राजनीतिक संगठन खड़ा करेंगी विमुक्ति एवं घुमंतू जातियां
विमुक्त एवं घुमंतू जातियां अब आजाद भारत में अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे से खौफजदा हैं। विमुक्त एवं घुमंतू जनजाति परिषद के तत्वावधान में हुई बैठक में एकमत से रातनीतिक पहचान कायम करने के स्वयं का संगठन खड़ा करने का निर्णय लिया है।
जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : विमुक्त एवं घुमंतू जातियां अब आजाद भारत में अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे से खौफजदा हैं। विमुक्त एवं घुमंतू जनजाति परिषद के तत्वावधान में हुई बैठक में एकमत से राजनीतिक पहचान कायम करने के स्वयं का संगठन खड़ा करने का निर्णय लिया है।
क्षेत्र के बलुवा पोखरा में शुक्रवार की दोपहर हुई बैठक में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. रामानंद राजभर ने कहा कि इस श्रेणी में शुमार अधिसंख्य जातियां विशेषकर राजभर या भर कभी राजघराने से ताल्लुक रखती थीं। अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए घर-बार छोड़ जंगल में जाकर गोरिल्ला युद्ध करने लगीं। ब्रिटिश हुकूमत ने इनको अपराधी घोषित करते हुए क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट में शुमार कर दिया। विडंबना यह कि जिस जाति के लोगों ने एक योद्धा की तरह स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया, उनको आजादी के इतिहास में स्थान न मिल सका। हाल यह कि वर्ष 1871 से 1947 तक ब्रिटिश हुकूमत एवं 1947 से अब तक भारत सरकार ने उपेक्षित ही रखा है। अब तक न तो किसी राजनीतिक दल ने विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों के कल्याण के लिए अपने घोषणा पत्र में एक पंक्ति लिखा ना कभी इनका कोई राजनीतिक फ्रंटल बन सका। इनकी संख्या इतनी है कि एकजुट हो जाएं तो प्रयोग की लोकसभा एवं विधान सभा की हरेक सीट पर समर्थित प्रत्याशी की जीत सुनिश्चत कर दें। कल्याणकारी योजनाओं के संचालन एवं सामाजिक और आर्थिक प्रगति के लिए अब राजनीतिक संगठन खड़ा करना ही विकल्प है। बैठक में उपस्थित ब्रजदेव राजभर, रामनाथ राजभर, कमलेश प्रधान, चंद्रमा, सुभाष मास्टर एवं उमेश आदि ने भी संबोधन के दौरान ऐसा ही विचार रखे। रामप्रवेश, रामकेवल, भोला, संजय, रामदरस, केशव, अरविद राजभर, सुनील राजभर आदि ने सहमति जताई।