कोरोना से जंग में जिदगी दिखती बुलबुला, पर नहीं कोई गिला..
35 से 42 डिग्री तापमान में पीपीई किट्स पहनकर सीधे संक्रमित मरीजों के परिजनों का सैंपल लेना पड़ता है इस दौरान गर्मी से लथपथ होने के बावजूद भी कम से कम 5 से 6 घंटे पीपीई किट्स पहनना पड़ता है।
शैलेश अस्थाना, मऊ
35 से 42 डिग्री तापमान में पीपीई किट्स पहन कर, सीधे संक्रमित मरीजों के परिजनों का सैंपल लेना पड़ता है, इस दौरान गर्मी से लथपथ होने के बावजूद भी कम से कम 5 से 6 घंटे पीपीई किट्स पहनना पड़ता है। मरीजों के क्लोज कांटेक्ट ट्रेसिग के तहत गले से और नाक से स्वाब सैंपल लेना पड़ता है। इसी बीच अगर मरीज ने छींक दिया या खांस दिया तो ऐसा महसूस होता है कि आह, अब तो मैं भी गया। सर, कोरोना से इस जंग में जिदगी पूरी तरह पानी का बुलबुला नजर आती है, फिर भी इससे कोई गिला नहीं है। ऐसा लगता है, जैसे जिदगी ने मुझे मातृभूमि की सेवा करने का वह मौका दिया है, शहादत के लिए जिसका कोई सैनिक बेसब्री से इंतजार करता है। फº हो रहा है, सर्विस के इस सबसे खतरनाक और कठिन दौर में। यह कहना है जनपद के सेमरी जमालपुर के निवासी सुनील यादव का। सुनील ढाई माह से वाराणसी के हॉटस्पॉट में मरीजों के बीच दिन-रात उनका सैंपल लेने, उनका इलाज करने में लगे हुए हैं। पांच माह से घर नहीं आए सुनील कभी-कभी भावुक भी हो जाते हैं, घर पर माता-पिता, भाई-भाभी व पूरा परिवार चितित रहता है मगर सब हौसला भी देते हैं।
सुनील चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग उत्तर प्रदेश के अंतर्गत वाराणसी के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सेवापुरी में लैब टेक्नालाजिस्ट के पद पर कार्यरत हैं। फिलहाल उनकी ड्यूटी शासन द्वारा वाराणसी के हॉटस्पॉट में लगाई गई है। वे शासन द्वारा गठित 20 सदस्यीय टीम को नेतृत्व कर रहे हैं। इनकी टीम में लैब टेक्निशियन व सहायक हैं। ढाई माह से उन्होंने अपने दो वर्ष के बेटे अविरल और आठ साल की बेटी कृतिका को प्यार से हाथ भी नहीं लगाया है। पत्नी समेत बच्चे सेवापुरी में ही हैं। उन्हें दूर से ही देख लेते हैं, बच्चे मचलते तो बहुत हैं, पितृत्व भी उछलता है पर सब्र के बांध को हृदय में ही जज्ब कर लेते हैं। छह माह हो गए अपने गांव सेमरी आए। सुनील जागरण से बातचीत में बताते हैं कि बीते पिछले 24 मार्च को माइक्रोबायोलॉजी विभाग बीएचयू से ट्रेनिग लेकर सीधे हॉटस्पॉट एरिया में ड्यूटी के लिए चला गया। एकदिवसीय ट्रेनिग में माइक्रोबायोलॉजी के हेड प्रोफेसर गोपालनाथ ने सारा भय निकाल दिया। तब से अनवरत रूप से हॉटस्पॉट एरिया में बेहिचक ड्यूटी कर रहा हूं। सैकड़ों बार यह मन मे ख्याल आया कि आज मुझे कुछ भी हो सकता है। कभी भी मैं कोरोना से संक्रमित हो सकता हूं और हॉस्पिटल में एडमिट। फिर यदि कोई अनहोनी हो जाय तो परिवार में किसी से भी मुलाकात भी नहीं..। कितु अगले ही पल विचार को झटक कर सकारात्मक सोच में लग जाता हूं। मुझे भगवान ने अवसर दिया है पीड़ित मानवता की सेवा का। क्यों न इसे ईमानदारी से निभाया जाय, फिर कर्तव्यपथ पर भले ही मौत मिले। रही सही कसर मेरे पिताजी डा.श्रीराम यादव ने निकाल दिया जो खुद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बेल्थरा रोड में नर्सिंग अधीक्षक हैं। मेरी मां रोज रोती हैं पर उन्हें घंटों समझाना पड़ता है। अपनी मां को और भतीजी अंशिका को बेहद प्यार करते हैं यह फ्रंटलाइन कोरोना वारियर। बताते हैं कि शुरू में वीडियो कॉल पर बात करते हुए परिवार के लोगों की डबडबायी आंखों से बहते आंसू विचलित कर देते थे तो इस भय से कि कहीं फर्ज से डगमग न हो जाऊं, अब फोन या वीडियो कॉल नही करता हूं। इनसेट--
फ्रंटलाइन कोरोना वारियर का संदेश
सुनील यादव अपने गांव, जनपद और देश के लोगों से यही अपील करते हैं कि इस बीमारी की भयावहता को समझें, सरकार ने भले ही लॉकडाउन खत्म कर दिया है, पर सबको सतर्कता जरूरी है। मास्क लगाएं, बेवजह बाहर न निकलें, भीड़भाड़ वाली जगहों से बचें। शारीरिक दूरी बनाए रखें। हाथ धोते रहें, साफ-सफाई बनाए रखें। तभी हम खुद को सुरक्षित रखते हुए अपने परिवार और समाज को भी सुरक्षित रख सकते हैं।