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अब इसे जेल नहीं, कारखाना कहें जनाब!

अब जिला जेल को कारागर नहीं कारखाना कहिए जनाब! जी हां जल्द ही कारागार इसी रूप में तब्दील होने जा रहा है। यहां अगरबत्ती के साथ ही गैर प्लास्टिक उत्पाद के रूप में दोना-पत्तल गिलास प्लेट कागज की कटोरी व काष्ठ कला के संयंत्र लगाए जाएंगे।

By JagranEdited By: Published: Thu, 26 Sep 2019 12:23 AM (IST)Updated: Fri, 27 Sep 2019 06:27 AM (IST)
अब इसे जेल नहीं, कारखाना कहें जनाब!
अब इसे जेल नहीं, कारखाना कहें जनाब!

सुनील श्रीवास्तव, पलिगढ़ (मऊ)

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अब जिला जेल को कारागार नहीं कारखाना कहिए जनाब! जी हां, जल्द ही कारागार इसी रूप में तब्दील होने जा रहा है। यहां अगरबत्ती के साथ ही गैर प्लास्टिक उत्पाद के रूप में दोना-पत्तल, गिलास, प्लेट, कागज की कटोरी व काष्ठ कला के संयंत्र लगाए जाएंगे। यहां के बने उत्पाद बाजार में छाने को तैयार हैं। साथ ही जेल में निरुद्ध कैदी हुनरमंद कारीगर में तब्दील हो जाएंगे। यही नहीं, उनके काम का भरपूर पारिश्रमिक भी मिलेगा, जो उनके बैंक अकाउंट में सीधे भेज दिया जाएगा यानी जब वे बाहर निकलेंगे तो हुनरमंद कमासुत होकर समाज में पहुंचेंगे। उन्हें फिर अपराधी नहीं, हुनरमंद की नजर से देखा जाएगा। जेल से निकलने के बाद अपना उद्यम लगाने के लिए सरकार उन्हें लोन भी देगी। बहरहाल जेल में अगरबत्ती लगाने की मशीन पहुंच चुकी है। कैदियों को मशीन के संचालन का प्रशिक्षण दिया जा चुका है और जल्द ही उनके द्वारा बनाई गई 'कान्हा' ब्रांड अगरबत्ती आपके पूजाघर को महकाने को तैयार है।

जेल अधीक्षक अविनाश गौतम ने बताया कि अगरबत्ती बनाने का संयंत्र आ चुका है। इसके कुछ पा‌र्ट्स रह गए हैं जो एक-दो दिन में पहुंच जाएंगे। कारागार में बंद कैदियों को आरसीटी यानी 'रूलर डेवलपमेंट एंड सेल्फ इम्पलायमेंट ट्रेनिग इंस्टीट्यूट' द्वारा अगरबत्ती निर्माण का हुनर सिखाया जा चुका है। इससे कैदियों के प्रति समाज में जो नकारात्मक सोच है वह उनके हुनर के माध्यम से जल्द दूर होगी। जिलाधिकारी ने किया अगरबत्ती का नामकरण

जिला कारागार में कैदियों द्वारा बनाई जाने वाली अगरबत्ती 'कान्हा' नाम से बाजार में आने वाली है। इस उत्पाद का नाम स्वयं जिलाधिकारी ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी ने रखा है। यहां बनने वाली अगरबत्ती जेल के अंदर से ही आकर्षक पैकेजिग में कोआपरेटिव के माध्यम से बाजार में पहुंचेगी। कैदियों का खुलेगा खाता, लाभ से आएंगी अन्य मशीनें

श्री गौतम ने बताया कि उत्पादन में जुटने वाले प्रशिक्षित कैदियों का खाता खोला जाएगा। इसमें उनका पारिश्रमिक भेजा जाएगा। इसके बाद जो शेष बचेगा उससे पांच और गैर प्लास्टिक कैटेगरी के उत्पाद जैसे कागज की कटोरी, प्लेट, दोना, गिलास व काष्ठ कला का उत्पाद के संयंत्र लगाए जाएंगे। जो इस वर्ष के अंत में कार्य करना प्रारंभ कर देगा। डीएम ने दिया धन, तो पुलकित हुआ मन

जिला कारागार में निरुद्ध कैदियों के जीवनस्तर में सुधार के लिए स्वयं जिलाधिकारी ने पहल की है। उत्पादों के लिए जिलाधिकारी ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी ने शुरुआती लागत के रूप में जिला कारागार को 2.10 लाख रुपये दे चुके हैं। प्रशिक्षित कैदियों को मिलेगा लोन

जेल अधीक्षक अविनाश गौतम ने बताया कि प्रशिक्षित कैदी को उनके प्रशिक्षण का प्रमाण पत्र दिया जाएगा, ताकि जिला कारागार से बाहर निकलकर वह अपने हुनर का प्रयोग कर स्वयं व्यवसाय से जुड़े। जेल के माध्यम से प्रशिक्षित कैदियों को लोन दिलवाया जाएगा। पिछले माह 16 से 29 अगस्त तक सरकार के द्वारा आरसीटी के माध्यम से जेल के अंदर अगरबत्ती बनाना सिखाया गया था। इसमें 18 से 45 वर्ष के 70 कैदियों ने भाग लिया था। प्रशिक्षण के 14 दिनों में ही अच्छी-खासी मात्रा में अगरबत्ती बनकर तैयार हो गई है। इसकी पैकेजिग कराकर रख दिया गया है। अगरबत्ती का सारा कच्चा माला आरसीटी द्वारा लाया गया था और लोगों को निश्शुल्क सिखाया गया। इसलिए वह सारा उत्पाद आरसीटी को सौंप दिया जाएगा। रोजी-रोटी से जुड़ेंगे कैदी

सरकार हर तरीके से कैदियों के नकारात्मक सोच को बदल कर उन्हें सकारात्मक दिशा में ले जाना चाहती है। ताकि वे जेल से बाहर निकलकर अपने हुनर से औरों को भी प्रशिक्षित कर बेरोजगारी दूर करें। इसी सोच को चरितार्थ करने के लिए भारत सरकार व उत्तर प्रदेश सरकार कौशल विकास के माध्यम से उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है।

-लाल रत्नाकर, जेलर, जिला कारागार। जेल में बंद कैदियों को भी सामान्य और सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार है। कर्म और ईमानदारी से किए गए श्रम से आय होने पर उनमें सकारात्मकता का विकास होगा। अपनी किसी गलती के कारण जीवन का जो महत्वपूर्ण समय उनका जेल में व्यतीत हो रहा है, उसका सदुपयोग कर कौशल विकास के माध्यम से वे हुनरमंद बन सकें ताकि बाहर आने पर स्वरोजगार के माध्यम से सम्मानपूर्वक जी सकें, इसके लिए यह कार्यक्रम शुरू किया गया। सजायाफ्ता कैदियों के भी श्रम और हुनर का सदुपयोग हो सकेगा।

-ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी, जिलाधिकारी।


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