नो केन की समस्या से जूझ रही मिल, पर्ची को तरस रहे किसान
स्थानीय दि किसान सहकारी चीनी मिल्स लिमिटेड और इस मिल क्षेत्र के किसान अजीब पर एक दूसरे की पूरक समस्या से जूझ रहे हैं। एक तरफ किसान गन्ना की तौल के लिए पर्ची का इंतजार कर रहा है तो वहीं मिल गन्ना के अभाव में अब तक कई बार बंद हो चुकी है।
जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : स्थानीय दि किसान सहकारी चीनी मिल्स लिमिटेड और इस मिल क्षेत्र के किसान अजीब पर एक दूसरे की पूरक समस्या से जूझ रहे हैं। एक तरफ किसान गन्ना की तौल के लिए पर्ची का इंतजार कर रहा है तो वहीं मिल गन्ना के अभाव में अब तक कई बार बंद हो चुकी है। उद्घाटन के दस दिन बाद भी मिल महज 29 हजार कुंतल गन्न की ही पेराई कर सकी है।
दरअसल चीनी मिल के साथ ही घोसी में सहकारी गन्ना विकास समिति की स्थापना की गई। इस समिति स्थापना का उद्देश्य किसानों को गन्ना की खेती के प्रति जागरूक करना, गन्ना की खेती की नई तकनीक एवं उन्नतशील प्रजाति के गन्ने की जानकारी देना, किसानों के को गन्ने की फसल के लिए कीटनाशक एवं उर्वरक की व्यवस्था करना और किसानों को कैलेंडर के अनुसार गन्ने की पर्ची वितरित करना था। इसकी एवज में चीनी मिल सकल क्रय गन्ना के अनुसार समिति को कमीशन देती है। बहरहाल प्रारंभ में तो समिति ने इस दायित्व को निभाया पर कालांतर में हाल यह कि समिति की कार्यप्रणाली ही सवालों के घेरे में आ गई। सरकार एवं प्रशासन के दावे चाहे जो रहे पर गन्ना किसान एवं चीनी मिल दोनों के ही बीच की कड़ी सहकारी गन्ना विकास समिति दोनों का बंटाधार करने लगी तो कम गन्ना मिलने के चलते मिल घाटे में चलने लगी तो अब तक न उबर सकी है। उधर किसानों ने भी इस नकदी फसल से मुंह मोड़ लिया। कुछ वर्ष पूर्व चीनी मिल ने गन्ना सर्वे से लेकर किसानों को पर्ची देने का दायित्व स्वयं संभाला। इसके सकारात्मक परिणाम भी निकले और एक बार फिर किसानों की संख्या बढ़ी। इस वर्ष समिति को दोबारा कैलेंडर के अनुसार पर्ची वितरण का दायित्व दिया गया है। इस दायित्व के निर्वहन का हाल यह कि मिल कई बार नो केन के चलते बंद हो बंद हो चुकी है। 28 नवंबर को मिल के पेराई सत्र का शुभारंभ भले ही हुआ पर तकनीकी कारणों से मिल में पेराई कई दिन बाद प्रारंभ हो सकी। उधर किसानों को पर्ची न मिलने से मिल को गन्ना नहीं मिल रहा है। परिणाम यह कि मिल कई बार नो केन के चलते बंद हो चुकी है। इन दिनों पेड़ी गन्ना की फसल को किसान अविलंब काट कर मिल को बेचना चाहते हैं। खेत खाली होते ही किसान इसमें गेहूं की बोआई करेंगे। गन्ना कटने में विलंब होने पर खेत खाली रह जाएगा। उधर गन्ना विकास विभाग से लेकर फेडरेशन तक इस सत्र में जीपीएस सर्वे के माध्यम से खेत में पहुंच गन्ने की रकबा निर्धारित किया। वास्त्रूतविक किसान को ही पर्ची मिल सके, इसकी व्यवस्था की कवायद की गई। इन तमाम तैयारियों का हाल यह कि प्रारंभ में ही सारी व्यवस्था धड़ाम हिो गई है। एक बार मिल बंद होने के बाद दोबारा पेराई प्रारंभ करने में काफी नुकसान उठाना पड़ता है। बहरहाल यह तय है कि इस बार भी गन्ना पर्ची की व्यवस्था में पारदर्शिता एवं सुधार न आया तो इस बार बिदके किसान कब वापस होंगे कहना मु्िश्कल है।
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सचिव को लिखा है पत्र : प्रबंधक
मिल के प्रधान प्रबंधक केएम ¨सह ने किसानों को गन्ना पर्ची न मिलने से गन्ने में कमी के चलते मिल बंद होने की जानकारी दी है। उन्होंने इस बाबत सहकारी गन्ना विकास सचिव को पत्र भी प्रेषित किया है। श्री ¨सह ने बीते सत्र का सकल गन्ना मूल्य किसानों के खाते में प्रेषित किए जाने का दावा किया है।