आवारा आतंक : टॉमी प्लीज मत काटना...वैक्सीन नहीं मिलेगी Meerut News
शहर में कुत्तों और बंदरों के हमलों की बढ़ती घटनाओं के बावजूद प्रदेश सरकार मेरठ को हर माह एंटी रैबीज के सिर्फ 950 वॉयल देगीजबकि खपत दो हजार वॉयल की है।
By Ashu SinghEdited By: Published: Thu, 04 Jul 2019 01:18 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jul 2019 04:30 PM (IST)
मेरठ, [अमर सिंह राघव]। जिले में आवारा आतंक का साया भयावह होता जा रहा है। कुत्तों और बंदरों के हमलों की बढ़ती घटनाओं के बावजूद प्रदेश सरकार मेरठ को हर माह एंटी रैबीज के सिर्फ 950 वॉयल देगी,जबकि खपत दो हजार वॉयल की है। स्वास्थ्य विभाग ने भी लोगों को आगाह कर दिया है कि कुत्तों से बचकर रहें,इंजेक्शन मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
वैक्सीन का संकट गहराया
सीएमओ डा.राजकुमार ने बताया कि दो साल से एंटी रैबीज इंजेक्शनों की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पा रही है। विभाग ने शासन से कई बार इंजेक्शनों की संख्या बढ़ाने के लिए पत्र लिखा, जिस पर गत सप्ताह शासन ने मेरठ के लिए 950 वॉयल की मात्रा निर्धारित कर दी। स्वास्थ्य निदेशालय के अनुसार वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां पर्याप्त आपूर्ति नहीं कर पा रही हैं। मेरठ के 12 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में हर माह करीब 20 हजार वॉयल एंटी रैबीज इंजेक्शनों की जरूरत पड़ती है। पिछले साल वैक्सीन आपूर्ति करने वाली कंपनी को छोड़कर विभाग ने दूसरी कंपनी को आर्डर दे दिया। कई जिलों में पुरानी आपूर्ति का भुगतान भी कंपनियों को नहीं मिला।
सौ फीसद जानलेवा है रैबीज
संक्रमित कुत्ते, बंदर, लोमड़ी, तेंदुआ, घोड़ा, बिल्ली, गाय, भैंस, नेवले, चूहे या छछुंदर के काटने से भी व्यक्ति को रैबीज की बीमारी हो सकती है। इसका वायरस तंत्रिका तंत्र के जरिए मस्तिष्क की ओर बढ़ता है और व्यक्ति को हाइड्रोफोबिया हो जाता है। मरीज पानी से डरता है और कुछ दिनों में उसकी मौत हो जाती है।
22632 लोगों को लगी वैक्सीन
जिला अस्पताल में सालभर में 22 हजार 632 लोगों के लिए करीब 4894 वॉयल खर्च हुईं। बाजार में इसकी कीमत 14 लाख 54 हजार 700 रुपये आंकी गई। निजी अस्पतालों को भी शामिल करें तो सालभर में करीब एक लाख लोग कुत्तों एवं बंदरों के शिकार हुए। आवारा आतंक पर नियंत्रण के लिए हाईकोर्ट ने भी आदेश दिया, किंतु नगर निगम फेल रहा।
इस तरह बरतें सावधानी
-कुत्ता या बंदर काटे तो घाव को बहते पानी से साबुन लगाकर 15 मिनट तक धोएं
-घाव पर डिटॉल, बीटाडीन या एंटीसेप्टिक न लगाएं। टिटनेस का इंजेक्शन जरूरी
-काटने वाले कुत्ते पर नजर रखते हुए दो वैक्सीन लगवाएं। अगर कुत्ता 15 दिन जीवित है तो दो वैक्सीन के बाद इंजेक्शन की जरूरत नहीं
-अगर पालतू कुत्ते को एंटी रैबीज वैक्सीन लगी है तो भी उसके काटने से रैबीज हो सकता है।
एक वॉयल में पांच मरीजों को लगाते हैं वैक्सीन
बाजार में एक वॉयल की कीमत करीब 300 रुपये है। सरकारी केंद्रों पर एक वॉयल में करीब पांच लोगों को रैबीज का इंजेक्शन लगाते हैं। यह वॉयल आधा एमएल की आती है। इन्ट्रा टर्मल में .1 एमएल में पांच लोगों को इंजेक्शन लगाते हैं। इन्ट्रा मस्कुलर में एक वॉयल का पूरा एक डोज होता है।
इनका कहना है
जिले में हर माह करीब 1500-2000 वॉयल की खपत है, जबकि शासन अब सिर्फ 950 वॉयल ही देगा। कुत्तों के हमले में जरा सी खरोंच पर भी लोग डरकर इंजेक्शन लगवाते हैं, जबकि यह नुकसान भी करता है।
