होली में सियासी रंग घोलने की तैयारी
हंसी व मस्ती का त्योहार होली और लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव चुनाव। दोनों का नशा (सुरूर) धीरे-धीरे चढ़ना शुरू हो गया है।
जागरण संवाददाता, थानीदास (मऊ) : हंसी व मस्ती का त्योहार होली और लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव चुनाव। दोनों का नशा (सुरूर) धीरे-धीरे चढ़ना शुरू हो गया है। घरों से लेकर बाजारों तक जहां होली की तैयारियों का जोर पर है, वहीं हर नुक्कड़, चौराहे से लेकर सरकारी दफ्तरों तक में चुनावी चर्चा चल रही हैं। सियासी दल अब होली की इस मस्ती में सियासी रंग घोलने की तैयारी में जुट गए हैं। सभी अपने-अपने तरीके से होली मिलन समारोहों के आयोजन की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। इन समारोहों में शहर के विभिन्न वर्गाें से संपर्क साधने की रणनीति है।
होली मिलन समारोहों का सिलसिला पुराना है। यहां विभिन्न सामाजिक संगठन और अन्य संस्थाएं यह आयोजन कराती रही हैं परंतु इस बार चुनाव के चलते राजनीतिक दल भी इसमें भूमिका निभाने की कसरत में जुट गए हैं। राजनीतिक दलों से जुड़े सूत्रों के मुताबिक सभी दल अपने-अपने प्रभाव वाले लोगों से आयोजन कराने के लिए संपर्क साध रहे हैं। योजना है कि हर वर्ग के साथ एक अलग आयोजन कराया जाए। इनमें राजनीतिक दलों के लोग भी खुद को आमंत्रित कराएंगे और वहां होली मिलने के बहाने जनसर्मथन जुटाने की कसरत होगी। हालांकि आचार संहिता के चलते कोई राजनीतिक दल खुलकर खुद का आयोजन होने की बात नहीं कह रहा है। नाम किसी का, काम हमारा की तर्ज पर होगा होली मिलन आयोजन। इनसेट--
झंडों के हिसाब से रंगों का चयन
होली मिलन समारोह का आयोजन तो राजनीतिक दल कराएंगे मगर जाहिर तौर पर आयोजक संबंधित समाज या वर्ग के लोगों को बनाया जाएगा। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि प्रशासन की नजर इस पर न पड़े और समारोह में आने वाले लोगों को आयोजन राजनीतिक न लगे। दल के हिसाब से रंग की होली होगी. भाजपा केसरिया, बसपा नीला, सपा हरा तो कांग्रेस लाल-हरा। इन आयोजनों के लिए हर राजनीतिक दल अपने झंडों के रंगों के हिसाब से रंग का चयन कर रहा है। बाजार भी इसे भुनाने को तैयार हैं। बाजार में केसरिया, लाल, हरा, नीला और राष्ट्र ध्वज में शामिल तीनों रंगों के हिसाब से गुलाल व रंग उपलब्ध हैं।