Research Report : हैरतअंगेज, दोस्ती के नाम पर 52 फीसद युवा बन गए नशाखोर Meerut News
यह हैरतअंगेज है मेडिकल कालेज के शोध में पता चला कि 52 फीसद युवकों ने दोस्ती के नाम पर नशाखोरी शुरू की। इनमें 59 फीसद के दोस्त नशाखोर मिले।
By Ashu SinghEdited By: Published: Mon, 15 Jul 2019 10:54 AM (IST)Updated: Mon, 15 Jul 2019 10:54 AM (IST)
मेरठ, [संतोष शुक्ल] । दोस्त के कहने पर मुन्ना ने नशे की पुड़िया खोली और झिझकते हुए चखा। दिमाग में खतरनाक हलचल हुई। अब मुन्ना की हर शाम नशे में गुजरती है। वो तीन हजार रुपये की नशे की पुड़िया खरीदने पड़ोसी शहरों तक चला जाता है। मेडिकल कालेज के शोध में पता चला कि 52 फीसद युवकों ने दोस्ती के नाम पर नशाखोरी शुरू की। इनमें 59 फीसद के दोस्त नशाखोर मिले।
58 फीसद ने छोड़ना चाहा पर नहीं उबरे
एलएलआरएम मेडिकल कालेज की पीजी छात्र डा. लुबना जरीन ने सालभर तक 900 छात्रों पर शोध किया। उम्र, नशे के प्रकार, माता-पिता के असर व अन्य तथ्यों का अध्ययन किया गया। पता चला कि 52 फीसद युवकों ने दोस्ती के दबाव में, 20 फीसद ने उत्सुकता में और आठ फीसद ने तनाव दूर करने के लिए नशे का सहारा लिया। इसमें 58.1 फीसद ने छोड़ने का प्रयास तो किया, लेकिन उबर नहीं पाए। 25 साल की उम्र पार करने वाले 53.7 फीसद युवक नियमित नशाखोरी करते मिले। शोध में साफ हुआ कि 54.3 फीसद युवक शाम के समय, वहीं 29. 1 फीसद रात और 13 फीसद दोपहर में नशा करते हैं।
नॉनवेज वाले ज्यादा करते हैं नशा
मेडिकल कालेज की शोध रिपोर्ट के मुताबिक नशा करने वालों में 59.8 फीसद मांसाहारी थे और 32.4 फीसद शाकाहारी मिले। हालांकि तंबाकू सबसे आम नशा मिला। 62 फीसद तंबाकू, 56.8 फीसद अल्कोहल और 47 फीसद नशे का पदार्थ लेते थे।
कान्फ्रेंस में सराहा गया शोध
डा. लुबना जरीन ने इसी वर्ष शिमला में आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन में इस शोध को प्रस्तुत किया, जहां काफी सराहना मिली। डा. लुबना ने छात्रों के बीच बढ़ती नशाखोरी के कई नए तथ्यों को उजागर किया।
62.5 फीसद के सिर पर नहीं था मां-बाप का साया
नशाखोरी के लिए परिवेश सर्वाधिक जिम्मेदार मिला। पता चला कि 58.5 फीसद के दोस्तों में तंबाकू, अल्कोहल, स्मैक, अफीम, चरस लेने की लत थी। जिन युवकों में नशा लेने की आदत मिली उनमें 62.5 फीसद के मां-बाप नहीं थे। 55.3 फीसद ऐसे मिले जिसके पिता और 47.6 की मां की मौत हो चुकी। 46 फीसद युवकों के परिवार में कोई नशा नहीं करता था और 39.4 फीसद के घर में नशे की हिस्ट्री मिली। 64 फीसद हास्टल में, वहीं 53.2 फीसद किराए पर और 29 फीसद घर पर रहते थे।
इनका कहना है
शोध में सभी पहलुओं का आकलन किया गया। पहली बार नशा लेने में 13 से 21 वर्ष के बच्चों की संख्या 49.4 फीसद, 20 साल से ज्यादा उम्र में 26 प्रतिशत मिली। 52 फीसद युवक नशामुक्ति की थेरेपी के बारे में जानते ही नहीं। 33 फीसद युवकों की पढ़ाई खराब हो गई। स्नातक के द्वितीय वर्ष में सर्वाधिक नशाखोरी मिली।
- डा. हरवंश चोपड़ा, विभागध्यक्ष, कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, मेडिकल कालेज
नशा लेने से ब्रेन का रिवार्ड सेंटर एक्टिव हो जाता है। डोपामिन हार्मोन्स रिलीज होते हैं। अब कई संपन्न परिवारों के बच्चे स्मैक की पुड़िया खोजने पड़ोसी जिलों तक पहुंच जाते हैं। इलाज के लिए काउंसलिंग और सटीक दवाएं जरूरी हैं।
