दक्षिण अफ्रीका में जगा रहे संस्कृत की अलख
-मेरठ कालेज से शिक्षा लेकर विदेश में रोपी संस्कारों की नींव
विवेक राव, मेरठ :
स्याह अतीत के कैनवास पर उज्ज्वल भविष्य की इबारत लिख रहे ह
ैं डा.राम विलास। अंग्रेजों ने उनके पूर्वजों को मजदूर बनाकर जिस दक्षिण अफ्रीका में भेजा, अपने संस्कृत ज्ञान से उन्होंने उस धरती को गुलजार कर दिया। अब वह शिद्दत से वहां संस्कृत का परचम फहराने में जुटे हुए हैं।
करीब 165 साल पहले डा. राम विलास के पूर्वजों को अंग्रेजों ने जबरन मजदूर बनाकर दक्षिण अफ्रीका भेजा। भारतीय मूल के डा. राम विलास वहीं पर रहकर पले-बढ़े। इसके बावजूद भारतीय संस्कृति और देश की माटी पर बैठने की कसक उनके दिल में बरकरार रही। करीब 40 साल पहले वह स्वदेश लौट आए। मेरठ कालेज से संस्कृत में एमए की पढ़ाई की। गुरुकुल प्रभात आश्रम टीकरी से संस्कृत की दीक्षा ली और लौट गए दक्षिण अफ्रीका। यहां उन्होंने संस्कृत की अलख जगाई और जुट गए संस्कृत भाषा, शास्त्रीय संगीत और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में। 1990 में दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी आफ डरबन में भारतीय भाषा के शिक्षक के तौर पर संस्कृत को आगे बढ़ाया। अब ¨हदू प्राइमरी स्कूल के माध्यम से नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से रूबरू करा रहे हैं। बकौल डा. राम दक्षिण अफ्रीका और भारत के लोगों के प्राकृतिक रूप से कई विचार मिलते हैं। इसी को ध्यान में रखकर ¨हदू प्राइमरी स्कूल खोला है। इसमें भारतीय संस्कृत, संगीत, भरत नाट्यम, कथक, यज्ञ की जानकारी दी जा रही है। पाठ्यक्रम में गायत्री मंत्र और संगीत को जोड़ा गया है। कल्चरल इंटीग्रेटेड के माध्यम से भारतीय संस्कृति और ¨हदू धर्म से लोगों को अवगत कराया जा रहा है। नई पीढ़ी में ¨हदी बोलने के उत्साह को देखते हुए ¨हदी शिक्षा संघ की ओर से एक रेडियो प्रोग्राम भी चलाया जा रहा है। यहां लोग ¨हदी बोलने का अभ्यास कर रहे हैं। सामान्य तरीके से संस्कृत की शिक्षा
दो दिन पहले मेरठ आए डा. राम विलास का कहना है कि भारत में भले ही संस्कृत रोजगार की भाषा नहीं बन पाई और लोग इससे छिटक रहे हैं, लेकिन वहां लोग संगीत और संस्कृत को सहज भाव से आत्मसात कर रहे हैं। संस्कृति की गहराई से समझ संस्कृत से ही संभव है। इसलिए भारतीय मूल के लोग ही नहीं दक्षिणी अफ्रीका के लोग भी संस्कृत सीखने को आतुर हैं।