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मतदाताओं की रुझान अब जेरे-बहस

मतदान खत्म होने के साथ ही अब दावों का दौर प्रारंभ हो गया है। हरेक दल के समर्थक जीत का दावा कर रहे हैं। सबके पास इसके लिए अलग-अलग तर्क भी हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 Oct 2019 06:37 PM (IST)Updated: Tue, 22 Oct 2019 06:37 PM (IST)
मतदाताओं की रुझान अब जेरे-बहस
मतदाताओं की रुझान अब जेरे-बहस

-घनचक्कर में सभी दल, निष्पक्षता को लेकर हो रही बहस

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-प्रशासन ने दिया है हरेक प्रत्याशी को प्रतिनिधि का विकल्प

जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : मतदान खत्म होने के साथ ही अब दावों का दौर प्रारंभ हो गया है। हरेक दल के समर्थक जीत का दावा कर रहे हैं। सबके पास इसके लिए अलग-अलग तर्क भी हैं। जागरूक मतदाता भी गुणा-गणित लगा रहे हैं। अब जेरे बहस सवाल यह है कि घोसी का सिकंदर कौन होगा। मतदान के दिन सोमवार को दोपहर बाद से ही मोबाइल के जरिए मतदाताओं की रुझान आने लगी तो देर शाम तक दावे किए जाने लगे।

राजनीतिक पंडितों से लेकर भाजपा एवं बसपा के समर्थक सपा समर्थित निर्दल प्रत्याशी से ही टक्कर का दावा कर रहे हैं। इस बार कांग्रेस का प्रदर्शन भी बीते चुनावों से बेहतर होने की बात हर जुबान पर है। कोई संघर्ष त्रिकोणीय बता रहा है तो आमने-सामने की टक्कर एवं हार-जीत का अंतर काफी अधिक होने का दावा कर रहा है। ईवीएम के खेल और प्रशासन की निष्पक्षता को लेकर भी सपा एवं बसपा खेमा सशंकित है। हालांकि प्रशासन ने इसे पूर्व में ही स्पष्ट कर दिया है। जिलाधिकारी ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी ने मतदान के दिन ही मीडिया से अनौपचारिक वार्ता के दौरान प्रत्याशियों को लोकसभा चुनाव के दौरान स्ट्रांग कक्ष के भवन के पास अपना प्रतिनिधि नियुक्त किए जाने की तर्ज पर इस बार भी पास निर्गत किए जाने की जानकारी दी। दरअसल अल्पसंख्यक मतदाताओं में बहुसंख्य की रुझान एक ही प्रत्याशी के पक्ष में होने और पिछड़े वर्ग के कई खेमों में विभाजित होने को लेकर गुणा-गणित का दौर जारी है। उधर हर दल में विश्वासघात की बात सामने आने से तस्वीर धुंधली हो गई है। अंतिम घड़ी में मतदाताओं की खरीद-फरोख्त का दावा कर समीकरणों के प्रभावित होने की बात तो कही जा रही है पर ऐसा होने के प्रमाण नहीं मिल रहे हैं। मतदान फीसदी गत विधानसभा चुनाव की अपेक्षा काफी कम होने के चलते हर समर्थक बहस के दौरान तमाम मतदाताओं के बूथ तक न पहुंचने या फिर उनको ले जाने हेतु सक्रिय प्रयास न किए जाने का तर्क भी दे रहा है। हर दल के तर्क के दौरान एक कड़वा सच यह कि जाति और मजहब के आधार पर ही मिले मतों का अनुमान लगाया जा रहा है पर अंडर करंट की बात को समर्थक भूल जा रहे हैं।


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