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काली के किनारे पांच गुना ज्यादा फैला कैंसर

सासंतोष शुक्ल,मेरठ हाईकोर्ट ने गंगा नदी के कायाकल्प की उम्मीदों को नई ताकत दे दी, किंतु उसका सहाय

By JagranEdited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 02:08 AM (IST)Updated: Tue, 21 Mar 2017 02:08 AM (IST)
काली के किनारे पांच गुना ज्यादा फैला कैंसर

सासंतोष शुक्ल,मेरठ

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हाईकोर्ट ने गंगा नदी के कायाकल्प की उम्मीदों को नई ताकत दे दी, किंतु उसका सहायक काली नदी का क्या? दशकों तक औद्योगिक जहर ढोते हुए गंगा में गिराने वाली काली अब कैंसर की खामोश धारा में तब्दील हो गई है, जहां किनारे स्थित गांवों में राष्ट्रीय अनुपात से पांच गुना कैंसर रोगी मिले हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो काली नदी के जहरीले तत्वों में गंगा नदी की इकालोजी को भी विषाक्त बनाकर मछलियों समेत अन्य जलीय जीवों का डीएनए बिगाड़ दिया।

एनजीटी में प्रशासन द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में काली नदी के किनारे स्थित भूजल को साफ बताया गया, जबकि वैज्ञानिक जांचों में पानी में कैडमियम, लेड एवं क्रोमियम जैसे कैंसरकारक तत्व मिले हैं। दशकों तक शरीर में पहुंचे विषाक्त तत्वों ने कैंसर का सैलाब ला दिया। सलारपुर में जगपाल (58) पुत्र राजे पेशे से किसान हैं। दिल्ली और लखनऊ पीजीआइ में अपना दो बार इलाज करा चुके हैं। गले के कैंसर से पीड़ित जगपाल की आवाज निकलनी बंद पड़ गई है। वह बताते हैं कि नदी के पानी में घुलते जहरीले औद्योगिक कचरों से बीमारियां फैलीं। सैनी गांव में छतरपाल (68) पुत्र रघुनाथ ¨सह की एक माह पहले कैंसर से मौत हुई है। उनके छोटे भाई हरपाल (62) ने गत वर्ष छह जुलाई को पेट में कैंसर का आपरेशन कराया। वह कहते हैं कि उन्होंने कभी तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी एवं शराब का सेवन नहीं किया, किंतु फिर भी कैंसर की गिरफ्त में हैं। नंगलाशेखू से लेकर औरंगाबाद एवं कस्तला तक कैंसर की तमाम कहानियां सुनने को मिली।

एनजीटी भी हैरान

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल वेस्ट यूपी के सभी जिलों को काली, कृष्णी एवं ¨हडन नदियों के किनारे स्थित गांवों में फैलने वाली बीमारियों पर रिपोर्ट तलब की थी। इसमें दोआब समिति ने बागपत समेत आसपास के जिलों में भूजल में कैंसरकारक तत्व मिलने की रिपोर्ट पेश की थी, जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भूजल को साफ बताया। हालांकि देहरादून स्थित भूजल जांच लैब ने साफ माना है कि मेरठ की काली नदी के किनारे स्थित गांवों में भूजल में क्रोमियम, कैडमियम, लेड, जिंक, एवं आर्सेनिक जैसे भारी तत्व घुले हुए हैं। एनजीटी ने इन गांवों में टैंकर का पानी पहुंचाने का निर्णय सुनाया था, किंतु पेयजल की आपूर्ति की टंकी तक नहीं बनाई गई।

वर्जन-फोटो पिक्चर में नाम से लें।

काली नदी में दर्जनों प्रकार के केमिकल बहर रहे हैं, जो भूजल में रिस गए होंगे। गांवों के आसपास की चिमनियों में प्लास्टिक झोंका जाता है, जो कार्सियोजेनिक है। धुएं, पेस्टीसाइड, खानपान, जेनेटिक डिस्टर्बेस इन सभी की वजह से कैंसर बढ़े हैं। स्टडी की जरूरत है।

-डा. उमंग मित्थल, कैंसर रोग सर्जन, मित्थल सेंटर

भारत में प्रति एक लाख पर कैंसर के करीब 150 मरीज हैं, जो करीब 1.5 फीसद है, किंतु मेरठ के तीन गांवों की चार हजार आबादी पर अगर 20 मरीज मिले तो यह राष्ट्रीय मानक से पांच गुना ज्यादा है। भारत में कैंसर की पहचान ज्यादातर अंतिम स्टेज में हो पाती है। अगर जांच सटीक मिले तो इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है।

- डा. अमित जैन, रेडिएशन आंकोलोजिस्ट, वेलेंटिस

कोई भी भारी तत्व एवं कीटनाशक शरीर में कोशिकाओं से चिपककर उनके रिसेप्टर को बंद कर देता है, ऐसे में कोशिकाओं की स्वनियंत्रण प्रणाली बिगड़ने से कैंसर बनते हैं। काली नदी के आसपास गांवों में मरीजों की तादात चिंता का विषय है।

- डा. सुरेन्द्र यादव, पर्यावरणविद्, सीसीएस विश्वविद्यालय


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