- डा. सत्यप्रकाश, न्यूरोसाइकेटिस्ट
नशे की लत नपुंसकता की बड़ी वजह है। डिप्रेशन और एंजायटी का रिस्क कई गुना होता है। नसों में इंजेक्शन के जरिए नशा लेने वालों में एचआइवी संक्रमण देखा जा रहा है।
- डा. सुनील जिंदल, एंड्रोलाजिस्ट
58 फीसद ने छोड़ना चाहा पर नहीं उबरे
एलएलआरएम मेडिकल कालेज की पीजी छात्र डा. लुबना जरीन ने सालभर तक 900 छात्रों पर शोध किया। उम्र, नशे के प्रकार, माता-पिता के असर व अन्य तथ्यों का अध्ययन किया गया। पता चला कि 52 फीसद युवकों ने दोस्ती के दबाव में, 20 फीसद ने उत्सुकता में और आठ फीसद ने तनाव दूर करने के लिए नशे का सहारा लिया। इसमें 58.1 फीसद ने छोड़ने का प्रयास तो किया, लेकिन उबर नहीं पाए। 25 साल की उम्र पार करने वाले 53.7 फीसद युवक नियमित नशाखोरी करते मिले। शोध में साफ हुआ कि 54.3 फीसद युवक शाम के समय, वहीं 29. 1 फीसद रात और 13 फीसद दोपहर में नशा करते हैं।
नॉनवेज वाले ज्यादा करते हैं नशा
मेडिकल कालेज की शोध रिपोर्ट के मुताबिक नशा करने वालों में 59.8 फीसद मांसाहारी थे और 32.4 फीसद शाकाहारी मिले। हालांकि तंबाकू सबसे आम नशा मिला। 62 फीसद तंबाकू, 56.8 फीसद अल्कोहल और 47 फीसद नशे का पदार्थ लेते थे।
कान्फ्रेंस में सराहा गया शोध
डा. लुबना जरीन ने इसी वर्ष शिमला में आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन में इस शोध को प्रस्तुत किया, जहां काफी सराहना मिली। डा. लुबना ने छात्रों के बीच बढ़ती नशाखोरी के कई नए तथ्यों को उजागर किया।
62.5 फीसद के सिर पर नहीं था मां-बाप का साया
नशाखोरी के लिए परिवेश सर्वाधिक जिम्मेदार मिला। पता चला कि 58.5 फीसद के दोस्तों में तंबाकू, अल्कोहल, स्मैक, अफीम, चरस लेने की लत थी। जिन युवकों में नशा लेने की आदत मिली उनमें 62.5 फीसद के मां-बाप नहीं थे। 55.3 फीसद ऐसे मिले जिसके पिता और 47.6 की मां की मौत हो चुकी। 46 फीसद युवकों के परिवार में कोई नशा नहीं करता था और 39.4 फीसद के घर में नशे की हिस्ट्री मिली। 64 फीसद हास्टल में, वहीं 53.2 फीसद किराए पर और 29 फीसद घर पर रहते थे।
इनका कहना है
शोध में सभी पहलुओं का आकलन किया गया। पहली बार नशा लेने में 13 से 21 वर्ष के बच्चों की संख्या 49.4 फीसद, 20 साल से ज्यादा उम्र में 26 प्रतिशत मिली। 52 फीसद युवक नशामुक्ति की थेरेपी के बारे में जानते ही नहीं। 33 फीसद युवकों की पढ़ाई खराब हो गई। स्नातक के द्वितीय वर्ष में सर्वाधिक नशाखोरी मिली।
- डा. हरवंश चोपड़ा, विभागध्यक्ष, कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, मेडिकल कालेज
नशा लेने से ब्रेन का रिवार्ड सेंटर एक्टिव हो जाता है। डोपामिन हार्मोन्स रिलीज होते हैं। अब कई संपन्न परिवारों के बच्चे स्मैक की पुड़िया खोजने पड़ोसी जिलों तक पहुंच जाते हैं। इलाज के लिए काउंसलिंग और सटीक दवाएं जरूरी हैं।
- डा. सत्यप्रकाश, न्यूरोसाइकेटिस्ट
नशे की लत नपुंसकता की बड़ी वजह है। डिप्रेशन और एंजायटी का रिस्क कई गुना होता है। नसों में इंजेक्शन के जरिए नशा लेने वालों में एचआइवी संक्रमण देखा जा रहा है।
- डा. सुनील जिंदल, एंड्रोलाजिस्ट
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