बटन की जगह माउस से कंट्रोल होंगी ट्रेनें
ओम बाजपेयी, मेरठ रेलवे ट्रैक दोहरीकरण कार्य के दौरान कैंट, पावली और दौराला जैसे स्टेशन सिग्नलिंग
ओम बाजपेयी, मेरठ
रेलवे ट्रैक दोहरीकरण कार्य के दौरान कैंट, पावली और दौराला जैसे स्टेशन सिग्नलिंग और कंट्रोल प्रणाली टेक्नॉलाजी के मामले में दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे स्टेशनों के समकक्ष हो जाएंगे। दिल्ली मेरठ सहारनपुर रूट पर तो दिल्ली के बाद यह पहले स्टेशन होंगे जहां सॉलिड स्टेट इंटरलाकिंग (एसएसआइ) आधारित तकनीक काम करेगी। अभी तक मेरठ सिटी समेत अन्य स्टेशनों पर रूट रिले इंटरलाकिंग (आरआरआइ) प्रणाली पर आधारित कंट्रोल पैनल हैं।
सिटी स्टेशन से दौराला के बीच
18 किलोमीटर की दूरी में रेलवे ट्रैक दोहरी करण का काम पूरा हो गया। मेरठ सिटी, मेरठ कैंट, और पाबली और दौराला नए सिग्नल लगाने और उसे पुराने सिस्टम से जोड़ने के लिए नान इंटरलाकिंग का कार्य जोरों पर चल रहा है। मेरठ सिटी स्टेशन पर पहले से ही डबल ट्रैक है इसलिए मुख्य काम कैंट, पाबली और दौराला स्टेशन पर हो रहा है।आरआरआइ प्रणाली के कंट्रोल पैनेल का स्थान बड़ी एलइडी कंप्यूटर स्क्रीन ने ले लिया है। बटन की बजाए अब स्टेशन मास्टर माउस के जरिए ट्रेनों का नियंत्रण करते नजर आएंगे। दिल्ली सहारनपुर रूट पर यह पहले स्टेशन होंगे जहां यह प्रणाली काम करेगी। नई प्रणाली पर कार्य करने के लिए स्टाफ को प्रशिक्षण देने का काम भी साथ साथ किया जा रहा है।
इस तरह हाइटेक हो जाएगा सिस्टम
आरआरआइ में सिग्नल से संबधित विभिन्न प्रकार के फंक्शन तारों के माध्यम से रिले से संबद्ध होते थे और रिले के माध्यम से सिग्नल आपरेट होते थे। एसएसआइ में विभिन्न प्रकार के फंक्शन का साफ्टवेयर तैयार कर उसकी प्रोग्राम्ड चिप बना दी गई है। प्रोग्राम्ड चिप को रिले में लगाया गया है जिससे वह आपरेट होगी। जिससे तारों का जंजाल काफी काम हो गया है। आरआरआइ में कई कई रिले होती थी वहीं एसएसआइ में कुछ ही रिलों से पूरी प्रणाली आपरेट हो जाएगी।
तारों के जाल से मुक्ति, व्यवस्थित रहेगा रिले रूम
आरआरआइ में तारों का जाल होता था तार टूटने और उनमें फाल्ट होने की संभावना होती थी साथ ही रिले रूम भी काफी बड़ा होता था। रिले को आपरेट करने के लिए निश्चित वोल्टेज की आवश्यकता होती है तारों के चलते वोल्टेज ड्राप होने से अक्सर रिले आपरेट नहीं होती है।
नब्बे के दशक में होता था हत्थी लीवर से सिग्नलों का प्रचालन
मेरठ कैंट में सबसे पहले आरआरआइ प्रणाली आई थी। इसके बाद मेरठ सिटी स्टेशन में 2002 में आरआरआइ कंट्रोल पैनल लगाया गया था। इसके पहले हत्थी लीवर से सिग्नल आपरेट किए जाते थे। स्टेशन के दोनो ओर दो केबिन होते थे और बीच में स्टेशन मास्टर का कक्ष होता था। कांटे सेट करने काम और सिग्नल आपरेट करने काम हाथों से किया जाता था। नियमित रूप से तीस से चालीस कर्मी शिफ्टों में 24 घंटे काम करते थे।
वर्जन
सॉलिड स्टेट इंटरलाकिंग अत्याधुनिक है। ट्रेनों के सुरक्षित संचालन की दृष्टि मे यह बेहद विश्वसनीय है। जिन स्टेशनों में नया सिस्टम लग रहा है, वह इसी प्रणाली पर आधारित है। मेरठ सहारनपुर रूट पर इसे पहली बार लगाया गया है। सकौती टांडा और खतौली में भी इस सिस्टम को लगाया जाएगा।
-नीरज शर्मा, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी, उत्तर रेलवे