बाढ़ पीड़ितों के लिए आई लाई खा रहे चूहे
घाघरा की बाढ़ से परेशान ग्रामीण जहां पेट भरने के लिए भोजन की गुहार लगा रहे थे, वहीं बाढ़ पीड़ितों को वितरण के लिए शासन से आई लगभग 250 बोरी लाई वितरण के अभाव में नायब तहसीलदार न्यायालय की शोभा बढ़ा रहा है। इसे अब चूहे खार रहे हैं, जो बची है, उसके खराब हो जाने की भी पूरी संभावना है।
जागरण संवाददाता, मधुबन (मऊ) : स्थानीय तहसील क्षेत्र में आई घाघरा की बाढ़ से परेशान ग्रामीण जहां पेट भरने के लिए भोजन की गुहार लगा रहे थे, वहीं बाढ़ पीड़ितों को वितरण के लिए शासन से आई लगभग 250 बोरी लाई वितरण के अभाव में नायब तहसीलदार न्यायालय में है। इसे अब चूहे खार रहे हैं, जो बची है, उसके खराब हो जाने की भी आशंका है।
क्षेत्र के देवारा सहित चक्की मूसाडोही में घाघरा की बाढ़ से दर्जनों गांव काफी दिनों तक घिरे हुए थे। इसमें चक्की मूसाडोही के सैकड़ों परिवार राहत शिविर में शरण लिए थे। उन्हें खाने के भी लाले पड़ गए थे। बाढ़ पीड़ित पूरी तरह पेट भरने के लिए शासन-प्रशासन के रहमो-करम पर निर्भर हो गए थे। बाढ़ पीड़ितों को राहत देने के लिए शासन से आटा, दाल, आलू, प्याज, नमक, तेल, हल्दी के साथ ही लाई का दो हजार पैकेट आया था। इसमें तहसील प्रशासन द्वारा खाद्यान्न का वितरण तो युद्धस्तर पर करा दिया गया लेकिन वितरण में बरती गई लापरवाही के चलते लगभग ढाई सौ बोरी लाई का पैकेट अवशेष रह गया। आखिर क्यों न बंट सकी लाई
अब बाढ़ को हटे भी लगभग डेढ़ माह से ऊपर हो गया है। इसके बावजूद लाई के पैकेट का वितरण न होना लोगों की समझ के परे है। इतना ही नहीं जब खाद्यान्न और लाई पैकेट दोनों दो-दो हजार पैकेट आया था और खाद्यान्न का वितरण पूरा कर दिया गया तो फिर लाई का पैकेट अवशेष कैसे रह गया। सबसे बड़ी बात कि बाढ़ पीड़ितों को वितरण के लिए आई लाई को वितरित करने की बजाय तहसील मुख्यालय पर स्थित नायब तहसीलदार कोर्ट में रख दिया गया है। जो मौसम की नमी और बोरी के फटने की वजह से बर्बाद हो रहा है। उसे चूहे खा रहे हैं।