- डा. राजकुमार, सीएमओ
जिला अस्पताल में हर माह वैक्सीन की करीब पांच हजार डोज खर्च होती हैं। गांव के मरीज भी जिला अस्पताल पहुंचने लगते हैं, ऐसे में वैक्सीन की कमी हो जाती है। ग्रामीणों के लिए पीएचसी-सीएचसी निर्धारित है। इसीलिए जिला अस्पताल में मरीजों का पहचान पत्र देखकर इंजेक्शन लगाया जा रहा है।
- डा. पीके बंसल, सीएमएस, जिला अस्पताल
वैक्सीन का संकट गहराया
सीएमओ डा.राजकुमार ने बताया कि दो साल से एंटी रैबीज इंजेक्शनों की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पा रही है। विभाग ने शासन से कई बार इंजेक्शनों की संख्या बढ़ाने के लिए पत्र लिखा, जिस पर गत सप्ताह शासन ने मेरठ के लिए 950 वॉयल की मात्रा निर्धारित कर दी। स्वास्थ्य निदेशालय के अनुसार वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां पर्याप्त आपूर्ति नहीं कर पा रही हैं। मेरठ के 12 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में हर माह करीब 20 हजार वॉयल एंटी रैबीज इंजेक्शनों की जरूरत पड़ती है। पिछले साल वैक्सीन आपूर्ति करने वाली कंपनी को छोड़कर विभाग ने दूसरी कंपनी को आर्डर दे दिया। कई जिलों में पुरानी आपूर्ति का भुगतान भी कंपनियों को नहीं मिला।
सौ फीसद जानलेवा है रैबीज
संक्रमित कुत्ते, बंदर, लोमड़ी, तेंदुआ, घोड़ा, बिल्ली, गाय, भैंस, नेवले, चूहे या छछुंदर के काटने से भी व्यक्ति को रैबीज की बीमारी हो सकती है। इसका वायरस तंत्रिका तंत्र के जरिए मस्तिष्क की ओर बढ़ता है और व्यक्ति को हाइड्रोफोबिया हो जाता है। मरीज पानी से डरता है और कुछ दिनों में उसकी मौत हो जाती है।
22632 लोगों को लगी वैक्सीन
जिला अस्पताल में सालभर में 22 हजार 632 लोगों के लिए करीब 4894 वॉयल खर्च हुईं। बाजार में इसकी कीमत 14 लाख 54 हजार 700 रुपये आंकी गई। निजी अस्पतालों को भी शामिल करें तो सालभर में करीब एक लाख लोग कुत्तों एवं बंदरों के शिकार हुए। आवारा आतंक पर नियंत्रण के लिए हाईकोर्ट ने भी आदेश दिया, किंतु नगर निगम फेल रहा।
इस तरह बरतें सावधानी
-कुत्ता या बंदर काटे तो घाव को बहते पानी से साबुन लगाकर 15 मिनट तक धोएं
-घाव पर डिटॉल, बीटाडीन या एंटीसेप्टिक न लगाएं। टिटनेस का इंजेक्शन जरूरी
-काटने वाले कुत्ते पर नजर रखते हुए दो वैक्सीन लगवाएं। अगर कुत्ता 15 दिन जीवित है तो दो वैक्सीन के बाद इंजेक्शन की जरूरत नहीं
-अगर पालतू कुत्ते को एंटी रैबीज वैक्सीन लगी है तो भी उसके काटने से रैबीज हो सकता है।
एक वॉयल में पांच मरीजों को लगाते हैं वैक्सीन
बाजार में एक वॉयल की कीमत करीब 300 रुपये है। सरकारी केंद्रों पर एक वॉयल में करीब पांच लोगों को रैबीज का इंजेक्शन लगाते हैं। यह वॉयल आधा एमएल की आती है। इन्ट्रा टर्मल में .1 एमएल में पांच लोगों को इंजेक्शन लगाते हैं। इन्ट्रा मस्कुलर में एक वॉयल का पूरा एक डोज होता है।
इनका कहना है
जिले में हर माह करीब 1500-2000 वॉयल की खपत है, जबकि शासन अब सिर्फ 950 वॉयल ही देगा। कुत्तों के हमले में जरा सी खरोंच पर भी लोग डरकर इंजेक्शन लगवाते हैं, जबकि यह नुकसान भी करता है।
- डा. राजकुमार, सीएमओ
जिला अस्पताल में हर माह वैक्सीन की करीब पांच हजार डोज खर्च होती हैं। गांव के मरीज भी जिला अस्पताल पहुंचने लगते हैं, ऐसे में वैक्सीन की कमी हो जाती है। ग्रामीणों के लिए पीएचसी-सीएचसी निर्धारित है। इसीलिए जिला अस्पताल में मरीजों का पहचान पत्र देखकर इंजेक्शन लगाया जा रहा है।
- डा. पीके बंसल, सीएमएस, जिला अस्पताल
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