स्वतंत्रता के सारथी : अंधेरी राहों में ज्ञान का दीपक जला रहे हैं अविनाश Meerut News
शहर में ज्ञानोदय की वाटिका ज्ञान का दीपक जला रही है। कई जगह ऐसे गरीब बेसहारा बच्चों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश जारी है।
मेरठ, [विवेक राव]। मलिन बस्ती की रहने वाली अमरावती कभी कूड़ा बीनती थी, अब होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर शेफ बन गई है। रेहना सुबह परिवार का पेट भरने के लिए कूड़ा चुगती थी, अक्षर ज्ञान से दूर थी, अब बीएड की पढ़ाई कर रही है। कुछ ऐसी ही कहानी पूजा, राजेश, बेबी, दीक्षा आदि की भी रही है..। अब ये कामयाबी की राह पर आगे बढ़ चले हैं। यह मुमकिन हो पाया है ज्ञानोदय की वाटिका से। झुग्गी, मलिन बस्ती, सड़कों के किनारे कूड़ा बीनने वाले ऐसे बच्चे जो आज भी स्कूल नहीं जा पाते, उनके पास स्कूल पहुंचाने का प्रयास ज्ञानोदय के संस्थापक अविनाश सिंह ने किया है। शहर में कई जगह ऐसे गरीब, बेसहारा बच्चों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश जारी है।
2001 में रखी नींव
स्कूल चलो अभियान से लेकर सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी हजारों बच्चे शिक्षा से दूर हैं। छोटीसी आयु में परिवार का पेट पालने वाले ऐसे बच्चे स्कूल नहीं जाते। ऐसे गरीब बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देने के लिए अविनाश सिंह ने वर्ष 2001 में एनजीओ ज्ञानोदय की नींव रखी। जो बच्चे स्कूल नहीं जाते थे, उनके बीच वह पाठशाला लगाकर शिक्षा देने का प्रयास कर रहे हैं। इस पाठशाला को वाटिका नाम दिया है।
वाटिका में 40 से अधिक शिक्षक
हर दिन दोपहर बाद झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के बीच वाटिका लगती है। संस्था से जुड़े 40 शिक्षक अपने आसपास की वाटिका में जाकर बच्चों को पढ़ाते हैं। इसमें तीन स्तर पर शिक्षा दी जाती है। सबसे पहले सामान्य अक्षरों की पहचान और बोलना सिखाया जाता है, फिर जोड़-घटा आदि। पढ़ने लायक होते हैं तो उन्हें किसी स्कूल में प्रवेश दिलाकर उनकी फीस का प्रबंध भी करते हैं। बच्चों को नैतिक शिक्षा भी दी जाती है। साथ ही सभी को वाटिका में ही सिलाई, ब्यूटीशियन, कंप्यूटर आदि का प्रारंभिक ज्ञान दिया जाता है, ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। तीन साल से 16 साल के किशोरों को इससे जोड़ा जाता है।
94 फीसद को मिल गया रोजगार
पिछले 18 साल में ज्ञानोदय कई हजार गरीब बच्चों को शिक्षित कर चुकी है। ये बच्चे शिक्षक, शेफ, ब्यूटीशियन, प्लंबर आदि बनकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। इनमें करीब 94 फीसद रोजगार पा चुके हैं। अविनाश सिंह कहते हैं कि झुग्गी में रहने वाले बच्चे शिक्षित होकर आत्मनिर्भर बनेंगे तभी हर जगह ज्ञान की रोशनी फैल पाएगी।
यहां लगती है ज्ञानोदय की वाटिका
मेरठ में जवाहरनगर, मंगतपुरम, घोसी मोहल्ला, कासमपुर, नई बस्ती, भूसामंडी, मुल्ताननगर, महरौली मोहल्ले में गरीब बच्चे वाटिका में नियमित पढ़ते हैं। मेरठ के अलावा देहरादून और दिल्ली ओखला में भी एक-एक वाटिका में झुग्गी बस्ती के बच्चों को शिक्षा दी जा रही है।
इनका कहना है
आज मैं मेरठ के बड़े होटल में नौकरी कर रहा हूं। बचपन में कभी सोचा नहीं था ऐसा भी कुछ हो पाएगा। गरीबी के कारण पढ़ाई से दूर था, लेकिन दयाल वाटिका और ज्ञानोदय ने मेरा भाग्य बदल दिया। शुरुआती पढ़ाई से लेकर कैरियर बनाने तक पूरा सहयोग मिला। जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता।
- राजेश
मैं मद्रासी कॉलोनी की झुग्गियों में रहती थी। वहां आसपास लोग बच्चों से शराब बिकवाते थे। हम जैसे लोग कूड़ा भी बीने। जवाहर वाटिका में मैंने पढ़ाई की। आगे उन्हीं के सहयोग से प्रोफेशनल कोर्स कर पाई। आज बेंगलुरु में एक होटल में शेफ का कार्य कर रही हूं।
- अमरावती, शेफ
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