खेती की इंजीनियरिंग: एक गाय के गोबर व मूत्र से तैयार हो सकती है 25 एकड़ की खेती, जाने कैसे Meerut News
प्राकृतिक खेती कर जीरो बजट में निर्मेश अच्छी पैदावार ले रहे हैं। निर्मेश के खेत का गन्ना रसायनिक खाद डालने वाले किसानों के गन्ने से भी अच्छा है।
मेरठ, [विवेक राव]। जिस खाद्यान का हम सेवन कर रहे हैं, उसे रासायनिक खाद और कीटनाशक ने जहरीला बना दिया है। इससे सेहत बनने की बजाए बिगड़ रही है। फसलों पर अंधाधुंध कीटनाशक और यूरिया झोंकने वाले किसानों के लिए इंजीनियर निर्मेश ने एक मिसाल पेश की है। वह गाय के गोबर और गोमूत्र से अच्छी पैदावार हासिल कर रहे हैं। उनकी खेती जीरो बजट की है। खेती के इस मॉडल और बाजार को देखने के लिए अन्य प्रदेशों के किसान भी उनके पास आ रहे हैं।
नौकरी छोड़कर प्राकृतिक खेती का निश्चय
मेरठ जिले से करीब 12 किलोमीटर दूर मवाना रोड पर कस्तला शमशेर नगर के रहने वाले निर्मेश ने मेकेनिकल ट्रेड से बीटेक किया है। दस साल निजी कंपनियों में नौकरी करने के बाद पिछले पांच साल से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। अपनी चाची को कैंसर से तड़पते देखकर उन्होंने नौकरी छोड़कर प्राकृतिक खेती करने का निश्चय किया। गन्ना, गेहूं, धान सहित सब्जियों को वह बगैर किसी रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रचुर मात्र में पैदा कर रहे हैं। उनके गन्ने से जो गुड़ तैयार होता है, वह राजस्थान तक जाता है। अनाज को लोग हाथों-हाथ खरीद रहे हैं।
एक देसी गाय के सहारे पूरी खेती
निर्मेश के पास चार एकड़ जमीन है। एक देशी गाय के गोबर और गोमूत्र से वह पूरी खेती कर रहे हैं। उनका कहना है एक गाय के गोबर और मूत्र से 25 एकड़ खेती की जा सकती है। एक एकड़ के लिए 10 किलो गोबर और 10 किलो गोमूत्र पर्याप्त है। गोबर और गोमूत्र का मिश्रण बनाने के बाद वह उसमें बेसन व गुड़ मिलाते हैं। फिर बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी डालकर पानी से मिश्रण को मिलाकर खेतों में छिड़काव करते हैं। खाद को तैयार करने में 10 दिन का समय लगता है। फसल में कीड़ों के लिए नीम, भांग का छिड़काव करते हैं। निर्मेश का दावा है कि वह बाहर से कोई भी पदार्थ खेत में नहीं डालते हैं। सारी चीजें घर पर तैयार होती हैं। निर्मेश ने छह साल पहले पद्मश्री सुभाष पालेकर से प्राकृतिक खेती करनी सीखी।
20 सितंबर को सीसीएस विवि में प्रशिक्षण
आधुनिक और प्राकृतिक खेती करने वाले मेरठ के किसानों के लिए एक अवसर है। 20 सितंबर को चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय के प्रेक्षागृह में पद्मश्री सुभाष पालेकर आ रहे हैं। वह गाय के गोबर और गोमूत्र से प्राकृतिक खेती करने का प्रशिक्षण देंगे।
आज इंजीनियर्स डे...बेकार नहीं है इंजीनियरिंग
15 सितंबर को इंजीनियर्स डे है। शहर में 37 से अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जहां से हजारों छात्र इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर निकलते हैं। इसमें से कुछ युवा प्लेसमेंट के बाद इंजीनियर तो बन जाते हैं, लेकिन ऐसे युवाओं की भी कमी नहीं है। जो इंजीनियरिंग को छोड़कर दूसरे फिल्ड में काम कर रहे हैं। बीटेक मैकेनिकल इंजीनियरिंग निर्मेश ने भले छोड़ दिया, लेकिन वह इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले युवाओं को एक राह भी दिखाते हैं। उनका कहना है कि इंजीनियरिंग की डिग्री यहां भी बेकार नहीं जाती है।