवी कर रहे हाशिमपुरा के रियाजुद्दीन ने बताया कि दोनों ही मुकदमे एक साथ चल रहे हैं। हाशिमपुरा कांड में रियाजुद्दीन के भाई कमरुद्दीन की मौत हो गई थी, इस्लामुद्दीन साथ ही के भाई निजामुद्दीन की भी मारे गए थे। इस मुकदमे की पैरवी रियाजुद्दीन और इस्लामुद्दीन मिलकर कर रहे हैं।

    36 साल बाद हुई थी सजा

    साल 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा में एक ऐसा काला अध्याय लिखा गया, जिसे यादकर लोग आज भी सिहर उठते है। 1986 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राम जन्मभूमि का ताला खोलने का आदेश दिया। तब पूरे देश में सियासी हालात तेजी से बदलने लगे। इस कड़ी में कई सारी घटनाएं हुईं, जिनमें मेरठ में हसीमपुरा कांड भी था। इस मामले में 36 साल बाद 16 पीएसी के जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।

    बिगड़ते चले गए हालात

    इस दंगे की शुरुआत अप्रैल 1987 में मेरठ में हुई और दुकानों-घरों में आगजनी की गई। एक बार फिर से 19 मई में मेरठ शहर में हालात बिगड़ गए। लूट, आगजनी और झड़पों में करीब 10 लोग मारे गए, जिसके चलते कर्फ्यू लगाना पड़ा। 20 मई 1987 में सेना, पुलिस और पीएसी ने कार्रवाई करते हुए तलाशी अभियान चलाया। लोगों को घर से बाहर निकालकर तलाशी ली गई। सेना ने तलाशी अभियान के बाद सैंकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया।

    ट्रकों में भरकर लोग ले जाने के आरोप

    हाशिमपुरा के इलाके में पीएसी की 41वीं बटालियन तैनात कर दी गई थी, जिस पर आरोप था कि वह करीब 50 से ज्यादा लोगों को ट्रकों में भरकर ले गए। इनमें किशोर, युवक व बुजुर्ग सभी शामिल थे। इसके बाद रात में पीएसी ने ट्रक को दिल्ली रोड पर मुरादनगर के पास ऊपरी गंगा नहर के किनारे रोका और कथित तौर पर कुछ ग्रामीणों को मार डाला था।

    फिर इन जवानों ने ट्रक को हिंडन नहर के किनारे माकनपुर की ओर मोड़ दिया और कथित तौर पर कुछ और लोगों को मारकर नहर में फेंक दिया। हालांकि, मृतकों की सही गिनती कभी नहीं हो पाई थी (लेकिन माना जाता है कम से कम 42 लोगों की मौत हुई थी। 36 साल बाद इस कांड में निर्णय आने पर 16 पीएसी के जवान को दोषी करार दिया गया था। जवानों के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली हुई है, जिनमें अदालत में कार्रवाई चल रही है।