हर साल 12 लाख मरीजों का इलाज करने वाले मेडिकल अस्पताल में लगेगा ताला,जानिए क्यों Meerut News
दवा कंपनियों की भारी भरकम देनदारी के कारण पश्चिमी उप्र के सबसे बड़े लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज स्थित अस्पताल पर ताला लटकने की नौबत आ सकती है।
By Ashu SinghEdited By: Published: Thu, 04 Jul 2019 10:55 AM (IST)Updated: Thu, 04 Jul 2019 10:55 AM (IST)
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। पश्चिमी उप्र के सबसे बड़े लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज स्थित अस्पताल पर ताला लटकने की नौबत आ सकती है। 12 लाख सालाना मरीजों की ओपीडी से दबे सरदार वल्लभ भाई पटेल चिकित्सालय में सितंबर तक दवाएं खत्म हो जाएंगी। दर्जनों कंपनियों ने करोड़ों रुपये बकाया देखते हुए दवा आपूर्ति रोक दी है। अस्पताल प्रशासन भी अब उधार दवा नहीं खरीदेगा। उधर,प्रदेश सरकार ने इस वर्ष दवा के बजट में पांच करोड़ की कटौती कर इलाज की रीढ़ तोड़ दी।
जल्द खत्म होगा दवाओं का स्टाक
2017 में प्रदेश में योगी सरकार बनने के साथ ही दवाओं की खरीद का बजट बढ़ाया गया। शासन की मंशा यह थी कि मरीजों को बाहर से दवाएं न खरीदनी पड़ें। इसी क्रम में सरकार ने वर्ष 2017-18 के दौरान मेडिकल अस्पताल को दवा खरीद के लिए 15 करोड़ का बजट जारी कर दिया। मरीजों को ज्यादातर दवाएं अस्पताल में मिलने लगीं। किंतु शासन ने 2018-19 में घटाकर सिर्फ दस करोड़ का बजट दिया। बजट में पांच करोड़ की कमी हुई,जबकि इस दौरान दो लाख मरीज बढ़ गए।
दवा कंपनियों का 4.84 करोड़ रुपये बकाया
आखिरकार 2019 जनवरी में दवाएं खत्म होने लगीं। दवा कंपनियों से दवाएं उधार खरीदी गईं। अस्पताल पर दवा कंपनियों का 4.84 करोड़ रुपये बकाया है। अप्रैल 2019 में शासन ने छह करोड़ का बजट दिया, जिसमें पचास फीसद खर्च आक्सीजन एवं रसायनों की खरीद पर हुआ। इसमें से 1.35 करोड़ रुपये रेडियोसोर्स के लिए खर्च किया जाएगा। उधर, गत दिनों अस्पताल प्रशासन ने पांच करोड़ की दवाएं एडवांस खरीद लीं, जिस पर शासन ने सफाई मांगी। ऐसे में अस्पताल प्रशासन अब एडवांस दवा नहीं खरीदेगा।
..25 करोड़ तो हर साल हो रहे खर्च
अस्पताल प्रशासन ने शासन को पत्र भेजकर दवाओं पर खर्च का गणित समझाया है।
हर साल ओपीडी में 10 लाख मरीज
हर मरीज पर औसतन 100 रुपये की दवा
ऐसे में दस करोड़ सिर्फ ओपीडी पर खर्च
हर साल 30 हजार मरीज भर्ती किए गए
औसतन पांच दिन मरीज भर्ती
प्रतिदिन कम से कम 1000 रुपये खर्च
ऐसे में करीब 15 करोड़ खर्च
नोट-इसमें आक्सीजन, लैब केमिकल की खरीद शामिल नहीं है।
इनका कहना है
वर्ष 2017-18 में आठ लाख व 18-19 में दस लाख मरीज ओपीडी में आए,जबकि बजट पांच करोड़ कम मिला। अप्रैल में छह करोड़ मिला,जिसमें तीन करोड़ की दवा खरीदी जा सकी। कंपनियों का 4.84 करोड़ बकाया है। अब उधार दवाएं नहीं खरीदी जाएंगी। शासन से अतिरिक्त बजट की मांग की गई है।
- डा.आरसी गुप्ता, प्राचार्य
जल्द खत्म होगा दवाओं का स्टाक
2017 में प्रदेश में योगी सरकार बनने के साथ ही दवाओं की खरीद का बजट बढ़ाया गया। शासन की मंशा यह थी कि मरीजों को बाहर से दवाएं न खरीदनी पड़ें। इसी क्रम में सरकार ने वर्ष 2017-18 के दौरान मेडिकल अस्पताल को दवा खरीद के लिए 15 करोड़ का बजट जारी कर दिया। मरीजों को ज्यादातर दवाएं अस्पताल में मिलने लगीं। किंतु शासन ने 2018-19 में घटाकर सिर्फ दस करोड़ का बजट दिया। बजट में पांच करोड़ की कमी हुई,जबकि इस दौरान दो लाख मरीज बढ़ गए।
दवा कंपनियों का 4.84 करोड़ रुपये बकाया
आखिरकार 2019 जनवरी में दवाएं खत्म होने लगीं। दवा कंपनियों से दवाएं उधार खरीदी गईं। अस्पताल पर दवा कंपनियों का 4.84 करोड़ रुपये बकाया है। अप्रैल 2019 में शासन ने छह करोड़ का बजट दिया, जिसमें पचास फीसद खर्च आक्सीजन एवं रसायनों की खरीद पर हुआ। इसमें से 1.35 करोड़ रुपये रेडियोसोर्स के लिए खर्च किया जाएगा। उधर, गत दिनों अस्पताल प्रशासन ने पांच करोड़ की दवाएं एडवांस खरीद लीं, जिस पर शासन ने सफाई मांगी। ऐसे में अस्पताल प्रशासन अब एडवांस दवा नहीं खरीदेगा।
..25 करोड़ तो हर साल हो रहे खर्च
अस्पताल प्रशासन ने शासन को पत्र भेजकर दवाओं पर खर्च का गणित समझाया है।
हर साल ओपीडी में 10 लाख मरीज
हर मरीज पर औसतन 100 रुपये की दवा
ऐसे में दस करोड़ सिर्फ ओपीडी पर खर्च
हर साल 30 हजार मरीज भर्ती किए गए
औसतन पांच दिन मरीज भर्ती
प्रतिदिन कम से कम 1000 रुपये खर्च
ऐसे में करीब 15 करोड़ खर्च
नोट-इसमें आक्सीजन, लैब केमिकल की खरीद शामिल नहीं है।
इनका कहना है
वर्ष 2017-18 में आठ लाख व 18-19 में दस लाख मरीज ओपीडी में आए,जबकि बजट पांच करोड़ कम मिला। अप्रैल में छह करोड़ मिला,जिसमें तीन करोड़ की दवा खरीदी जा सकी। कंपनियों का 4.84 करोड़ बकाया है। अब उधार दवाएं नहीं खरीदी जाएंगी। शासन से अतिरिक्त बजट की मांग की गई है।
- डा.आरसी गुप्ता, प्राचार्य
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