कभी नहीं भूल सकता, अटल जी का वह पत्र
जागरण संवाददाता, मऊ : राजनीति के क्षेत्र में सरल स्वभाव और नेतृत्व क्षमता से अपनी प्रतिभा का लोह
जागरण संवाददाता, मऊ : राजनीति के क्षेत्र में सरल स्वभाव और नेतृत्व क्षमता से अपनी प्रतिभा का लोहा मनमाने वाले भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक आम इंसान नहीं थे वे महामानव थे। इस फानी-ए-दुनियां से उनका जाना, मुझको काफी अखर रहा है क्योंकि उनके भेजे गए एक पत्र से मैने कविता लिखनी शुरू तो की ही लगन परू्वक पढ़ाई करके रेलवे कोलकाता के स्कूल में मास्टर बन गया और 35 साल तक नौकरी करके अब पेंशन के साथ अपनी ¨जदगी मजे से काट रहा हूं।
नगर के छेदापुरा मुहल्ले के निवासी व रिटायर्ड प्रवक्ता कुबेर नाथ उपाध्याय के उक्त विचार हैं। अपने जीवन के 87 बंसत देख चुके कुबेर जी अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में होने के बावजूद वे खुशहाल ¨जदगी जी रहे थे ¨कतु गुरूवार की शाम जब उन्हें बताया गया कि अटल जी नहीं रहे तो उनको एकाएक चक्कर आ गया और वे कुर्सी के पर बैठकर रोने लगे। उनको इस हालत में देखकर उनकी पुत्री चौंक गई और उनको कमरे में ले जाकर बिस्तर पर सुला दिया। बकौल कुबेर के अनुसार जीवन में जो कुछ बना वह अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा व प्रोत्साहन से बना। बताते हैं कि वर्ष 1949 में स्थानीय डीएवी इंटर कालेज में कक्षा 9 का छात्र था परंतु उस समय में कविताएं लिखता था और वाराणसी से प्रकाशित होने वाले अखबारों में भेजता था। मैं चाहता था कि मेरी कविता बड़े पत्र-पत्रिकाओं में भी छपे इसलिए मैने पांचजन्य पत्रिका में, कूद पड़ो संगरामन में, एक हाथ में ढाल और दूसरे हाथ में धरो तलवार.. नामक शीर्षक से कविता लिखकर भेज दी। मेरी कविता तो उस समय नहीं छपी ¨कतु पत्रिका के संपादक अटल बिहारी का पत्र मुझे आया। उसमें उन्होंने लिखा था तुम्हारा प्रयास सराहनीय है, अगले अंक में यह छपेगा परंतु तुम अभी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दो।
उस पत्र को पढ़ने के बाद मैने खूब पढ़ाई की और मैं रेलवे के स्कूल में मास्टर बन गया। बाद में मुझको उन्हें देखने की चाहत हुई और जब वे 1996 को आजमगढ़ आए तो उन्हे देखने के लिए चला गया था ¨कतु उस रैली में इतनी भीड़ थी कि किसी तरह केवल उनका भाषण सुन पाया।